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- इस मामले में पहले दोषी फिर निर्दोष और फिर से दोषी साबित हुए तत्कालीन अधीक्षक
- कहीं स्वास्थ्य विभाग में पदस्थापना और प्रतिनियुक्ति मामले में सीएस को बचाने की पहल तो नहीं
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बिहारशरीफ। सदर अस्पताल में 15-18 आयु वर्ग के कोविड टीकाकरण के क्रम में बरती गयी लापरवाही के मामले में आज एक फिर नया मोड़ आ गया। अब फिर से तत्कालीन उपाधीक्षक को इस मामले में आरोपी करार दिया गया है। उप विकास आयुक्त द्वारा दिये गये जांच रिपोर्ट के बाद डीएम ने लापरवाही के लिए सदर अस्पताल के उपाधीक्षक, प्रबंधक, कोल्ड चेन हैंडलर सहित एएनम एवं प्रशिक्षु जीएनएम से स्पष्टीकरण पूछते हुए कार्रवाई करने का निर्देश दिया है।
बताते चले कि 15 से 18 आयु वर्ग के युवाओं के टीकाकरण के शुरुआत में हीं दो युवाओं को को-वैक्सीन के जगह कोविशील्ड दे दिया गया था, जिसके बाद सिविल सर्जन द्वारा सदर अस्पताल के उपाधीक्षक को हटा दिया गया था। इस मामले में जब कोविड को लेकर जिला के प्रभारी मंत्री ने वर्चुअल मीटिंग की थी तो अस्थावां विधायक डॉ. जितेंद्र कुमार ने मामला उठाया था और कहा था कि उपाधीक्षक की कोई गलती नहीं है, जांच होनी चाहिए, जिसके बाद जिलाधिकारी द्वारा उप विकास आयुक्त की अध्यक्षता में जांच दल बनाया गया था।
जांच दल के गठन के बाद सिविल सर्जन ने मामले की खुद जांच की और इस मामले में तत्कालीन उपाधीक्षक को क्लीन चिट देते हुए आरोप मुक्त किया था, लेकिन इसी बीच सिविल सर्जन द्वारा जिले के स्वास्थ्य कर्मियों के स्थानांतरण और चिकित्सकों का प्रतिनियुक्ति का मामला उजागर हुआ और डीएम ने इसके लिए भी जांच दल गठित कर दिया। आरोप लगा था कि बिहारशरीफ सदर अस्पताल में चहेते को उपाधीक्षक का प्रभार देने के लिए सिविल सर्जन ने पहले उपाधीक्षक को दोषी करार दिया था और फिर प्रतिनियुक्ति के बाद आरोप मुक्त कर दिया था।
बीते कल जिलाधिकारी ने सिविल सर्जन द्वारा पदस्थापना और प्रतिनियुक्ति मामले को लेकर जांच कमेटी बना दी। चर्चा था कि इस जांच का एक बड़ा मुद्दा सदर अस्पताल के उपाधीक्षक की प्रतिनियुक्ति भी हो सकती है। ऐसे में इस जांच के पहले एक नया जांच रिपोर्ट आना कई तरह की चर्चाओं को बल दे रहा है। चर्चा तो यह भी हो रही है कि कहीं यह सिविल सर्जन को बचाने की पहल तो नहीं?
हालांकि स्वास्थ्य विभाग के कर्मियों का स्थानांतरण और चिकित्सकों की प्रतिनियुक्ति अनियमित तरीके से किये जाने के मामले की जांच भी जो कमेटी कर रही है उसके अध्यक्ष उप विकास आयुक्त ही है। ऐसे में यह आसान नहीं है कि किये गये कृत्यों से सिविल सर्जन बच सके। इस मामले में जो जांच आयी है वह इसलिए भ्रम पैदा करती है कि प्रथम दृष्टया दोषी पाते सिविल सर्जन ने तत्कालीन उपाधीक्षक पर कार्रवाई की थी, लेकिन कुछ हीं दिन बाद उसी सिविल सर्जन ने स्वयं के जांच में उपाधीक्षक को निर्दोष करार दे दिया और अब एक बार फिर जांच दल ने उन्हें दोषी माना। ऐसे में लाजिमी है कि जांच पर सवाल उठेगा। आखिर कौन सा जांच रिपोर्ट सही है?
उप विकास आयुक्त की अध्यक्षता वाली टीम ने जो जांच रिपोर्ट सौंपी है उस आलोक में डीएम ने जो कार्रवाई करने का निर्देश दिया है उसमें उपाधीक्षक के अलावे सदर अस्पताल के प्रबंधक हेमंत कुमार, कोल्ड चेन हैंडलर सरिता कुमारी, एएनएम संध्या कुमारी, प्रशिक्षु जीएनएम सोनू कुमारी एवं सुरूचि कुमारी जिम्मेवार ठहराये गये है, जिनपर सिविल सर्जन को कार्रवाई करने का निर्देश मिला है।