सम्पादकीय

टीकाकरणकी रणनीति जरूरी


 डा. जयंतीलाल भंडारी 

केंद्र सरकारके द्वारा कोरोना वैक्सीनकी सभी लोगोंतक न्यायसंगत रूपसे पहुंच सुनिश्चित की जानी होगी, वहीं कोरोना वैक्सीन उत्पादनमें वैश्विक सहयोग और अधिकतम उत्पादन क्षमताकी नयी रणनीतिसे कोरोना वैक्सीनके वैश्विक हब बननेकी संभावनाओंको मु_िïयोंमें लेना होगा। गौरतलब है कि अमेरिकाके राष्ट्रपति जो बाइडेन और भारतके प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदीके बीच टेलीफोन वार्तामें जो बाइडेनने कहा कि अमेरिका भारतके लिए कोरोना वैक्सीनके उत्पादनसे संबंधित आवश्यक कच्चे मालकी आपूर्तिपर लगी रोकको हटाते हुए इसकी सरल आपूर्ति सुनिश्चित करेगा। बाइडेनने यह भी कहा कि जिस तरह कोरोना महामारीकी शुरुआतमें भारतने अमेरिकाको मदद भेजी थी, उसी तरह अब अमेरिका भी भारतकी मददके लिए कटिबद्ध है। ऐसेमें भारतके लिए अमेरिकाकी नयी मदद भारतको कोरोना वैक्सीन निर्माणके नये मुकामकी ओर तेजीसे आगे बढ़ायगी। इतना ही नहीं, दुनियाके शक्तिशाली संघटन क्वाड ग्रुपके चार देशों अमेरिका, आस्ट्रेलिया, जापान और भारतके द्वारा भारतमें वर्ष २०२२ के अंततक कोरोना वैक्सीनके सौ करोड़ डोज निर्मित कराने और इस कार्यमें भारतको वित्तीय एवं अन्य संसाधन जुटाकर सहयोग करनेका जो निर्णय लिया है, इससे भी भारतके दुनियाकी कोरोना वैक्सीन महाशक्तिके रूपमें उभरनेमें मदद मिलेगी। यह भी महत्वपूर्ण है कि देशमें आक्सफोर्ड-एस्ट्रोजेनेकाके साथ मिलकर बनायी गयी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडियाकी कोविशील्ड तथा स्वदेशमें विकसित भारत बायोटेककी कोवैक्सीनको दुनियाभरमें सबसे प्रभावी वैक्सीनके रूप स्वीकार किया जा रहा है। इन दोनों वैक्सीनोंका उपयोग १६ जनवरीसे शुरू हुए देशव्यापी टीकाकरण अभियानमें किया जा रहा है। देशमें ३० अप्रैलतक कोरोना वैक्सीनकी १५ करोड़से अधिक खुराक दी जा चुकी है।

स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि भारत कोरोना वैक्सीनका भी वैश्विक स्तरपर बड़ा सप्लायर बननेकी तैयारी कर रहा है। इस दिशामें नीतिगत स्तरपर १५ अप्रैलको सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल आर्गेनाइजेशंस (सीडीएससीओ) की तरफसे कई अहम फैसले लिये गये हैं। वैक्सीन उत्पादनसे जुड़े कच्चे मालका आयात करके बड़ी मात्रामें कोरोना वैक्सीनका निर्यात भी किया जा सकेगा। अब शीघ्र ही विदेशी कम्पनियां भारतमें अपनी सब्सिडियरी या फिर अपने अधिकृत एजेंटके माध्यमसे वैक्सीनका उत्पादन कर सकेंगी। ज्ञातव्य है कि हैदराबादकी प्रमुख दवा कंपनी कोविड-१९ के लिए रूसमें तैयार टीका स्पूतनिक-वीके लिए भारतीय साझेदार है। शुरुआतमें स्पूतनिक-वीका आयात किया जायगा और इस वैक्सीनकी पहली खेप एक मईको प्राप्त हुई है। कुछ समय बाद स्तूपनिक-वीका ६० से ७० फीसदी वैश्विक उत्पादन भारतमें होगा। उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकारने कोरोना टीकाके उत्पादन एवं वितरणकी जो रणनीति बनायी है, उसके तहत राज्य सरकारोंको यह अधिकार दिया गया है कि वह अपनी उपयुक्तताके अनुरूप कोरोना टीका उत्पादक देशी या विदेशी कम्पनियोंसे टीकेकी खरीदी तथा अपने प्रदेशमें टीका लगाने संबंधी उपयुक्त निर्णय ले सकेंगी। राज्योंके लिए जहां कोविशील्ड बना रही सीरम इंस्टीट्यूटने कोरोना वैक्सीनकी कीमत कम करके प्रति डोज ४०० रुपयेकी जगह ३०० रुपयेकी है, वहीं भारत बायोटेकने भी कोरोना वैक्सीनकी कीमत ६०० रुपये प्रति डोजसे घटाकर ४०० रुपये कर दी है।

