सम्पादकीय

महंगीकी मारसे बेहाल आमजन


रमेश सर्राफ धमोरा

घरेलू गैस सिलेंडरके दामोंमें वृद्धि करना आम आदमीके लिए बहुत ही दुखदाई होगा। देशमें पेट्रोल और डीजल एक सौ रुपयेसे अधिक प्रति लीटरकी दरपर बिक रहे हैं। ऐसेमें रसोई गैसकी कीमत बढ़ाना बहुत बरा फैसला है। पिछले चौदह महीनोंसे लोगोंको घरेलू गैस सिलेंडरकी सब्सिडी मिलना भी बंद है।  पेट्रोलियम पदार्थोंके दामोंमें वृद्धिके बाबत पिछले दिनों पेट्रोलियम एवं गैसमंत्री धर्मेन्द्र प्रधानने एक बयान दिया था कि कोरोना संकटके दौरान पेट्रोलियम पदार्थोंके दामोंको कम करना मुनासिब नहीं है। प्रधानका यह बयान उन मतदाताओंके साथ सरासर अन्याय है, जिन्होंने भाजपाको गरीबोंकी हितैषी पार्टी मानकर लगातार दो बार भारी बहुमतसे केंद्रमें सरकार बनानेका समर्थन दिया था। देशकी जनता पिछले सवा सालसे लगातार कोरोना संक्रमणको झेल रही है। इस दौरान अधिकांश समय देशमें लाकडाउन लगनेसे लोगोंको घरोंमें ही रहना पड़ा है। ऐसेमें काम-धंधे बंद होनेसे आम आदमीके रोजगारके अवसर समाप्त होनेसे उनके आयके स्त्रोत बंद हो गये। दिनों दिन बढ़ती महंगी और लगातार कम होते कामके अवसरने देशकी जनताकी कमर तोड़ दी है। पेट्रोलियम पदार्थोंके अलावा भी खाद्य पदार्थोंकी कीमतोंमें बेतहाशा वृद्धि हो रही है। खानेका तेल दुगुनी दरपर बिक रहा है। कोरोना महामारीके दौरान केंद्र सरकारको पेट्रोलियम पदार्थोंपर कस्टम एंड एक्साइज ड्यूटीसे खूब कमाई हुई है। सरकारको अप्रत्यक्ष करसे आनेवाला राजस्व बढ़कर ४.५१ लाख करोड़ रुपये हो गया है। वित्तीय वर्ष २०२०-२१ में पेट्रोलियम उत्पादोंके आयातपर ३७ हजार ८०६.९६ करोड़ रुपये कस्टम ड्यूटी वसूली गयी। वहीं देशमें इनके उत्पादपर सेंट्रल एक्साइज ड्यूटीसे ४.१३ लाख करोड़ रुपयेकी कमाई हुई। २०१९-२० में पेट्रोलियम पदार्थोंके आयातपर सरकारको कस्टम ड्यूटीके रूपमें ४६ हजार करोड़ रुपयेका राजस्व मिला था। वहीं देशमें इनके उत्पादपर सेंट्रल एक्साइज ड्यूटीसे २.४२ लाख करोड़ रुपयेकी वसूली हुई। अब यदि दोनों तरहकी टैक्स वसूलीको देखें तो सरकारी खजानेमें २०१९-२० में कुल २.८८ लाख करोड़ रुपये जमा हुए। महंगे पेट्रोल-डीजलसे केवल आम आदमी ही नहीं, बल्कि पूरी अर्थव्यवस्थाकी हालत बिगड़ गयी है। जो पहलेसे ही कोरोना महामारीकी मार झेल रही है। केन्द्र सरकारको तत्काल पेट्रोल-डीजलपर टैक्स घटाकर लोगोंको महंगीसे राहत देनी चाहिए।

