सम्पादकीय

ईरानकी राजनीतिपर विश्वकी नजर


विष्णुगुप्त         

ईरानमें इब्राहिम रईसीके राष्ट्रपति बननेका दुष्परिणाम यह हो सकता है कि पाकिस्तान अफगानिस्तानमें सक्रिय सुन्नी मुस्लिम आतंकवादी संघटनों जैसे तालिबान अलकायदा एवं आईएस जैसे मुस्लिम आतंकवादी संघटनोंकी हिंसक गतिविधियां बढ़ेगी। ईरान दुनियाकी मुस्लिम राजनीतिको हिंसक बनाने की कोशिश करेगा। ऑर्गेनाइजेशन आफ इस्लामिक मूवमेंटमें सऊदी अरब और ईरानके बीचमें हिंसक प्रतिद्वंदिता बढ़ेगी। चीन और रूसका मोहरा बनकर ईरान रहेगा। साथ ही ईरानमें लोकतांत्रिक सुधारोंकी उम्मीद समाप्त होगी एवं ईरान और अमेरिकाके बीचमें परमाणु प्रसारको लेकर तकरार बढ़ेगा, अमेरिकाका जोर परमाणु प्रसारको रोकनेपर होगा, जबकि ईरानका जो एक परमाणु शक्ति संपन्न देश बननेका होगा। तेलके मूल्यमें वृद्धिसे विश्वको परेशान करेगी। इजराइल फिरसे ईरानके परमाणु ठिकानों, परमाणु वैज्ञानिकोंपर हमले करेगा। इब्राहिम रईसको मानवताका दुश्मन कहा जाता है क्योंकि उसने लोकतंत्रके समर्थकोंपर न केवल बर्बर सजाकी व्यवस्था करायी थी, बल्कि हजारों लोकतंत्रके समर्थकोंको फांसीपर चढ़ानेका दोषी है। १९८१ में ईरानमें इस्लामिक तानाशाहीके उदय और इस्लामिक तानाशाहीके विरोधमें हुए उथल-पुथलको जानना आवश्यक है। १९८१ के पहले ईरानमें राजशाही जरूर थी परन्तु वहां एक तरहसे लोकतंत्र था। इस्लामिक मानसिकता किसी भी प्रकारसे खतरनाक नहीं थी। वहां न केवल उदारवाद था, बल्कि यूरोपकी तरह वहांपर खुलापन था। ईरान कमाल पाशाकी तुर्कीकी तरह आधुनिकतासे कदम ताल मिला रहा था, ईरानकी राजशाहीमें मस्जिदों और मौलवियोंका कहीं भी हस्तक्षेप नहीं था।

