सम्पादकीय

डा. भरत झुनझुनवाला


अर्थव्यवस्थाको क्षति पहुंचायेगा ऋण  

यदि उद्यमी ऋण लेकर उद्योग स्थापित करता है, अधिक लाभ कमाता है और उस अतिरिक्त लाभसे ऋणका भुगतान करता है। ऐसेमें ऋणका सदुपयोग उत्पादक कार्योंके लिए होता है। लेकिन यदि ऋणका उपयोग घाटेकी भरपाईके लिए किया जाय तो उसका प्रभाव बिलकुल अलग होता है। खपतके लिए उपयोग किये गये ऋणसे अतरिक्त आय उत्पन्न नहीं होती है, बल्कि संकटके दौरान लिए गये ऋणपर अदा किये जानेवाले ब्याजका अतिरिक्त भार आ पड़ता है। जैसे किसी कर्मीकी नौकरी छूट जाय और वह ऋण लेकर अपनी खपतको पूर्ववत बनाये रखे तो भी दुबारा नौकरीपर जानेके बाद लिए गये ऋणपर ब्याजका भुगतान करना पड़ेगा। इस प्रकार उसकी शुद्ध आयमें गिरावट आयगी। पूर्वमें ब्याज नहीं देना पड़ता था जो कि अब देना पड़ेगा। इस परिपेक्षमें भारत सरकार समेत विश्वके तमाम विकासशील देशों द्वारा संकट पार करनेके लिए जानेवाले ऋणपर विचार करना होगा। यह ऋण नौकरी छूटनेपर लिये गये ऋणके सामान है चूंकि इनसे अतिरिक्त आय नहीं उत्पन्न हो रही है। इसलिए विश्व बैंकने चेताया है कि ऋण लेकर संकट पार करनेकी नीति भविष्यमें कष्टप्रद होगी। उन्होंने वेनेजुएलाका उदाहरण दिया है जिसने भारी मात्रमें ऋण लिये। आज उस देशको खाद्य सामग्री प्राप्त करना भी दुश्वार हो गया है चूंकि ब्याजका भारी बोझ आ पड़ा है। इसी क्रममें छह विकासशील देश जाम्बिया, एक्वाडोर, लेबनान, बेलीज, सूरीनाम और अर्जेंटीनाने अपने ऋणकी अदायगीसे वर्ष २०२० में ही डीफाल्ट कर दिया है। वह लिये गये ऋणका भुगतान नहीं कर सके हैं। साथ ही ९० विकासशील देशोंने अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोषसे आपात ऋणकी सुविधाकी मांग की है। जिससे पता लगता है कि विकासशील देशोंके द्वारा लिये जानेवाले ऋणका प्रचलन फैल भी रहा है और उन्हें संकटमें डाल भी रहा है।

तुलनामें अमेरिका और चीन द्वारा लिये गये ऋणका चरित्र कुछ भिन्न है। अमेरिकी सरकारने भारी मात्रमें ऋण लेकर अपने नागरिकोंको नगद ट्रांफर दिये हैं। लेकिन उन्होंने नयी तकनीकोंमें भारी निवेश भी किया है। जैसे अमेरिकी सरकारने बैक्टीरिया रोगोंके रोकथामके लिए प्रकृतिमें उपलब्ध फाजसे उपचारके लिए सब्सिडी दी है। इसी प्रकार चीनने अमेरीका और रूसके साथ अंतरिक्ष यान बनानेके स्थानपर स्वयं अपने बलपर अंतरिक्ष यान बनाना शुरू कर दिया है और उसका पहला हिस्सा अंतरिक्षमें भेज दिया है। चीनने सूर्यके बराबर तापमान पैदा किया है। अपने ही लड़ाकू विमान बनाये हैं और मंगल ग्रहपर अपने सेटेलाईटको उतारा है। ऐसेमें अमेरिका और चीनके द्वारा लिये गये ऋणका चरित्र भिन्न हो जाता है। यह उसी प्रकार हैं जैसे कि उद्यमी ऋण लेकर उद्योग स्थापित करता है और उससे अतरिक्त लाभ कमाता है। अत: भारत द्वारा ऋण लेकर संकटको पार करनेकी नीति उचित नहीं दिखती है जबकि अमेरिका और चीनकी ऋण लेकर निवेश करनेकी नीति सही दिशामें प्रतीत होती है।

