रजनी
अन्नदान, वस्त्रदान, विद्यादान, अभयदान और धनदान- यह सारे दान इंसानको पुण्यका भागी बनाते हैं। किसी भी वस्तुका दान करनेसे मनको सांसारिक आसक्ति यानी मोहसे छुटकारा मिलता है। हर तरहके लगाव और भावको छोडऩेकी शुरुआत दान और क्षमासे ही होती है। श्रीरामचरितमानसमें गोस्वामी तुलसीदासने कहा है कि परहितके समान कोई धर्म नहीं है और दूसरोंको कष्ट देनेके समान कोई पाप नहीं है। दान एक ऐसा कार्य है, जिसके जरिये हम न केवल धर्मका ठीक-ठीक पालन कर पाते हैं, बल्कि अपने जीवनकी तमाम समस्याओंसे भी निकल सकते हैं। आयु, रक्षा और सेहतके लिए तो दानको अचूक माना जाता है। जीवनकी तमाम समस्याओंसे निजात पानेके लिए भी दानका विशेष महत्व है। दान करनेसे ग्रहोंकी पीड़ासे भी मुक्ति पाना आसान हो जाता है। अलग-अलग वस्तुओंके दानसे अलग-अलग समस्याएं दूर होती हैं लेकिन बिना सोचे-समझे गलत दानसे आपका नुकसान भी हो सकता है। कई बार गलत दानसे अच्छे ग्रह भी बुरे परिणाम दे सकते हैं। ज्योतिषके जानकारोंकी मानें तो वेदोंमें भी लिखा है कि सैकड़ों हाथोंसे कमाना चाहिए और हजार हाथोंवाला होकर दान करना चाहिए। जानें कि अलग-अलग वस्तुओंके दानसे कैसे संवरता है जीवन और कौन-सी चीजोंका दान करना आपके लिए सबसे उत्तम होगा। अनाजका दान करनेसे जीवनमें अन्नका अभाव नहीं होता। अनाजका दान बिना पकाये हुए करें तो ज्यादा अच्छा होगा। धातुओंका दान विशेष दशाओंमें ही करें। यह दान उसी व्यक्तिको करें जो दान की गयी चीजका प्रयोग करें। धातुओंका दान करनेसे आयी हुई विपत्ति टल जाती है। वस्त्रोंका दान करनेसे आर्थिक स्थिति हमेशा उत्तम रहती है। उसी स्तरके कपड़ोंका दान करें, जिस स्तरके कपड़े आप पहनते हैं। फटे-पुराने या खराब वस्त्रोंका दान कभी भी न करें। ज्योतिषके जानकारोंकी मानें तो जिस इंसानको दान करनेमें आनन्द मिलता है, उसे ईश्वरकी असीम कृपा प्राप्त होती है क्योंकि देना इंसानको श्रेष्ठ और सत्कर्मी बनाता है। यदि आप भी अपने भीतरकी सच्ची खुशीको महसूस करना चाहते हैं तो जरूरतमंदोंको दान करिये। इससे आपको अद्भुत आत्मसुख मिलेगा। किसी भी वस्तुका दान करते रहनेसे विचार और मनमें खुलापन आता है। आसक्ति कमजोर पड़ती है, जो शरीर छुटने या मुक्त होनेमें जरूरी भूमिका निभाती है। हर तरहके लगाव और भावको छोडऩेकी शुरुआत दान और क्षमासे ही होती है। दानशील व्यक्तिसे किसी भी प्रकारका रोग या शोक भी नहीं चिपकता है। बुढ़ापेमें मृत्यु सरल हो, वैराग्य हो इसका यह श्रेष्ठ उपाय है और इसे पुण्य भी माना गया है।