सम्पादकीय

महाआपदामें नि:स्वार्थ सेवा


अवधेश कुमार       

कोरोना महाआपदा अकेले केवल सरकारोंके लिए चुनौतियां खड़ी नहीं की, समाजके लिए भी की है। यदि समाजका बड़ा समूह इसे समझता है तो वह अपने-अपने सामथ्र्यके अनुसार खड़ा होता है और उन चुनौतियोंको दूर करनेकी यथासंभव कोशिश करता है। एक संवेदनशील, सतर्क और सक्रिय समाजका यही लक्षण है। तमाम हाहाकार और कोहरामके बीच ऐसी खबरें हैं जिसमें धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक, सेवा संघटन-समूह या कुछ निजी लोग भी अपने-अपने तरीकोंसे पीडि़त एवं प्रभावित लोगोंकी सहायता कर रहे हैं। एक समाचारने पूरे देशका ध्यान खींचा जहां एक गुरुद्वारेने घोषणा की कि कोई भी मरीज यदि आक्सीजनके बिना छटापटा रहा है तो आप हमारे पास ले आइये, हम उनको तबतक आक्सीजन देते रहेंगे जबतक या तो किसी अस्पतालमें उनको जगह नहीं मिल जाती या वह इस स्थितिमें नहीं आ जाते कि घर लौटकर आइसोलेट होकर चिकित्सा करा सकें। लगातार कोरना पीडि़त वहां जा रहे हैं, उनको आक्सीजन मिल रहा है। वहांपर अस्पतालोंको फोन किया जा रहा है और अनेक मरीज कुछ घंटे  आक्सीजनके बाद स्थिति सुधरनेपर अपने घर वापस आ गये।

जोधपुरसे खबर आयी कि वहांके कुछ व्यापारियोंने मिलकर आक्सीजन बैंक शुरू किया है। ब्लड बैंककी तर्जपर चलनेवाला यह आक्सीजन बैंक केवल कोरोनामें ही नहीं हर विकट परिस्थितिमें स्थायी रूपसे अस्पतालों, व्यक्तियोंको आक्सीजन मुहैया करायगा। शायद हममेंसे किसीको आश्चर्य हो कि दो-तीन दिनोंके अन्दर ही करोड़ों रुपये इसके लिए इक_े हो गये और आक्सीजन बैंक चालू होनेकी स्थितिमें है। हम उन औद्योगिक घरानोंकी चर्चा नहीं करेंगे जो भारी मात्रामें आक्सीजनके साथ अन्य सहायताके साथ आगे आये हैं। हालांकि आनेवाले कुछ दिनोंमें आक्सीजनकी आपूर्ति मांगके अनुरूप हो जायगी लेकिन विकट परिस्थितिमें जब चारों ओर हाहाकार हो तब इस ढंगकी संस्थाएं उम्मीद जगाती हैं। यह दो तो केवल उदाहरण हैं, देशभरमें अलग-अलग न जाने कितनी संस्थाओं, गुरुद्वारों, मंदिरों, व्यापारिक समूहों, राजनीतिक दलों तथा निजी लोगोंने अपनी ओरसे आक्सीजन मुहैया कराना शुरू किया और जितना संभव है करा रहे हैं। हमारे देशके बुद्धिजीवियोंमें धार्मिक संस्थाओंकी आलोचना करनेका फैशन है। वह भी आगे आकर काम कर रहे हैं। धार्मिक संस्थाओंकी ओरसे देशभरमें कोविड केयर सेंटर बनाये गये हैं। निरंकारी मिशन, राधास्स्वामी सत्संग, सावन कृपाल रूहानी मिशन, चिन्मय मिशन, स्वामीनारायण मंदिर, रामकृष्ण मिशन आदि तो वह नाम हैं जिनके कोविड केयर केन्द्रोंके समाचार और तस्वीरें राष्ट्रीय मीडियामें स्थान पा रहीं हैं। क्षेत्रीय स्थानीय मीडियामें छोटी-बड़ी धार्मिक संस्थाओंकी कोरोना मरीजोंके उपचार, उनकी देखभाल तथा अन्य गतिविधियोंके समाचार प्रतिदिन आ रहे हैं। सच यह है कि जिस धार्मिक संस्थाकी भी थोड़ी क्षमता है वह किसी न किसी रूपमें सेवा कर रहा है। यहांतक कि मंदिर, मठ, गुरुद्वारे और मस्जिदोंने भी कोविड केयरके लिए अपने दरवाजे खोल दिये हैं। आरंभमें मुंबईके एक जैन मंदिरको चिकित्साकी सभी व्यवस्थाके साथ कोविड केयर सेंटरमें तब्दील करनेकी खबर आयी। उसके बाद देशभरसे ऐसी खबरें आने लगीं। इसी तरह पहले वडोदराकी जहांगीरपुरा मस्जिद द्वारा कोरोना मरीजोंके लिए अपने परिसरमें बेडका इंतजाम करनेकी खबर आयी। उसके बाद कई जगहोंसे मस्जिद परिसरमें कोरोना मरीजोंके इलाजके इंतजाम किये जानेकी सूचना आ रही है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघने व्यवस्थित तरीकेसे सेवा अभियान चलानेके लिए सभी राज्योंके प्रभारियोंकी नियुक्ति कर दी। उससे जुड़े संघटन अपनी क्षमताके अनुसार कई तरीकोंसे काम कर रहे हैं। जगह-जगह पूरे देशमें इनका कार्यक्रम चल रहा है। कुछ संघटनसे जुड़कर कर रहे हैं तो निजी स्तरपर भी, सेवा भारती, वनवासी कल्याण केंद्र, विश्व हिंदू परिषद, मजदूर संघ, विद्यार्थी परिषद आदिके कार्यकर्ता अपने-अपने स्थानोंपर छोटे-बड़े समूह बनाकर कई तरीकोंसे सहायता कर रहे हैं। कोई टीकाकरण अभियानमें सहयोग कर रहा है, छोटे-बड़े कोविड केयर या आइसोलेशन सेंटर बनाये गये हैं, एंबुलेंसकी व्यवस्था कर रहे हैं, दवाइयां और आक्सीजनकी उपलब्धतामें भी लगे हैं। मरीजको भर्ती करानेमें सहयोग कर रहे हैं, भोजन उपलब्ध करा रहे हैं। इन सबके लिए नंबर भी जारी किये हैं। कई जगह हेल्प सेंटर बने हैं। कहीं-कहीं निश्चित समयपर फोन नंबरपर डाक्टर उपलब्ध कराये गये हैं, जो बचाव या कोरोना संक्रमितोंके इलाजके लिए सुझाव देते हैं। इसी तरह राजनीतिक दलोंमें भी अकेले भाजपा नहीं, कांग्रेस और दूसरे दल भी अपने-अपने क्षेत्रोंमें सेवा सहायतामें लगे हैं। दिल्लीमें ही युवा कांग्रेसके कार्यकर्ताओंने मिलकर भोजनालय शुरू किया है जिससे अस्पतालोंमें मरीजोंके रिश्तेदारोंको भोजन कराया जा रहा है। ह्वïाट्सएपसे लेकर सोशल मीडियापर अनेक लोगोंके नंबर आपको मिले हैं जहां फोन करनेपर आपको भोजन उपलब्ध हो सकता है। कोरोना आपदाके समय खासकर लाकडाउनमें केवल अस्पतालों और मरीजवाले परिवारोंमें ही नहीं, अनेक घरोंमें भी खानेकी समस्याएं पैदा होती हैं। आप फोनपर बताते हैं और उतनी संख्यामें भोजनके पैकेट आपतक पहुंच जाते हैं। गुरुद्वारों, मंदिरों और धार्मिक संस्थाओंसे लेकर अनेक सेवा संस्थाएं, एनजीओ, निजी समूह आदि दिन-रात इसमें लगे हैं। कहीं-कहीं भोजनयान चल रहा है जो बिना पूर्व सूचनाके लोगोंतक घूम-घूमकर भोजन पहुंचा रहे हैं। राजधानी दिल्लीके इर्द-गिर्द कई जगहोंसे खबर आयी कि सोसायटीके लोगोंने अपने अपार्टमेंटके अन्दरके कम्युनिटी हॉल, क्लब रूम आदिको ही कोरोना सेंटरमें बदल दिया। वहां सामान्य तौरपर आवश्यकता पडऩेवाली औषधियोंसे लेकर डाक्टर और नर्सतक की व्यवस्था है। कुछ लोगोंने भी समूह बनाये हैं जिनके ह्वïाट्सएप नंबरोंपर मैसेजसे आपकी कई समस्याएं हल हो जाती हैं। कुछ समूह दवा उपलब्ध कराता है। आपने किसी दवाकी मांग की तो उनका समूह यह पता करता है कि दवा कहां उपलब्ध है और वहांसे वह मंगाकर पहुंचा रहे हैं।

