सम्पादकीय

चीनी कर्जमें छटपटाता पाकिस्तान


जी.पार्थसारथी
जिस उम्मीदसे महत्वाकांक्षी चीन सीपीईसी यानी चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा योजनामें ६२ खरब डालरका निवेश कर रहा है, उसके निहितार्थ अत्यन्त गम्भीर हैं। इस गलियारेके माध्यमसे चीनके समुद्र तटविहीन प्रांतोंकी पंहुच फारसकी खाड़ीतक बनानी है। इसका एक मकसद यह भी है कि यदि कभी हिंद महासागरसे होकर चीनतक आनेवाली पेट्रोलियमकी सप्लाई या दूरसंचार लाइनोंमें व्यवधान पड़ता है तो इस संपर्क मार्गके जरिये चीनके केंद्रीय भागतक तेल आपूर्ति और संदेश सुनिश्चित किये जा सकेंगे। हालांकि ठीक इसी समय एशिया और अफ्रीकाके जिन दीगर देशोंको चीनने परियोजनाओंके विकास हेतु शातिर शर्तोंवाला ऋण दे रखा है, वह इसे चुकानेमें असमर्थ होते जा रहे हैं। इसपर चीनने कर्ज वसूलीकी भरपाई करनी शुरू कर दी है। इन मुल्कोंने जमानतके तौरपर अपने बंदरगाहों और खनिज स्रोतोंको रहनपर रखा था, जिन्हें चीनको सौंपना पड़ेगा। एशियाई और अफ्रीकी देशोंमें ‘कर्ज दो, जालमें फांस लोÓ वाली कूटनीति चलाना चीनकी विशेषज्ञता बन गयी है। चीनसे भारी-भरकम कर्ज उठानेकी एवजमें पाकिस्तान उसकी भूराजनीतिक महत्वाकांक्षाओं में कनिष्ठ सहयोगी बनने को तैयार है, आखिरकार चीनने भी पाकिस्तानके परमाणु अस्त्रास्त्र एवं मिसाइल कार्यक्रमके विकासमें अंततक मदद की है। सऊदी अरबसे भी पाकिस्तानने कर्ज उठाया था, वह उसकी अदायगी नियत समयपर चाहता है, भले ही किस्तें छोटी क्यों न हों और इसके लिए जरूरी धन पानेकी खातिर पाकिस्तानने अब बैंक आफ चीनका रुख किया है। तुर्की और मलयेशिया द्वारा इस्लामिक जगतकी संघटनात्मक संरचनाको नया संघ देने हेतु जो एक पहल शुरू की थी, उसका समर्थन करना अनाड़ी इमरान खानको भारी पड़ गया है, क्योंकि इससे चिढ़कर सऊदी अरब अब उसे नापसन्द करता है। जाहिर है यह नया स्वरूप बननेपर इस्लामिक देशोंपर सऊदी अरबकी सरदारीमें कमी होना स्वाभाविक था। तुर्कीके राष्ट्रपति एर्दोगानके साथ इमरान खानकी बढ़ती दोस्तीमें सैन्य-परमाणु सहयोगवाला पहलू भी है। दूसरी ओर देखना यह है कि चीन-पाकिस्तानकी उत्तरोतर प्रगाढ़ता अरब सागर और फारसकी खाड़ी क्षेत्रमें क्या गुल खिलायगी।
इमरान खानने यूएईकी नाराजगी भी मोल ले रखी है, जब पाकिस्तानके बड़बोले विदेशमंत्री शाह महमूद कुरैशीने यूएईकी मेजबानीमें आयोजित हुए ५७ मुस्लिम मुल्कोंके संघटन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कंट्रीस (आईओसी) के सम्मेलनमें भाग लेनेसे इनकार कर दिया था। कुरैशीकी आपत्ति इस बातपर थी कि यूएईने इस सम्मेलनमें भारतकी परराष्ट्रमंत्री सुषमा स्वराजको क्यों आमंत्रित किया है। इतना ही नहीं, कुरैशीने अपनी खीज सार्वजनिक तौर जाहिर कर मामलेको और ज्यादा संगीन कर डाला था। कोई हैरत नहीं कि इसके बाद यूएईने अपने यहां रोजगार कर रहे पाकिस्तानियोंकी वीजा मियाद आगे बढ़ाना बंद कर दिया था। इससे भी बदतर यह कि यूएई और सऊदी अरबसे पाकिस्तानको आनेवाली विदेशी मुद्रामें भारी कमी हो गयी। अब जबकि इमरान खान पाकिस्तानके पिछले कर्जोंकी अदायगी हेतु और ज्यादा ऋण लेना चाहते हैं तो जाहिर है इससे पाकिस्तानकी देनदारी और तेजीसे बढ़ेगी। वहीं खनिज संपन्न बलूचिस्तान प्रांतमें सुरक्षा स्थिति और अधिक बिगड़ गयी है। इसी इलाकेमें पाकिस्तानके सबसे बड़े प्राकृतिक गैस स्रोत हैं। इसके अलावा बलूचिस्तानमें कनाडा और चिलीकी बड़ी खनन कम्पनियों द्वारा दायर किये गये कानूनी केसोंकी वजहसे अंतरराष्ट्रीय व्यापार संघटन समेत निजी विदेशी निवेशकोंने धन लगाना स्थगित कर रखा है।
