सम्पादकीय

नेपालमें सत्ता परिवर्तन


डा. गौरीशंकर राजहंस

नेपालमें राजनीति पल पलमें बदल रही है। अभी अभी नेपालके सुप्रीम कोर्टने वहां के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओलीको बर्खाश्त कर दिया है और यह आदेश दिया है कि देउबा को फि रसे नेपाल का प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाए। देउबा पहले भी नेपालके प्रधानमंत्री रह चुके हैं और देशमें लोकप्रिय हैं। शेर बहादुर देउबा के पी शर्मा ओली की जगह अब नेपालके नये प्रधानमंत्री बन गये हैं। सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में राष्ट्पति विद्योदेवी भण्डारीको शीघ्रा तिशीघ्र प्रधानमंत्री नियुक्त करने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्टने संसद को भी फि रसे बहाल कर दिया है जिसे के पी शर्मा ओली ने भंग कर दिया था। सुप्रीम कोर्टके इस निर्णय से के पी शर्मा ओली को बहुत बड़ा झटका लगा है।

स्ंाविधान पीठके सभी न्यायाधीशों ने यह फैसला दिया है कि संसद के अधिकतर सदस्य चाहते हैं कि शेर बहादुर देउबा को फि रसे प्रधानमंत्री बनाया जाए। भंग किये गये सदनके १४६ सांसदों ने राष्ट्रपति को ज्ञापन देकर यह प्रार्थना की है कि ओली को हटाकर देउबा को प्रधानमंत्री बनाया जाए।

यहां यह ज्ञातव्य है कि के पी शर्मा ओली पूरी तरह चीनके पिलग्गू थे और दिन रात भारत के खिलाफ  बयानबाजी करते रहते थे। विपक्ष ने ओली द्वारा संसद भंग करनेपर अदालत में चुनोती दी थी और यह कहा था कि संसद के निचले सदन की बहाली होनी चाहिये और नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा को फि र से प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाना चाहिये।ं इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री ओलीके सभी फैसलों को पलट दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा करके उसने संविधान की रक्षा की है और नेपाल में लोकतंत्र को बचाया है। परन्तु ओलीके समर्थक विपक्ष के इस दावे से सहमत नहीं हैं और विपक्ष का कहना है कि देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त कर सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के बुनियादी ढांचे के खिलाफ काम किया है। परन्तु अधिकतर मधेशी तथा बिहार, यूपीके मूल निवासी जो नेपालमें बस गये हैं और नेपाल में जिनकी संख्या बहुतायत में है, वे सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से पूर्णत: सहमत हैं और उन्होंने इसका भरपूर स्वागत किया है।

अब जब संसद फि र से बहाल हो गई है तो सभी फैसले अब संसद ही करेगी। नेपाल यद्यपि छोटा सा देश है परन्तु वहां की ८० प्रतिशत जनता हिन्दू धर्म को मानती है और भारतसे उनका बहुत बड़ा लगाव है। सदियोंसे भारत और नेपालके बीच लोगोंका आना जाना लगा रहता है और दोनों देशोंके लोगों काक आपसमें बेटी-रोटी का रिश्ता है।

जब कुछ वर्ष पहले नेपालमें राजशाही का अन्त हुआ था तो लोगों को उम्मीद जगी थी कि अब नेपालमें लोकतंत्र मजबूत होगा। परन्तु सारी उम्मीदों पर उस समय पानी फि र गया जब माओवादियों में सत्ता में दखल देना शुरू कर दिया। तब से आज तक लगातार नेपालकी सरकार अस्थिर रही है। नेपाल की सरकारमें जब माओवादियोंका वर्चस्व बढ़ गया तब चीन ने प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से दखल देना शुरू कर दिया। के पी शर्मा ओली पूरी तरह चीन के पिछलग्गू थे। अत: जब देउबा को प्रधानमत्री के रूप में नियुक्त किया तब वहां के मधेशियों तथा बिहार, उत्तर प्रदेशके मूल निवासियों ने इसका भरपूर स्वागत किया और आज भी लगता यही है कि इन मधेशियोंमें खुशी की लहर कम नहीं होगी। पीछे मुड़कर देखने से लगता है कि लोगों ने जो उम्मीद की थी कि नेपालमें लोकतंत्र मजबूत होगा वह सब समाप्त हो गयी है। देउबा सरकारके आने से भारतीय मूलके लोगों में प्रसन्नता तो जरूर हुई है। परन्तु उन्हे एक डर सता रहा है कि कहीं चीन पीछे से षडयंत्र कर देउबा सरकार को गिरा न दें। जब नयी सरकार नेपालमें बनी तो भारतमें हर वर्गके लोगों ने हृदयसे इसका समर्थन किया। भारतमें लोगोंको लगता है कि अब नेपाल आने जाने में सरकार पहले की तरह कोई अडंग़ा नहीं लगाएगी और देर या सबेर नेपालके साथ भारत के संबंध सामान्य हो जाएंगे। के पी शर्मा ओली ने भारत के खिलाफ  जो विषवमन करना शुरू कर दिया था उसे न तो भारत सरकार ने पसन्द किया था और न नेपालमें बसे भारतीय मूलके लोगों ने। उम्मीद की जानी चािहये कि अब वह दौर समाप्त होगा और नेपालमें रहने वाले भारतीय सुरक्षित रहेंगे। कुल मिलाकर देउबा सरकारके आनेसे भारत में हर पार्टीके लोगोंमें उत्साह बढ़ गया है। उम्मीद की जाती है कि पहले की तरह ही भारत और नेपालके संबंध मधुर हो जाएंगे।

                (लेखक पूर्व सांसद एवं पूर्व राजदूत हैं।)