यही भाव और आचरण उम्मीद पैदा करती है कि चाहे संकट कितना भी बड़ा हो हम उसका सफलतापूर्वक सामना करेंगे और विजीत भी होंगे। इससे यह भी पता चलता है कि हमारे देश और समाजकी जैसी निराशाजनक तस्वीरें बनायी जा रहीं, वैसा है नहीं। वाकई सब कुछ खत्म नहीं हुआ है। लोगोंके अन्दर आज भी बिना सरकारी सहायताके नि:स्वार्थ भावसे अपना खर्च करके दुखी-पीडि़त लोगोंकी सेवा एवं हरसंभव सहायता करते हुए संकटका मुकाबला करनेका जज्बा कायम है। जिस देशमें धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं गैर-राजनीतिक संघटन ही नहीं राजनीतिक दल और निजी लोग संकटमें अपने संसाधनोंके साथ हाथ बंटाने निकल जायंगे उस देशका भविष्य कभी भी अंधकारमय नहीं हो सकता। इससे यह भी साबित हुआ है कि हमारे राजनीतिक वैचारिक मतभेद जितने गहरे हों, एक-दूसरेकी हम भले जितनी आलोचना करें, अंतत: आपदाका सामना करनेके लिए सब काम करेंगे। ऐसे भाव और व्यवहारवाले जनसमूहका सरकारी-गैरसरकारी तंत्रोंपर प्रभाव भी पड़ता है। आखिर दो-तीन दिनोंमें आक्सीजन पैदा करनेवाले प्लांट इसी देशमें तैयार हो रहे हैं। जिस तंत्रकी हम आलोचना करते हैं और सही करते हैं वही इस कामको भी अंजाम दे रहा है। सामाजिक दूरी और अपनी सुरक्षाका ध्यान रखते हुए लोगों द्वारा उसमें भी यथासंभव सहयोग करनेकी तस्वीरें आ रही हैं तो कामना करेें और उम्मीद भी रखें कि इसी तरहका सामूहिक आचरण देशका बना रहेगा। हां, ऐसे व्यवहार केवल आपदा, विपत्ति और संकटके समयतक ही सीमित न रहे, सामान्य दिनोंमें भी दिखे। पहले आपदासे निबटें और फिर इस चरित्रको स्थायी भाव बनानेके लिए काम करें।