आनन्द शंकर मिश्र
वैश्विक महामारीकी आपदा झेल रहे अधिकांश वर्ग दो जूनकी रोटीको मोहताज हो रहे हैं और महंगी बढ़ती जा रही है परन्तु सरकार है कि जरूरी चीजोंकी कीमत न बढऩेसे दावा करते हुए आंकड़े पेश कर रही है। एक सालमें रोजमर्राकी जीवनोपयोग एवं आवश्यक वस्तुओंके दामोंमें ३२ प्रतिशतकी वृद्धि हुई है। पिछले वर्षमें जिस घरेलू सामानका बिल पन्द्रह सौ रुपये था, उसका वर्तमान वित्तीय वर्ष २१०० रुपयेसे ज्यादा ही बैठता है। खाद्यान्नके मूल्य भी बेतहाशा बढ़ रहे हैं गेहूंके आटेमें ४५ प्रतिशतकी वृद्धि दर्ज की गयी, हालांकि महंगीपर काबू करनेका प्रयास अवश्य किया गया। सब्जियोंके बढ़ते दामोंने चीनी तेलकी नरमीपर पूरी तरह पानी फेर दिया। गरीब दो वक्तकी रोटीको मोहताज हो रहे हैं। लेकिन सत्यमेव जयतेमें आस्था रखनेवाली सरकार यह कह रही है कि महंगी बढ़ी ही नहीं है। सड़कपर दौडऩेवाले वाहनोंके किरायेमें भी वृद्धि कर दी गयी है इस सम्बन्धमें राज्योंके परिवहन निगतके सिर केन्द्र सरकार ठीकरा फोड़ रही है। लेकिन सड़कोंपर दौडऩेके लिए ईंधन केन्द्र सरकारके अधीन है। जिसकी मूल्यवृद्धिके चलते राज्योंको किरायेमें वृद्धि करनी पड़ी हैं ११ प्रतिशतसे २५ प्रतिशत रोड टैक्स कर सरकार जेबोंपर कैची चला रखी है। रेलमंत्रीने रेलवेके किराये-भाड़े सीधे तौरपर नहीं पकड़ रही है।
आज तत्काल टिकट किसी भी रेलगाड़ीको लेनेपर १५० रुपयेका अधिभार लग रहा है, जो पहले मात्र ५० रुपये था। टिकटकी वापसी नहीं है। अधिकांश गाडिय़ोंपर सुपर फास्टका अनर्गल वसूली कर रहे हैं। इस तरह कई छिपे माध्यमोंसे रेल मंत्रालय ठग लगा रहा है और सरकार भाड़ा न बढ़ाये जानेका राग अलाप रही है। हवाई यात्रा प्रतिस्पर्धाके दौरमें अवश्य प्रभावित हुई है। निजी क्षेत्रका हवाई यात्रामें पदार्पण होनेसे यात्रियोंको लाभ अवश्य पहुंचा है लेकिन उसकी नीति भी गले नहीं उतरती है। महानगरोंसे महानगरोंतकका भाड़ा काफी कम है लेकिन यदि महानगरसे किसी शहर यात्रा करनी हो तो ३० प्रतिशतका नुकसान होगा। टैक्सके नामपर सरकार सरकारी एवं निजी क्षेत्रके सभी उपक्रमोंसे भारी वसूली कर रही है, जिसका भार जनतापर पड़ता है। विकासकी छलांगे लगा रही है।
विकास दर लगभग १२ प्रतिशततक जा पहुंची है। मौजूदा सरकारका मानना है कि महंगकी बात छोड़ दीजिये आज, प्याज, सब्जी, तेज, घी, आटा, चावलके दाम बढऩेकी चर्चा बेकार है ऐसमें सरकारकी पीठ थपथपाना चाहिए कि उसकी कोशिशसे ही गरीब भूखा मर रहा है और उसके अनुसार विकास दर छलांगे लगा रही है। शुक्र है कि मौजूदा सरकारने नेता अम्बानियों और मित्तलों एवं टाटा, बिरला, डालमिया, थापर जके जैसे उद्योगपतियोंके विकासको अपने विकासेसे नहीं जोड़ रही है। अन्यथा देशके तरक्कीका राग अलापते थक गये होते। देशके नामचीन उद्योगपतियों द्वारा प्रदान किये जानेवाले वेतन एवं नौकरियां, सरकार अपने खातेमें नहीं जोड़ रही वरना विकास दर विश्वमें सर्वाधिक भारतकी होती। वैसे भी इस महंगीके दौरमें सरकार विकासके दौरको फाइव स्टार होटलोंमें लंच-डिनर करनेवालोंसे जोड़कर देख रही है। सुबहसे शामतक पत्थर कूटनेवालों और रिक्शा खींचनेवालोंसे उसका कोई मतलब नहीं है। वर्तमान सरकारकी हालत उस विदेशी बादशाह जैसी है। जिसका कहना था कि यदि रोटी नहीं मिलती तो डबल रोटी खा लो, हमारे वित्तमंत्रीको आम आदमीके आटा-दालसे ज्यादा कुत्तोंके भोजनकी आपूर्तिकी फिक्र रहती है। वित्तमंत्रीका मानना है कि आटा, दाल, चावल, खाद्यान्न, महंगे हुए हैं तो क्या हुआ, अर्थव्यवस्थातो मजबूती पकड़ रही है। विकास दर छलांगे लगा रही है। क्या गरीब इन्हीं आंकड़ोंसे पेट भरेगा। मुद्रास्फीतिकी दर पिछले सोलह महीनोंमें न्यूनतम आंकड़ोंसे काफी ऊपर ही नहीं, बल्कि पिछले सारे रिकार्ड तोड़ चुके हैं। सरकार झूठ नहीं बोलती, क्योंकि उसकी आस्था पूरी तरह सत्यमेव जयतेमें है।
सरकार इस कथनकी कुख्यात तानाशाह हिटलरसे उस कथनसे तुलना कर देखना अनुचित न होगा। जिसने कहा था कि किसी झूठको यदि सौ बार बोल दिया जाय तो १०१वीं बार वह सच लगने लगेगा। महंगी आम आदमीकी जेबपर भारी पड़ रही है। आजादीके बाद देशकी तरक्कीमें भ्रष्टï राजनीति एवं गरीबोंकी व्यवस्थापर चोट कर रहे हैं। आबादी निर्बाध गतिसे बढ़ रही है। भ्रष्टïाचार एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। यदि सरकार वोट जातिवादको त्याग कर गरीबों, असहायों एवं राष्टï्रहितमें ईमानदारीसे काम करे तो विकास सम्भव है। कोरोना महामारीकी दूसरी लहरने मध्यम वर्गकी कमर तोड़ दी है। कालाबाजारीपर सरकार विशेषकर स्थानीय प्रशासनका कोई अंकुश नहीं रह गया है। आमदनी अ_ïन्नी और खर्चा रुपयाकी तर्जपर वर्तमान समान जी रहा है। यही स्थिति रही तो समाजमें असंतोषका नियंत्रण असम्भव होगा। जबतक सरकार जागेगी तबतक कालाबाजारीवाले पूंजीपतियोंकी तिजोरी भर चुकी होगी।