१९८१ में ईरानमें एकाएक कुरानकी आयतोंको लेकर मजहबी मानसिकताएं तेज हुईं। आयतुल्ला खुमैनी एक मजहबी नेता के तौर पर उभरे और देखते-देखते आयतुल्ला खोमेनी द्वारा तख्तापलट कर इस्लामिक राज्यकी स्थापना हुई। साथ ही उदारवादको कुचल कर इस्लामको मानना अनिवार्य कर दिया जाता है, इस्लामको नहीं माननेवाले लोगोंको चौक चौराहोंपर खड़ा कर करके सरेआम हत्याएं होने लगीं। इस्लामिक तानाशाहीके विरोधमें नागरिकोंका जोरदार विरोध हुआ। इसकी आलोचना दुनियाभरमें हुई। चूंकि ईरानके पास न तो आधुनिक तकनीकका ज्ञान था और न ही उसकी अर्थव्यवस्था मजबूत थी। अत: तानाशाह आयतुल्लाह खुमैनी अंतरराष्ट्रीय नियम और आदेशको मानना पड़ा। परन्तु आयतुल्लाहने चालाकी कीॅ। उसने १९८८ में एक डेथ कमेटी बनायी। इस डेथ कमिटीमें इब्राहिम रईसको विशेष तौरपर शामिल किया गया। इब्राहिम रईसको डेथ कमेटीमें शामिल करनेके पीछे उसके इस्लामके शासनके प्रति जवाबदेह होना। इब्राहिम रईसकी सोच बड़ी खतरनाक थी। दुनियाके मानवाधिकार संघटनोंका आकलन था कि करीब २५००० लोगोंको डेथ कमेटीने फांसी दिया था। यह सभी इस्लामिक तानाशाही स्थापित होनेके समयसे ही जेलमें बंद थे। डेथ कमेटीने इन सभीको फांसीपर लटका दिया। यह सभी अपने अपने क्षेत्रके विशेषज्ञ थे और लोकतंत्रके प्रति समर्पित थे। इब्राहिम ऋषि रईसी अपने बचावमें कहते थे कि यह सभी इस्लामके दुश्मन थे,  इस्लामके दुश्मनोंका जिंदा रहना इस्लामकी तौहीन है। ईरानमें शासनका वास्तविक प्रधान राष्ट्रपति नहीं, बल्कि ईरानका सर्वोच्च मजहबी नेता होता है जो शिया मुस्लिम समूहका नेतृत्व करता है। उल्लेखनीय है कि ईरानमें शिया मुस्लिम समूहकी ही बहुलता है। इब्राहिम रईसी पहली पसंद क्यों बना। वास्तवमें इसके पीछे इस्लामिक तानाशाही ही कारण है। इस्लामिक तानाशाहीका नेतृत्व करनेवाला मौलवीकी पसंद और नापसंद महत्वपूर्ण होती है। ईरानमें सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खमेनेई हैं, आयातुल्लह खुमैनीकी पहली पसंद इब्राहिम रईसी ही थे। खुमैनीकी पसंदको देखते हुए शिया मुस्लिम समूहने इब्राहिमको राष्ट्रपति चुननेकी भूमिका निभायी। ईरानमें कोई सुधारवादी राष्ट्रपति बन ही नहीं सकता। क्योंकि इस्लामिक तानाशाहीके कानूनके अनुसार ईरानके सर्वोच्च नेता ही यह तय करते हैं कि कौन राष्ट्रपति चुनावका उम्मीदवार हो सकता है। ईरानका सर्वोच्च नेता या मौलवी कभी भी लोकतंत्रवादी और इस्लाम विरोधीको राष्ट्रपति चुनावमें खड़े होनेकी अनुमति नहीं देता। इसलिए ईरानका राष्ट्रपति और इस्लामिक मानसिकतासे त्रस्त व्यक्ति ही बनता है। ईरानकी सबसे बड़ी समस्या आंतरिक गृह युद्ध, शिया मुस्लिम सुन्नी मुस्लिमके बीच घृणा और परमाणु प्रसारकी नीति है। जब अमेरिकामें डोनाल्ड ट्रम्पका राज था तब ईरानका परमाणु कार्यक्रमको लेकर तनातनी बढ़ी थी, डोनाल्ड ट्रम्पने ईरानके साथ परमाणु अप्रसार संधिको रद कर दिया था और ईरानपर नये प्रतिबंध लगाये थे और ईरानसे तेल खरीदनेपर अन्य देशोंको भी प्रतिबंधोंकी मार झेलनेकी धमकी दी थी।

अमेरिकाकी धमकीसे ईरानके मित्र देशोंने भी तेल खरीदना बंद कर दिया था। यदि इब्राहिम रईसीने परमाणु प्रसारपर कोई हिंसक नीति दिखाई तो फिर अमेरिका और ईरानके बीचमें न केवल तनातनी बढ़ेगी, बल्कि छोटे-मोटे युद्ध भी संभव है। डोनाल्ड ट्रम्पके कार्यकालमें अमेरिकाने ईरानके प्रमुख खुफिया कमांडरको मार गिराया था, इसके अलावा भी ईरानपर हमले हुए थे। यदि परमाणु प्रसारपर इब्राहिम रईसी कायम रहे तो फिर इसराइल भी ईरानके साथ युद्धकी स्थिति बना सकता है। ईरान इसराइलके प्रति असहिष्णुता रखता है, इसके कारण इसराइल यह कभी नहीं चाहता ईरान एक परमाणु शक्ति संपन्न देश बने। ईरानमें अभी उथल-पुथलकी स्थिति है, शिया सुन्नी संघर्ष भी आंतरिक एकताको चुनौती दे रहा है। लगातार आतंकवादकी घटनाएं हो रही हैं। अमेरिकी प्रतिबंधोंके कारण ईरानकी अर्थव्यवस्था बुरी तरहसे चौपट है। आवश्यक वस्तुओंकी किल्लत है। आवश्यक वस्तुएं आम आदमीकी पहुंचसे लगातार दूर हो रही हैं। ईरानकी अर्थव्यवस्था सिर्फ तेल और गैस आधारित है, जिसपर अमेरिकी प्रतिबंध अब भी जारी है। इसलिए इब्राहिम रईसको परमाणु प्रसारके प्रति नीति स्पष्ट करनी होगी, परमाणु प्रसारको लेकर अराजकता और हिंसा बढ़ानेकी सोच छोडऩी होगी। अंतरराष्ट्रीय समुदायके साथ कदम मिलाकर चलना होगा। यदि इब्राहिम रईसी ऐसा नहीं कर पाये तो फिर ईरान भी पाकिस्तान, लेबनान, सीरिया जैसी स्थितिमें पहुंचकर अपना ही सर्वनाश करा लेगा।