सम्पादकीय

जन भागीदारीसे सफल स्वच्छ भारत अभियान


राघवेन्द्र सिंह

स्वच्छ भारत अभियान भारत सरकार द्वारा प्रारम्भ किया गया एक राष्ट्रीय स्तरका अभियान है, जिसका उद्देश्य देशको साफ-सुथरा करना है। इसकी शुरुआत २ अक्तूबर २०१४ को की गयी थी। इस अभियानके तहत व्यक्ति, कलस्टर तथा सामुदायिक शौचालयोंके निर्माणसे खुलेमें शौचकी समस्याको भी समाप्त करना है। इस अभियानको देशके प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीने इण्डिया गेटपर स्वच्छताके लिए आयोजित एक प्रतिज्ञा समारोह किया, जिसमें देशभरसे लगभग ५० लाख सरकारी कर्मचारियोंने भाग लिया। उन्होंने इस अवसरपर राजपथपर एक पदयात्राको भी हरी झण्डी दिखायी थी तथा काफी दूरतक उस यात्रामें पैदल भी चले थे। उन्होंने स्वयं सफाईके लिए झाङू भी उठायी थी तथा उन्होंने नौ लोगोंको इस अभियानमें शामिल भी किया था। उन्होंने अनुरोध किया था वह सभी लोग नौ-नौ लोगोंको इस अभियानका और हिस्सा बनायें। इस अभियानके तहत अबतक ४३२७ से अधिक शहरी स्थानीय निकायोंको खुलेमें शौचसे मुक्त (ओडीएफ) घोषित किया जा चुका है, ६६ लाखसे ऊपर व्यक्तिगत घरेलू शौचालय तथा छह लाखसे ऊपर सामुदायिक शौचालयोंका निर्माण पूरा किया जा चुका है। देशमें ठोस कचरा निष्पादनके क्षेत्रमें भी उल्लेखनीय प्रगति हुई है। यदि हम आंकड़ोंकी बात करें तो आवास एवं शहरी मामलोंके मंत्रालयके अनुसार अभीतक १३१९ शहर ओडीएफ, ४०८९ शहर ओडीएफ, प्रमाणित किये जा चुके है। २९०० से अधिक शहरोंमें ५९९०० शौचालायोंके बारेमें जानकारी गूगल मैपपर उपलब्ध है। एसडब्लूएमके तहत ९७ प्रतिशत वार्डोंका डोर-टू-डोर कूड़ा कलेक्शन हो रहा है। ७७ प्रतिशत वार्डोंमें कचरेका स्त्रोत पृथक्करण, तथा कुल ६७ प्रतिशत कचरेकी प्रोसेसिंग की जा रही है। यदि हम पूर्वसे तुलना करें तो वर्ष २०१४ में कचरेकी प्रोसेसिंगका स्तर १८प्रतिशत था वही आज बढ़कर इससे चार गुनासे अधिक हो गया है। वर्ष २०१८ में इसी मंत्रालयने कचरामुक्त शहरोंकी स्टार रेटिंगके लिए प्रोटोकॉल लॉच किया था। इसके अंतर्गत ७ स्टार रेटिंग सिस्टमके आधारपर शहरोंकी रेटिंग की जाती है। जो ठोस कचरा प्रबन्धनके लिए निर्धारित स्वच्छता संकेतकोंपर आधारित है। इसके अनुसार इंदौर, अम्बिकापुर, नवी मुंबई, सूरत, राजकोट तथा मैसूरको पांच स्टार, ८६ शहरोंको तीन स्टार तथा ६४ को एक स्टारके रूपमें दर्जा दिया गया है।

केन्द्र सरकारने इस अभियानके तहत एक और उल्लेखनीय कार्य किया जिसके तहत स्वच्छता कामगारों और अनौपचारिक कचरा बीननेवालोंको मुख्य धारामें एकीकृत किया। लगभग पांच-पांच लाख कामगारोंको विभिन्न कल्याणकारी योजनाओंमें शामिल किया गया। इस अभियानमें पूरे देशके ग्रामीण आंचलोंको लगभग खुलेमें शौचसे मुक्त कर दिया है। २ अक्तूबर, २०१४ को एसबीएम(जी) की शुरुआतके समय ग्रामीण स्वच्छता कवरेज ३८.७ प्रतिशत था। जो आज सौ प्रतिशत है। अबतक लगभग ११ करोड़से ऊपर घरेलू शौचालयोंका निर्माण हो चुका है। आज देशमें खुलेमें शौच मुक्त गांवोंकी संख्या लगभग ६.३ लाख तथा जिलोंकी संख्या ७०६ से ऊपर हो गयी है। खुलेमें शौच मुक्त राज्यों तथा केन्द्रशासित प्रदेशोंकी संख्या ३५ से ऊपर हो चुकी है। देशके प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीका यह ड्रीम प्रोजेक्ट है कि देश पूरी तरह स्वच्छ हो। वे इस विषयको बेहद गम्भीरतासे ले रहे है। १९ फरवरी २०२० को उन्होंने इस अभियानके दूसरे चरणको वर्ष २०२४-२५ के लिए मंजूरी दी है। इसमें १४०८८१ करोड़ रुपयेके कुल खर्चेसे द्रुतगतिसे कार्य किया जायेगा। जिससे खुलेमें शौचसे मुक्तिके बाद सार्वजनिक शौचालयोंमें बेहतर सुविधाओं (ओडीएफ) पर ध्यान केन्द्रित किया जायेगा। जिसमें खुलेमें शौचमुक्त अभियानको जारी रखना तथा ठोस तथा तरल अपशिष्ट प्रबन्धन भी शामिल है। इसके दूसरे चरणमें यह सुनिश्चित किया गया है कि एक भी व्यक्ति न छूटे हर व्यक्ति शौचालयका इस्तेमाल करे। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि देशके प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीको इस अभियानके लिए बिल और मेलिंडा गेट्स फांउण्डेशनकी ओरसे ग्लोबल गोलकीपर अवार्डसे सम्मानित किया। जिसपर उन्होंने कहा था कि यह सम्मान उन भारतीयोंको समर्पित है, जिन्होंने इस स्वच्छ भारत अभियानको एक जन-आन्दोलनमें बदला।

