डा. गौरीशंकर राजहंस
हिमंता बिस्वा सरमाने असमके नये मुख्य मंत्रीके रूपसे शपथ ली। उन्हें निवर्तमान मुख्य मंत्री सर्वानन्द सोनोवालकी जगह मुख्य मंत्री बनाया गया। हिमंता बिस्वा सरमा अपनी तरहके एक अद्ïभुत राजनेता रहे हैं। उन्होंने छोटे-बड़े हर जरूरतमन्दकी अपने चलते भरपूर मदद की। उनकी छवि एक ईमानदार कर्मठ राजनेताके रूपमें उभरी है। कोई भी छोटा-बड़ा नागरिक सहायताके लिए सरमाके पास जा सकता था और आज भी जा सकता है। उस व्यक्तिको सरमा हर तरहकी मदद करते हैं। गरीब लोगोंको अमीर व्यापारियोंसे चन्दा लेकर भरपूर सहायता करते हैं और कभी इस बातको जगजाहिर नहीं करते हैं कि उन्होंने किस तरह किसी व्यक्तिकी सहायता की है। यदि कोई दुखी और परेशान व्यक्ति सरमाके पास आता है तो वह उसे मुख्य मंत्री या केन्द्रीय मंत्रियोंसे मिलवाते और यथासंभव मदद करते थे। इस कारण वह पूरे असममें अत्यन्त ही लोकप्रिय हो गये थे। हालमें जब असममें नये विधायकोंका निर्वाचन हुआ तभीसे अटकलें लगायी जाने लगी कि क्या सर्वानन्द सोनोवाल और हिमंता बिस्वा सरमा दोनोंमेंसे कौन मुख्य मंत्री होंगे? दोनों नेताओंको दिल्ली बुलाया गया और बीजेपी हाईकमानने दोनोंको बैठाकर यह तय किया कि सरमा ही नये मुख्य मंत्री होंगे। सोनोवालके बारेमें अटकलें लगायी जा रही हैं कि उन्हें केन्द्रीय केबिनेटमें स्थान दिया जायगा। आज जबकि पश्चिमी बंगालमें हिंसाका ताण्डव जारी है, निर्दोष नागरिक भागकर बड़ी संख्यामें असममें शरण ले रहे हैं। सरमाने ऐसे बेसहारा लोगोंकी हर तरहसे मदद की है।
सरमाका उदाहरण सचमुचमें बेजोड़ है। किसीने कभी सोचा भी नहीं था कि कोई नेता इस तरहकी स्वच्छ छविका भी हो सकता है जो बिना किसी स्वार्थके हर किसीकी मददके लिए तैयार रह सकता है। सरमाकी स्वच्छ छविकी चर्चा न केवल असम, बल्कि पूरे भारतमें हो रही है और लोग यह उदाहरण पेश कर रहे हैं कि यदि सरमा स्वच्छ छविके मुख्य मंत्री या मंत्री हो सकते हैं तो दूसरे क्यों नहीं हो सकते हैं? आजतक यही कहावत चल रही है कि यदि एक बार कोई मुख्य मंत्री या मंत्री हो जाता है तो वह दोनों हाथोंसे जनताको लूटता है। ऐसेमें यदि कोई स्वच्छ छविका हिमंता बिस्वा सरमा जैसा नेता उभरकर सामने आता है तो यह सचमुच बड़े आश्चर्यकी बात है। पहलेके जमानेमें यदि किसी केन्द्रीय कर्मचारीका तबादला असममें होता था तो ऐसा समझा जाता था कि उसे एक तरहसे काले पानीकी सजा मिल गयी है। क्योंकि असममें शत-प्रतिशत लोग मलेरिया, काला आजार और दूसरी बीमारियोंसे ग्रस्त रहते थे। परन्तु हालमें जबसे भाजपा असममें सत्तामें आयी है, उसने आम जनताको राहत देनेके लिए हर तरहका प्रयास किया गया है और असमको रोगमुक्त बनानेकी हरसंभव कोशिशें की जा रही हैं।
असमके स्थानीय लोगों और बाहरसे आये चाय-बागानके मजदूरोंके बीच समय-समयपर मनमुटाव होता रहा है। पहले असममें रेलगाडिय़ां नहीं चलती थी, न बसोंकी सुविधा थी। आवागमनके सीमित साधन थे। इसलिए बिहार और उत्तर प्रदेशसे जो लोग नौकरी करने जाते थे वह वहीं असममें बस जाते थे। कहा जाता है कि असमकी लड़कियां देखनेमें बहुत खूबसूरत होती हैं। इसलिए वह बिहार और उत्तर प्रदेशके असममें कार्यरत मजदूरोंके साथ ब्याह रचा लेती थीं। बड़ी कठिनाईसे महीनोंतक असममें पैदल चलकर यदि किसी मजदूरके परिवारका कोई व्यक्ति असम पहुंचता था तो उसे वहां पहुंचकर सारा नजारा देखनेके बाद घोर निराशा होती थी। उसे कहा जाता था कि उनका परिजन जो मजदूर बनकर चाय बागानमें काम करने आया तो अवश्य था परन्तु असमकी लड़कियोंने जादू-टोना कर उसे भेड़ा बना लिया। वहां हर घरके सामने एक भेड़ा बंधा रहता था उसीकी तरफ इशारा कर चाय बागानके बिहार और उत्तर प्रदेशसे आये मजदूरोंके परिजनोंको बताया जाता था। जो लोग चाय बागानमें अपने परिजनोंकी तलाशमें असम जाते थे वह यह सब देखकर असमसे निराश होकर अपने गांव लौट आते थे। सरमाने इस स्थितिमें सुधार किया और बिहार और उत्तर प्रदेशके जो मजदूर असममें बस गये हैं, उनके घरवालोंको नियमित रूपसे आर्थिक सहायता सरकार या बड़े उद्योगपतियोंकी मददसे कराने लगे। सरमाके इन प्रयासोंने सरमाको बहुत ही लोकप्रिय बना दिया। राजनीतिमें एक कहावत है कि हिन्दी भाषा-भाषी राज्योंमें जो कोई एक बार मंत्री बन जाता है तो वह अपने दोनों हाथोंसे सरकार एवं जनताको लूटता है। ऐसे उदाहरण बहुत कम मिलते हैं कि कोई नेता गरीब और असहाय लोगोंकी मदद करें। ऐसेमें हिमंता बिस्वा सरमाका उदाहरण पूरे भारतमें जनसेवकों और राजनेताओंको अच्छी सीख देगा। कुल मिलाकर भाजपाने असममें नेतृत्वका जो उदाहरण पेश किया हैं वह वास्तवमें स्वागतयोग्य है।