- पटना। जेडीयू के अंदर चल रही वर्चस्व की लड़ाई अब खुल कर सामने आ गई है। नीतीश कुमार के प्रेशर में भले ही आरसीपी सिंह ने राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ दिया हो, लेकिन खुद आरसीपी सिंह और उनके समर्थक मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह को अपना नेता मानने से भी परहेज कर रहे हैं। साथ ही उपेन्द्र कुशवाहा को भी पार्टी का नेता मानने से इनकार कर रहे हैं।
वर्चस्व को लेकर जेडीयू के अंदर लड़ाई 6 अगस्त को सबके सामने आ गई, जब राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह पटना पहुंचे। पूरे शहर में स्वागत पोस्टर लगाया गया, लेकिन किसी पोस्टर में ना आरसीपी सिंह को जगह मिली ना ही प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा को। इसे लेकर आरसीपी सिंह के समर्थक भड़क गए और अब आरसीपी सिंह के स्वागत में लगे पोस्टर से ललन सिंह और उपेन्द्र कुशवाहा को आउट कर दिया गया। एक दिन के बाद फिर पोस्टर बदला ललन सिंह और उपेन्द्र कुशवाहा की पोस्टर में एक छोटे से फ़ोटो के रूप में इंट्री हुई। अब आरसीपी सिंह समर्थक खुलेआम कह रहे है कोई हमारे साथ चूक करेगा तो हम भी उसके साथ चूक करेगें।
जेडीयू से लेकर बिहार के तमाम सियासी गलियारे में ये बात जगजाहिर हो चुकी है कि आरसीपी सिंह कैसे मंत्री बने। मंत्रिमंडल के विस्तार में जेडीयू को कितनी सीटें मिलेंगी ये तय करने बहजेपी के पास भेजा था लेकिन आरसीपी खुद मंत्री बन गये। नीतीश इंतजार करते रह गये कि आरसीपी सिंह ये आकर बतायेंगे कि बीजेपी कितने मंत्री पद दे रही है, लेकिन आरसीपी खुद शपथ लेने निकल लिये। नीतीश कुमार की हालत ये थी कि वे ये भी नहीं बोल सकते थे कि उनके सबसे करीबी, 23 साल के साथी और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने ही दगा दे दिया। जानकार बताते हैं कि आरसीपी सिंह तो जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ने तक को तैयार नहीं थे। नीतीश कुमार को सख्त तेवर अपनाना पड़ा तब जाकर आरसीपी सिंह ने जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ा। नीतीश कुमार की मानें तो पार्टी में सब कुछ ठीक है ना कोई गुटबाजी है और ना ही कोई नाराजगी।