केन्द्र सरकार द्वारा जारी आंकड़ोंके मुताबिक कोरोना संक्रमणके बावजूद भी सरकारका कर संग्रहण लगातार बढ़ता जा रहा है। सरकारके नुमाइंदोंका कहना है कि देशकी जनताको कोरोना वैक्सीनके टीके मुफ्तमें लगाये जा रहे हैं। जिनपर होनेवाले खर्चकी भरपाईके लिए सरकारको टैक्समें वृद्धि करनी पड़ रही है। परन्तु सरकारी सूत्रोंके अनुसार ही देशके लोगोंके टीकाकरणपर अधिकतम ४० हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे। जबकि सरकारने कोरोना संक्रमणके बाद बढ़़ाये गये टैक्ससे कई लाख करोड़ रुपयेका राजस्व संग्रहण किया है। केन्द्र सरकारने पहले बीस लाख करोड़का तथा गत दिनों सात लाख करोड़ रुपयोंके राहत पैकेजकी घोषणा की थी। परन्तु सरकारकी इन घोषणाओंका भी आम आदमीको विशेष लाभ नहीं मिल पा रहा है। पैसोंके अभावमें लोगोंसे बिजलीके बिल जमा नहीं हो पा रहे हैं। जिन्होंने बैंकोंसे लोन ले रखा है उनकी किस्तोंकी भरपाई नहीं हो पा रही है। ऊपरसे निजी स्कूलवाले भी बिना पढ़ाई बच्चोंसे जबरन फीस वसूल रहे हैं। जो गरीबोंपर सीधा कुठाराघात है। सुप्रीम कोर्टके हस्तक्षेपके बाद कोरोनासे मरनेवाले लोगोंको सरकारी स्तरपर कुछ मुआवजा मिलनेकी संभावनाएं बनी है। परन्तु अधिकांश लोगोंकी मृत्यु प्रमाण-पत्रपर कोरोनासे मौत होना दर्ज ही नहीं किया गया है। ऐसेमें उन लोगोंको मुआवजा मिलनेकी कोई संभावना नजर नहीं आ रही है। यदि केन्द्र सरकार चाहे तो अस्पतालोंको निर्देशित कर सकती है कि कोरोना संक्रमणके दौरान जिनकी वास्तवमें कोरोनासे मौत हुई है। उनको कोरोनासे मौतका मृत्यु प्रमाणपत्र दिया जाय ताकि उनको भी मुआवजा मिल सके।

देशमें कोरोनाकी प्रथम लहरके दौरान ही सरकारने रेल सेवा पूरी तरहसे बंद कर दी थी। कई महीनोंके बाद सरकारने कुछ रेलगाडिय़ां प्रारंभ की हैं। जिनमें सफर करनेके लिए लोगोंको पहलेसे अधिक किराया चुकाना पड़ रहा है। केन्द्र सरकार वर्तमानमें संचालित सभी रेलगाडिय़ोंको स्पेशल ट्रेनके रूपमें चला रही है। जिसका किराया सामान्यसे काफी अधिक है। चूंकि रेलगाडिय़ोंमें अमूमन आम आदमी यात्रा करता है जो पहले ही कोरोनाके कारण आर्थिक मारसे परेशान है। ऐसी स्थितिमें उससे रेल भाड़ेके रूपमें भी अधिक राशि वसूल करना केन्द्र सरकारका न्यायसंगत फैसला नहीं है।  प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा कहते हैं कि मैं दिन-रात देशकी जनताकी उन्नतिकी बातें सोचता हूं एवं करनेका प्रयास करता हूं। परन्तु न जाने वह मौजूदा स्थितिसे क्यों अनजान बने हुए हैं। देशका आम आदमी, गरीब, मजदूर, किसान वर्गको ऐसा कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है जिससे आगे चलकर वह अपनी कोरोना आनेसे पहलेकी जिंदगी बसर कर सके। गांवमें तो स्थिति और भी खराब हो रही है। कोरोनाके कारण शहरोंसे पलायन कर अपने गांव आये हुए लोगोंके सामने रोजी-रोटीका संकट पैदा हो रहा है। चूंकि गांवसे शहर वही लोग गये थे जिनके समक्ष गांवमें रोजी-रोटीका संकट था। अब लाकडाउनमें वह लोग फिरसे अपने गांव आनेको मजबूर हुए हैं। जहां उनके पास रोजगारका कोई साधन नहीं होनेसे वह बदतर जीवन जीनेको मजबूर हो रहे हैं। हालांकि केंद्र सरकारने प्रति व्यक्ति पांच किलो गेंहूं प्रतिमाह मुफ्तमें देनेकी घोषणा की है। परन्तु व्यक्तिको जिंदगी जीनेके लिए गेहूंके साथ अन्य बहुत-सी चीजोंकी जरूरत होती है। जिनको खरीदनेके लिए उसके पास पैसा नहीं है। केन्द्र सरकारको शीघ्र महंगीको काबूमें करनेके उपाय करने चाहिए। केन्द्रको आम लोगोंके हितकी योजनाओंको धरातलपर उतारना होगा अन्यथा बेरोजगारीके साथ महंगीसे त्रस्त देशकी जनता लंबे समयतक चुप बैठनेवाली नहीं है। किसी भी सरकारको बनवाने वह हटवानेमें आम आदमीकी ही सबसे बड़ी भूमिका होती है। अत: समय रहते केंद्र सरकारको महंगीपर रोक लगाकर आम आदमीकी पूरी मदद करनी चाहिए।