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Agneepath scheme पर क्‍यों बिहार से लेकर गुरुग्राम तक मचा बवाल, जानें इस स्‍कीम की उपयोगिता; एक्‍सपर्ट व्‍यू


डा. संजय वर्मा। अग्निपथ योजना (Agneepath Scheme) का एक प्रत्यक्ष लाभ यह है कि सेना(Indian Army) में आने और वर्दी पहनकर देशसेवा की इच्छा रखने वाले हजारों युवाओं को अपने सपने साकार करने का मौका मिलेगा। बेशक इनमें से दो-तिहाई युवाओं की चार साल बाद सेवामुक्ति हो जाएगी, लेकिन उनके आत्मविश्वास में हुई बढ़ोतरी, अनुशासन की भावना जगने, स्वास्थ्य की जागरूकता आने और उनके नजरिये में आए फर्क से काफी ज्यादा सामाजिक परिवर्तन की उम्मीद की जा सकती है।

वाओं को सेना से जोड़ने का काम पूरी संजीदगी से हो, ताकि उसका फायदा हरेक को मिल सके। अगर पूछा जाए कि सेनाओं का प्राथमिक लक्ष्य क्या होता है तो इसका एक सहज जवाब है दुश्मनों से देश की सीमाओं की रक्षा करना। दुनिया के किसी भी देश की सेना के कुछ काम और हैं। जैसे बाढ़-भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं में जान-माल की सुरक्षा करना, दंगे आदि उन अराजक स्थितियों में हालात पर काबू पाना जब स्थितियां स्थानीय प्रशासन और पुलिस के नियंत्रण से बाहर हो गई हों।

 

इसी तरह की अन्य भूमिकाओं में सेना को काम करते देख कोई यह सवाल नहीं उठाता है कि वहां हजारों-लाखों युवाओं की क्यों भर्ती की गई है? उल्टे सेना की ऐसी भूमिकाएं लोगों में देशभक्ति का भाव भरती हैं और सैनिकों के प्रति सम्मान पैदा करती हैं, लेकिन जब इधर हमारी सरकार ने भारतीय सेना में अस्थायी भर्ती के अभियान के तौर पर एक योजना अग्निपथ का एलान किया तो बेरोजगारी से त्रस्त देश में इससे कोई राहत महसूस करने के बजाय आपत्तियों का बवंडर उठ गया है।

 

रोजगार मिलेगा या क्षमता बढ़ेगी

योजना की घोषणा के अगले ही दिन बिहार के बक्सर और मुजफ्फरनगर में युवा इसके विरोध में प्रदर्शन करने लगे। कई विश्लेषकों ने भी इस योजना पर यह कहते हुए एतराज जताया है कि बिना ज्यादा ट्रेनिंग के भर्ती किए जाने वाले युवाओं पर चार साल बाद सेवामुक्ति का जो खतरा मंडराएगा, वह उन्हें जोशीले और देश पर जान लुटाने को तैयार कर्मठ जवान की तरह काम करने नहीं देगा, बल्कि इसके विपरीत वे किसी तरह अपनी नौकरी सुरक्षित करने के दांवपेच में लग जाएंगे। इससे न तो देश में कायम बेरोजगारी का हल निकलेगा और न ही देश की उस सैन्य क्षमता में कोई उल्लेखनीय इजाफा होगा, जिसके सामने चुनौतियों के ढाई मोर्चे (पाकिस्तान, चीन और आंतरिक अस्थिरता) पहले से ही खुले हुए हैं।

 

सवाल है कि क्या टूर आफ ड्यूटी कही जा रही यह नई योजना वास्तविक सैन्य समस्याओं (मोर्चो) का समाधान है, जिसमें खास तौर से चीन की ओर से गलवन घाटी जैसी शरारतें लगातार जारी हैं। या फिर यह योजना देश की उस बेरोजगारी का कोई ठोस समाधान देती है, जिससे संबंधित आंकड़े बताते हैं कि भारत में फिलवक्त तकरीबन 5.10 करोड़ युवाओं के पास कोई रोजगार नहीं है। सेना में युवाओं की अस्थायी भर्ती होगी-ऐसी चर्चा पिछले कुछ समय से निरंतर चल रही थी।

 