बलूचिस्तानमें तांबा और सोनेके अकूत भंडार बताये जाते हैं। इस घटनाक्रमका सबसे ज्यादा फायदा चाइना मेटलर्जिकल कम्पनीको हुआ है, जो वहांसे तांबा और सोना निकालेगी। हैरत तो यह है कि इस बार चीनियोंने बलूचिस्तानमें अपनी खनन गतिविधियोंमें टैक्स छूट लेनेकी मांग नहीं की। लोग अब मजाक कर रहे हैं कि पाकिस्तान चीनकी सोनेकी खान है। चीनपर इमरान खानकी लगातार बढ़ती निर्भरताकी एवजमें वह सिंध प्रांतमें कराची तटके निकट बौद्ध और बुंदल नामक दो द्वीपोंपर चीनका पनडुब्बी अड्डा बनवानेको राजी हैं। चीन अरब सागरमें पाकिस्तानीकी समुद्री सीमाके निकट या अंदर और ज्यादा नौसैन्य अड्डे बनानेकी संभावना तलाशना चाहता है वहीं सिंध और बलूचिस्तानके तटीय इलाकोंके नागरिकोंमें चीन द्वारा अपनी भूमि और प्राकृतिक स्रोतोंके दोहनको लेकर उपजे असंतोषके संकेत साफ दिखाई दे रहे हैं। बलूचिस्तान और सिंधमें चीनी कम्पनियोंकी गतिविधियोंने सशस्त्र विद्रोहको हवा दी है, सिंधुदेश रेवोल्यूशनरी आर्मी नामक संघटन और बलूचिस्तानके विद्रोही अपनी साझी चिंताके मद्देनजर साथ मिलकर चीनी परियोजनाओं और कर्मियोंको निशाना बना रहे हैं।
बलूचिस्तानमें बढ़ते असंतोषके पीछे एक बड़ी वजह वहां परियोजनाओंमें काम कर रहे चीनी कामगार और पंजाबियोंके दबदबेवाली सेनाका दंभ भरा बर्ताव है। हालमें चीनके इशारेपर पाकिस्तानी सेनाने ग्वादरका पूरा बंदरगाह इलाका सील कर दिया था। स्थानीय बलूच नागरिकोंमें चुनिंदाको ही अंदर जाने दिया जा रहा था। हालांकि बलूचिस्तान उच्च न्यायालय द्वारा जारी स्थगनादेशके कारण फिलहाल इस काररवाईपर रोक लगी हुई है। पुख्ता सूचना यह भी है कि सिंध सूबेके बौद्ध और बुंदल द्वीपोंको चीनी पनडुब्बियोंके अड्डेके तौरपर विकसित किया जा रहा है। लोगोंको डर है कि इस इलाकेमें चीनियोंकी नयी उपस्थिति होनेका मतलब है बलूचिस्तान और सिंधमें चीनी सहायतासे बन रही परियोजनाओंकी अध्यक्षता करने हेतु एक और वरिष्ठ पाकिस्तानी सैन्य अफसरकी नियुक्ति होना। यह बात भी पक्की है कि इन परियोजनाओंसे अपने लिए करोड़ों डालर बनानेका लालच शायद ही वह त्याग पायगा, बल्कि हो सकता है वह भी पूरी तरह जनरल असीम बाजवाकी लीक पकड़ ले, जिसपर सीपीईसी परियोजनाका अध्यक्ष रहते हुए तकरीबन ५.४ करोड़ डालरका गबन करनेका आरोप है।
इसके बावजूद बाजवापर जांच नहीं बिठायी गयी, बल्कि बतौर सीपीईसी मुखिया उन्हें सेवा विस्तार दिया गया है। १९७० के दशकमें पाकिस्तानने शक्सगम घाटी चीनको उपहार स्वरूप सौंप दी थी, तब भारतने उक्त भेंट देनेका विरोध करते हुए पाकिस्तान द्वारा कब्जा, कश्मीरी इलाकेपर अपना दावा जताया था। निकट भविष्यमें पाकिस्तान जल्द ही चीनी ऋणके बोझ तले और दबा हुआ देखनेको मिलेगा। जहां एक तरफ क्वाड नामक गुट चीनकी तरफसे पैदा हुई चुनौतियोंसे निबटनेकी तैयारी कर रहा है वहीं चीनपर पाकिस्तानकी बेतरह बढ़ती निर्भरता और कर्जका सामरिक मामलोंपर असर क्या होगा, इसको लेकर बृहद अध्ययन करनेकी जरूरत है।