डब्लूएचओने भी इस अभियानकी तारीफ करते हुए कहा था वर्ष २०१४ में जहां भारतमें हर वर्ष डायरियाके १९.९ करोड़ मामले सामने आ रहे थे जो अब काफी कम है। जिस प्रकार दीमक लकड़ीको धीरे-धीरे समाप्त कर देती है ठीक उसी प्रकार गन्दगी भी धीरे-धीरे समाजमें अपना भयानक रूप धारण करती है। गन्दगी जमा कूड़े, खुलेमें पड़े शौच, गड्ढïेमें सड़ रहे पानी तथा अन्य क्षेत्रोंसे बीमारियोंका वीभत्स रूप धारण करती है। मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया आदि बीमारियां इसी गन्दगीके कारण फैलती है। यह बात भी सही है कहीं न कहीं अशिक्षा तथा कुरीतियां भी इसके मूलमें है। लेकिन धीरे-धीरे देशकी जनता जागरूक हो रही है। वह इसकी अहमियत भी समझने लगे है। मेघालयका गांव भारतका सबसे साफ-सुथरा गांव है। वहांके लोग पर्यावरणको बेहतर बनाये रखनेका भी कार्य कर रहे है। वहांका प्रत्येक व्यक्ति स्वच्छता तथा पर्यावरणको लेकर जागरूक है। तभी ऐसा हुआ है। वहां सारे लोग शिक्षित है वहांके लोग बचा हुआ खाना फेंकते नहीं है। यह जरूरतमंदको देते हैं या पशुओंको।

देशका यह सबसे आदर्श गांव है हम सबको ऐसा बननेका यत्न करना चाहिए। देखिये सरकारें तो अपना काम कर रही है। ग्राम पंचायतसे लेकर नगर निगम, प्रदेशसे लेकर केन्द्रतक हर क्षेत्रमें इस विषयको लेकर काफी काम हो रहा है। चालानकी व्यवस्था भी है लेकिन चालान या दण्डात्मक गतिविधियोंसे कोई योजना प्रभावी नहीं हो सकती है, यह पूर्णता सत्य है देशकी जनताको इसमें ईमानदारीसे सहभागिता करनी चाहिए। लोगोंको अपनी आदतोंमें बदलाव भी करने होंगे। उन्हें सफाईका मतलब स्वयं समझना होगा। उन्हें इस विषयको लेकर अनवरत स्वयं चिन्तन भी करना चाहिए। प्रारम्भके दिनोंमें तो राजनीतिक नेताओं, कार्यकर्ताओंसे लेकर जनताने बहुत बढ़-चढ़कर भागीदारी की। जगह-जगह खूब झाङू लगायी, नाली साफ की, लेकिन धीरे-धीरे सब समाप्त हो गया हम पुन: अपने पुराने ढर्रेपर आ गये। वास्तविकता यह है यदि जनता इस विषयपर थोड़ीसे हिस्सेदारी कर ले तो यह समस्या समाप्त हो सकती है। लोग जिस प्रकार अपने घरोंको साफ रखते है कमसे कम अपने घरोंके सामनेका क्षेत्र साफ रखनेकी जिम्मेदारी वे स्वयं ले सकते है। क्षेत्रीय सभासद या सम्बन्धित व्यक्तिसे डस्टबीनकी मांग भी करें ताकि उस क्षेत्रमें व्यवस्था की जा सके। वास्तविकता तो यह है यह एक दिनका कार्य नहीं है। इसमें निरन्तरताकी आवश्यकता है, यह कार्य बहुत नीरसभरा भी है। हमें चाहिए इस विषयको पूरी तरहसे सरकारपर छोड़ देना न ही उचित है और न ही न्यायोचित। सरकार अपना कार्य करे हम अपना। निश्चित ही क्षेत्रसे लेकर देशतककी तस्वीर बदलनेमें समय नहीं लगेगा।