वायु प्रदूषण आज पूरे विश्वके लिए सबसे बड़ी समस्या है। मौजूदा दौरमें यह समस्या इतनी गम्भीर हो चुकी है कि दुनियाके कई हिस्सोंमें लोग सौ प्रतिशत प्रदूषित हवामें सांस ले रहे हैं। भारत समेत पूरी दुनियामें वायु प्रदूषण भयावह रूप धारण कर रहा है, जो गम्भीर चिन्ताका विषय है। विशेषज्ञोंके अनुसार असामयिक मृत्यु और दिव्यांग होनेका चौथा बड़ा कारण वायु प्रदूषण बन चुका है। दक्षिण एशियामें लोग वायु प्रदूषणके उच्च स्तरोंसे जूझ रहे हैं। वायु प्रदूषणके कारण दक्षिण एशिया और उपसहारा अफ्रीकाके क्षेत्रोंमें मरनेवाले नवजात बच्चोंकी संख्या सर्वाधिक है। भारतने वायु प्रदूषणकी गम्भीर होती स्थितिको नियंत्रित करनेके लिए सार्थक पहल की है। इस सम्बन्धमें लोकसभामें शुक्रवारको राष्टï्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) और उसके निकटवर्ती क्षेत्रोंमें वायु गुणवत्ता प्रबन्धन आयोग विधेयक २०२१ पेश किया गया। विधेयकका उद्देश्य वायु प्रदूषणके कारणोंकी निगरानी करने समेत उनका समाधान, उन्मूलन तथा प्रदूषणको कम करने सम्बन्धी उपायोंकी पहचान करना है। इसमें पराली जलाने, यातायात प्रदूषण, औद्योगिक उत्सर्जन, सड़ककी धूल जैसे विषय शामिल हैं। विलासितापूर्ण जीवनके लिए मनुष्यका प्रकृतिसे छेड़छाडऩे विकट स्थिति पैदा कर दी है। प्राकृतिक संसाधनोंका अन्धाधुंध दोहन प्रदूषणका एक प्रमुख कारण है। हवा, पानी और मिट्टïीमें घुला प्रदूषण बेहद घातक है जिससे मानवका ही नहीं, पृथ्वीके सभी जीवधारियोंका अस्तित्व ही खतरेमें पड़ गया है। उद्योगोंसे अत्यधिक कार्बन उत्सर्जन वायुको जहरीली बनानेका प्रमुख कारक है। विकसित देश सबसे अधिक कार्बनका उत्सर्जन करते हैं उन्हें इसकी दिनों-दिन भयावह होती जा रही स्थितिसे बाहर निकलनेके लिए ठोस और सार्थक कदम उठानेकी जरूरत है। अतिवृष्टिï, बाढ़ और जानलेवा वायरसके प्रसार जैसे आपदाके लिए जलवायु असन्तुलन भी एक कारण है। हमारे वैदिक साहित्यमें मानव शरीरको पांच तत्वों आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वीसे निर्मित माना गया है। प्रकृतिने इन तत्वों और जीवोंके बीच एक सन्तुलन रखा है जिसके संरक्षणके लिए सार्थक कदम उठानेकी जरूरत है। कोरोना संकटकालमें बड़ी संख्यामें लोगोंकी मृत्यु आक्सीजनके अभावमें हुई। आक्सीजन हमें वृक्षोंसे ही मिलता है फिर भी जंगलोंकी अन्धाधुंध कटाई हो रही है। दैवी आपदाओंका मनुष्य स्वयं जिम्मेदार है। वायु प्रदूषणसे खतरा बढ़ता जा रहा है, इसे कानूनसे नहीं आम आदमीके प्रयाससे ही रोकना होगा। कल-कारखाने जो प्रदूषण फैला रहे हैं उनपर नियंत्रण लगाना जरूरी है। जहांसे प्रदूषण बढ़ रहा है उसपर रोक लगानेकी जरूरत है तभी सृष्टिïको सुरक्षित रखा जा सकता है।
योगीका उचित निर्णय
दुनियाभरमें कई प्राकृतिक आपदाएं और मानवजनित कारणोंसे सबसे ज्यादा नुकसान प्रकृतिका होता है। पेड़-पौधोंपर इसका खतरनाक असर पड़ता है। विकासके नामपर पेड़ोंको जहां काटा जा रहा है वहीं वन क्षेत्र तेजीसे घट रहे हैं। इसका सीधा असर पर्यावरणपर पड़ता है। मौसममें आ रहे बदलावसे आपदाओंकी घटनाएं बढ़ी हैं तो कहीं भारी वर्षासे बाढ़ तो कहीं सूखा पडऩा आम हो गया है। पिछले दो दशकोंसे पर्यावरण असन्तुलन बढ़ा है जिसका खामियाजा देशको उठाना पड़ रहा है। ऐसेमें उत्तर प्रदेशकी योगी सरकारने पर्यावरण संरक्षणकी दिशामें महत्वपूर्ण और अनुकरणीय कदम उठाया है। प्रदेश सरकारने विकास कार्योंके लिए पेड़ काटनेके बजाय दूसरी जगह स्थानान्तरित करनेका निर्णय किया है। वन संरक्षण अधिनियम १९८० के तहत गैर-वानिकी प्रयोगके लिए केन्द्र और राज्य सरकारोंको स्वीकृतिके लिए प्रस्ताव भेजा जाता है। इसमें ज्यादातर प्रस्ताव पेड़ोंके काटनेकी अनुमतिके होते हैं। अब इसमें समूचा पेड़ दूसरे स्थानपर रोपित करनेकी शर्त जोड़ दी गयी है। इसके लिए सम्बन्धित एजेंसीसे इसकी वचनबद्धताका प्रमाण-पत्र भी लिया जायगा। पेड़ोंको स्थानान्तरित करनेका काम मैनुअल होता है। इसमें करीब एक सप्ताहका समय लगता है और यह काम दो चरणोंमें होता है। पहले चरणमें पेड़ोंकी छटाई कर करीब डेढ़ फीटकी जड़ें छोड़कर आसपास गड्ढïा बनाया जाता है। उसके तनेको गीले जूटके बोरेसे लपेटकर दूसरे स्थानपर ले जाया जाता है, जहां पेड़के तनोंसे करीब दो गुना बड़ा गड्ढïा खोदकर पेड़ लगाया जाता है। प्रोजेक्ट और हरियालीमें सामंजस्य रखनेके लिए हार्टिकल्चर विभागने पेड़ोंके शिफ्टिंग प्लान तैयार किया है। पर्यावरणको बचानेके लिए यह जरूरी है कि अधिकसे अधिक पेड़ लगाये जायं और उनका संरक्षण हो। यह समयकी मांग भी है। ऐसेमें उत्तर प्रदेशके मुख्य मन्त्री योगी आदित्यनाथ सरकारका यह निर्णय उचित और अनुकरणीय है। यह पूरे देशमें लागू होना चाहिए।