भारत सरकार द्वारा लिया जानेवाले ऋण एक और दृष्टिसे संकट पैदा कर सकता है। पिछले महीने अप्रैल २०२१ में जीएसटीसे प्राप्त राजस्वमें भारी वृद्धि हुई है। पिछले दो वर्षमें लगभग १.० लाख करोड़ रुपये प्रति माहसे बढ़कर मार्च २०२१ में १.२३ लाख करोड़ और अप्रैल २०२१ में १.४१ लाख करोड़का राजस्व जीएसटीसे मिला है। इस आधारपर सरकार द्वारा लिया गया ऋण स्वीकार हो सकता है। लेकिन तमाम आंकड़े इतनी उत्साहवर्धक तस्वीर नहीं पेश करते हैं। मैकेंजी द्वारा किये गये एक सर्वेक्षणमें जनवरी २०२१ में देशके ८६ प्रतिशत लोग देशकी अर्थव्यवस्थाके प्रति सकारात्मक थे जो कि अप्रैल २०२१ में घटकर ६४ प्रतिशत हो गये थे। डिप्लोमेट पत्रिकामें प्रकाशित एक लेखके अनुसार फैक्ट्रियों द्वारा बाजारसे खरीद करनेवाले मैनेजरोंमें मार्च २०२१ में ५४.६ प्रतिशत सकारात्मक थे जो अप्रैलमें घटकर ५४.० प्रतिशत रह गये थे। मार्च और अप्रैलके बीच पेट्रोलकी खपतमें ६.३ प्रतिशतकी गिरावट आयी है, डीजलकी खपतमें १.७ प्रतिशतकी गिरावट आयी है, कारोंकी बिक्रीमें सात प्रतिशतकी गिरावट आयी है और अन्तरराज्यीय इ-वे बिलोंमें १७ प्रतिशतकी गिरावट आयी है। अत: अर्थव्यवस्थाके मूल आंकड़े मार्चकी तुलनामें अप्रैलमें नकारात्मक हैं। इसके बावजूद जीएसटीकी वसूलीमें भारी वृद्धि हुई है। इसका कारण संभवत: यह है कि बीती तिमाहीमें जो जीएसटी अदा किया जाना था वह अप्रैलमें अदा किया गया है अथवा सरकारने जीएसटीके रिफंड रोक लिये हैं। अन्य भी कारण हो सकते हैं जिनका गहन अन्वेषण करना जरूरी है। फिलहाल इतना स्पष्ट है कि जीएसटीकी वसूलीमें वृद्धिके बावजूद मूल अर्थव्यवस्थाकी तस्वीर विपरीत दिशामें चल रही है।

भारत सरकारने दिसम्बर २०१९ में अपनी जीडीपीका ७४ प्रतिशत ऋण ले रखा था जो कि दिसम्बर २०२० में बढ़कर ९० प्रतिशत हो गया है। इस वर्षके बजटमें वित्तमंत्रीने भारी मात्रमें ऋण लेनेकी घोषणा की थी जो कि कोरोनाके दूसरी और तीसरी लहरके कारण हुई क्षतिके कारण और अधिक होगा। इस कठिन परिस्थितिमें सरकारको कुछ कठोर कदम लेने चाहिए ताकि ऋणका बोझ न बढ़े। पहला यह कि ईंधन तेलके ऊपर आयात कर बढ़ाकर राजस्व वसूल करना चाहिए और इसकी खपत कम करना चाहिए। दूसरा, सरकारको अपनी खपतमें जैसे सरकारी कर्मियोंके वेतनमें समयकी नाजुकताको देखते हुए भारी मात्रामें कटौती कर देनी चाहिए और अन्य अनुत्पादक खर्चोंको समेटना चाहिए। तीसरा सरकारको नयी तकनीकोंमें भारी निवेश करना चाहिए। हमारे लिए यह शर्मकी बात है कि दवाओंके क्षेत्रमें अग्रणी होनेके बावजूद आज हम अपने देशकी भारत बायोटेकके टीकेसे आत्मनिर्भर नहीं हो सके हैं और तमाम देशोंसे टीके आयात कर रहे हैं। इसलिए इस कठिन परिस्थितिमें अपने बलपर नयी तकनीकोंमें भारी निवेश करनेकी पहल करनी चाहिए अन्यथा यह ऋण देशकी अर्थव्यवस्थाको ले डूबेगा जैसे वेनेजुएला जैसे देशोंको यह संकटमें डाल रहा है।