ज्ञातव्य है कि देशमें सरकारके समर्थनसे दुनियाकी सबसे बड़ी टीका विनिर्माता सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया अपनी मासिक उत्पादन क्षमता बढ़ाकर २० करोड़ खुराक कर सकती है। भारत बायोटेक सालाना ७० करोड़ खुराककी उत्पादन क्षमता तथा जाइडस कैडिला सालाना उत्पादन क्षमता २४ करोड़ खुराक करनेकी डगरपर आगे बढ़ सकती है। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि सरकारने कोरोना टीकाकरणमें अहम भूमिका निभानेवाली दो भारतीय टीका निर्माता कम्पनियों सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेकको क्रमश: तीन हजार करोड़ रुपये और १५०० करोड़ रुपयेकी अग्रिम राशि दी जानी सुनिश्चित की है। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि केंद्र सरकारने आत्मनिर्भर भारत अभियानके तहत पीएलआई योजनाके तहत अधिक कीमतोंवाली दवाइयोंके स्थानीय विनिर्माणको प्रोत्साहन देनेके उद्देश्यसे १५००० करोड़ रुपये, दवाई बनानेके लिए कच्चे मालके स्थानीय विनिर्माणको बढ़ावा देनेके लिए ६९४० करोड़ रुपयेकी धनराशि सुनिश्चित की है। इससे कोरोना वैक्सीन उत्पादनको प्रोत्साहन मिलेगा। इसी तरह चालू वित्तीय वर्ष २०२१-२२ के बजटमें रिसर्च और इनोवेशनको आगे बढ़ानेके लिए ५० हजार करोड़ रुपये तथा इसी वर्ष २०२१ में नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एनआरएफ) का गठन किये जाने जैसे कदमोंसे भी कोरोना वैक्सीन शोध कार्यमें भी प्रोत्साहन मिलेगा।

नि:संदेह भारतके द्वारा कोरोना वैक्सीनका बड़े पैमानेपर उत्पादन न केवल देशके लोगोंकी टीकाकरण जरूरतको बहुत कुछ पूरा कर सकेगा, वरन् भारतका यह अभियान दुनियाके गरीब और विकासशील देशोंके करोड़ों लोगोंको कोरोना टीकाकरणमें सहयोग करके उन्हें कोरोनाकी पीड़ाओंसे बचा सकेगा। विभिन्न रिपोर्टोंमें कहा गया है कि दुनियाके कुछ विकसित देश इस वर्ष २०२१ के अंततक कोरोना टीकाकरणके पूर्ण लक्ष्यको प्राप्त कर सकेंगे। भारत भी २०२२ के अंततक टीकाकरणका लक्ष्य प्राप्त करनेके हरसंभव प्रयास करेगा। लेकिन दुनियाके अधिकांश गरीब एवं विकासशील देशोंके लिए टीकाकरणका लक्ष्य प्राप्त करनेमें लंबा समय लगेगा। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि यदि सभी गरीब और विकासशील देशोंकी पहुंच वैक्सीनतक संभव नहीं हो सकी तो विश्व मानवता और विश्व अर्थव्यवस्थाको नुकसान उठाना पड़ेगा। यदि गरीब और मध्यम आय वर्गवाले देशोंको वैक्सीन नहीं मिली तो दुनियाके करोड़ों लोगोंको कोरोनाकी पीड़ाओंसे बचाना और वैश्विक अर्थव्यवस्थाको पटरीपर लाना कठिन होगा, क्योंकि कोरोना नये-नये रूपमें लोगोंकी जान लेता रहेगा और बार-बार वैश्विक अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी। ऐसेमें हम उम्मीद करें कि केंद्र सरकार एक ओर कोरोना वैक्सीनकी नयी रणनीतिके तहत देशभरमें दिखाई दे रही वैक्सीनके वितरण संबंधी तात्कालिक मुश्किलोंको दूर करेगी, वहीं दूसरी ओर कोरोना वैक्सीनका उत्पादन अधिकतम क्षमतासे करके देश एवं दुनियाके गरीब और विकासशील देशोंके लोगोंके लिए कोरोना वैक्सीकरणमें भारतकी कल्याणकारी भूमिका सुनिश्चित करेगी।