भारतके साथ ५९ हजार करोड़ रुपयेके राफेल विमान सौदेकी फ्रांसमें न्यायिक जांच शुरू किये जानेका औचित्य है अथवा नहीं है, यह एक अलग विषय है लेकिन इसे लेकर भारतमें सियासत और राजनीतिक दलोंके बीच आरोप-प्रत्यारोप तथा वाकयुद्धका निश्चित रूपसे कोई औचित्य नहीं है। साथ ही इस सियासतकी प्रासंगिकता भी नहीं है। फ्रांसमें उसकी न्यायिक जांचकी प्रक्रिया शुरू हो गयी है और इसका निष्कर्ष आनेमें समय लगेगा। जबतक जांचका निष्कर्ष सामने नहीं आ जाता तबतक अनुमानोंको लेकर सियासत करनेका कोई अभिप्राय नहीं है। इसके लिए प्रतीक्षा करनेकी आवश्यकता है और तब तक राजनीतिक दलोंको संयम और धैर्यसे आचरण करनेकी जरूरत है। फ्रांसकी समाचार वेबसाइट मीडिया पार्टने कहा है कि इस चर्चित सौदेको लेकर जांचकी प्रक्रिया जूनसे ही प्रारम्भ हो गयी है। भारत और फ्रांसमें २०१६ में ३६ राफेल विमानोंके सौदेपर हस्ताक्षर हुए थे। २१ राफेल विमान छह खेपमें भारत आ चुके हैं। फ्रांसके राष्टï्रीय वित्तीय अभियोजक कार्यालयकी ओरसे जांचकी पहल की गयी। फ्रांसके एन.जी.ओ. शेरपाकी ओर से शिकायत दर्ज करानेके बाद न्यायिक जांचकी बात आगे बढ़ी। इस जांचके दायरेमें फ्रांसके पूर्व राष्टï्रपति फ्रांस्वा ओलान्द, वर्तमान राष्टï्रपति इमैनुआल मैक्रों और वहांके पूर्व रक्षामंत्री और वर्तमान विदेशमंत्री भी हैं। आवश्यकता पडऩेपर इन लोगोंसे पूछताछ की जा सकती है। इस प्रकरणको लेकर देशमें राजनीतिक तापमान बढ़ गया है। संसदका आगामी सत्र निकट है। विपक्ष इस मुद्देपर शोरशराबा कर सकता है। सदनके सुचारु संचालनमें बाधाएं उत्पन्न की जा सकती है जिससे आवश्यक विधायी कार्यका निष्पादन अवरुद्ध हो सकता है। कोरोना महामारीके दौरान इससे जुड़ी चुनौतियों और भावी खतरोंसे निबटनेके लिए संसदके बहुमूल्य समयके महत्वको समझनेकी जरूरत है। ऐसी स्थितिमें जबतक फ्रांससे न्यायिक जांचके निष्कर्ष नहीं आ जाते हैं तबतक न्यायिक जांचके प्रकरणको तूल देनेका कोई औचित्य नहीं है। राजनीतिक दल कोरोना महामारीसे उत्पन्न स्थितियों और भविष्यके खतरोंपर विशेष रूपसे ध्यान दें। कोरोना महामारीका सम्बन्ध मानव जीवन की रक्षासे है और तीसरी लहरका खतरा सामने है। इसलिए राजनीतिक दलोंको संयम बरतनेकी जरूरत है।
बेघरोंको भी काम जरूरी
बाम्बे उच्च न्यायालयने बेघरों और भिखारियोंकी बढ़ती आबादीपर अंकुश लगानेके लिए अपने एक अहम फैसलेमें सार्थक नसीहत दी है। उच्च न्यायालयने शनिवारको बेघर लोगों, भिखारियों और गरीबोंको पोषणयुक्त भोजन, पीनेका पानी, आश्रय और सुलभ शौचालय उपलब्ध करानेकी मांगवाली जनहित याचिकाको खारिज करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जी एस कुलकर्णीकी खंडपीठने फैसला सुनाते हुए कहा कि बेघरों और भीख मांग रहे लोगोंको भी देशके लिए कुछ काम करना चाहिए। उन्हें सब कुछ राज्य सरकार उपलब्ध नहीं करा सकती है। न्यायालयने सख्त टिप्पणी की है कि याचिकामें किये गये सभी अनुरोधोंको मान लेनेका मतलब लोगोंको काम नहीं करनेका न्योता देना होगा। कुछ सामाजिक संस्थाएं समाजके इस वर्गकी मददके लिए अभियान चला रखा है जिसमें इन्हें भोजन-वस्त्र उपलब्ध करानेके साथ ही भिखारियोंको पैसा नहीं देनेका अनुरोध किया गया है। भिखारियोंको भोजन करा देना धर्मार्थ का काम है, लेकिन पैसे देना उचित नहीं है, क्योंकि वे इस पैसेका उपयोग नहीं दुरुपयोग करते हैं। कितने ही भिखारी ऐसे हैं जो पैसेका उपयोग भोजनमें कम और मादक पदार्थोंके सेवनमें ज्यादा करते हैं। इसलिए भिखारियोंको पैसे देना अपराधको बढ़ावा देना है। कुछ संघटित गिरोहोंने इसे पेशा बना लिया है। अनाथ और भूले-भटके बच्चोंको बंधक बनाकर भिक्षावृत्ति कराते हैं। अधिकसे अधिक भिक्षाके लिए इन बच्चोंके साथ अमानवीय व्यवहारके दुष्कृत्य सामने आये हैं। बाम्बे उच्च न्यायालयकी टिप्पणी सबको काम करनेकी नसीहतके निहितार्थको समझनेकी जरूरत है। इससे समाजके अंतिम पायदानपर बैठे हुए इस वर्गके लोगोंको न सिर्फ स्वावलम्बी बननेमें मदद मिलेगी बल्कि समाजमें उन्हें एक सम्मानजनक पहचान भी मिलेगी जो स्वयं उनके और देशहितमें होगी।