अब रक्षा मंत्री ने साढ़े सत्रह साल से 21 साल के बीच के हजारों युवाओं को इस योजना में भर्ती होने और चार साल तक नौकरी करने के अलावा एकमुश्त साढ़े 11 लाख रुपये के पैकेज के साथ नौकरी से विदाई लेने का आश्वासन सामने रख दिया है। चार साल की नौकरी में युवा शुरुआती 30 हजार से लेकर अंतिम वर्ष में 40 हजार रुपये प्रतिमाह का वेतन पा सकेंगे। यही नहीं, इस अग्निपथ योजना के तहत चुने गए अग्निवीरों में से 25 प्रतिशत युवा सेना में अग्निवीर के तौर पर नियमित नौकरी का मौका भी पा सकेंगे, जिसमें चयन के लिए थोड़े सख्त मानदंड होंगे और छह महीने की अतिरिक्त ट्रेनिंग दी जाएगी। सेना में हर साल होने वाली मौजूदा 65 हजार भर्तियों की संख्या इस योजना से तकरीबन दोगुनी अवश्य हो जाएगी।

इसके अलावा अन्य फायदों पर नजर डालें तो कह सकते हैं कि सरकार पर पेंशन का बोझ कम होगा और वह रक्षा के लिए तय होने वाले बजट का एक बड़ा हिस्सा आगे चलकर सेना के आधुनिकीकरण पर खर्च कर सकेगी। अभी हमारे देश के 5.2 लाख करोड़ रुपये के कुल रक्षा बजट में से आधा वेतन और पेंशन पर खर्च होता है। अगर यह खर्च घटाया जा सके तो सेना हथियारों की खरीद और आधुनिकीकरण पर खर्च बढ़ा पाएगी। जहां तक इस योजना में हर साल भर्ती किए जाने वाले 46 हजार युवाओं का सवाल है तो एक प्रत्यक्ष लाभ यह है कि सेना में आने और वर्दी पहनकर देशसेवा की इच्छा रखने वाले हजारों युवाओं को अपने सपने साकार करने का मौका मिलेगा।

बेशक इनमें से दो-तिहाई युवाओं की चार साल बाद सेवामुक्ति हो जाएगी, लेकिन उनके आत्मविश्वास में हुई बढ़ोतरी, अनुशासन की भावना जगने, स्वास्थ्य की जागरूकता आने और उनके नजरिये में आए फर्क से काफी ज्यादा सामाजिक परिवर्तन की उम्मीद की जा सकती है। हो सकता है कि सेवा से बाहर आने के बाद उनके हाथ में 11-12 लाख रुपये की जो रकम आएगी, उसका वे सार्थक उपयोग करें और अपने समेत दूसरे युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करें।

यह भी ध्यान रखना होगा कि ‘अग्निपथ’ के रूप में भर्ती की टूर आफ ड्यूटी जैसी प्रक्रिया शुरू करने वाला भारत अकेला देश नहीं है। बल्कि इजरायल, नार्वे, स्विट्जरलैंड, उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया, रूस, चीन, यूक्रेन आदि तमाम देश में टूर आफ ड्यूटी के अंतर्गत युवाओं को अस्थायी रूप से सेना के लिए अनिवार्य रूप से अपना योगदान देना होता है। यानी वहां ऐसी नियुक्तियों को रोजगार का मौका मानने के बजाय देश के लिए एक अनिवार्यता के तौर पर योगदान देने की बाध्यता है। हालांकि हमारे देश में बेरोजगारों की फौज को देखते हुए इसमें अनिवार्य योगदान या देशभक्ति से ज्यादा रोजगार का सकारात्मक पहलू ज्यादा जोड़ा जा रहा है।

रास्ते की अड़चनें

वहीं आलोचकों की नजर में इसमें कई ऐसी समस्याएं हैं, जो न तो देश की सेना की जरूरतों को पूरा होने देती हैं और न ही बेरोजगारी रूपी समस्या का कोई स्थायी समाधान प्रस्तुत कर पाती हैं। अग्निपथ योजना की पहली समस्या भर्तियों की संख्या लगभग दोगुनी हो जाने पर सेना में ट्रेनिंग के मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर पर पैदा होने वाले दबाव की है। सैन्य प्रशिक्षण की गुणवत्ता दूसरा बड़ा सवाल पैदा करती है। मौजूदा मानदंडों के मुताबिक पंद्रह साल की सेवा के लिए चुने जाने वाले युवाओं को 44 हफ्ते की ट्रेनिंग दी जाती है, पर अग्निपथ में चार साल की सेवा के लिए करीब साल भर प्रशिक्षण मिलेगा-इसकी उम्मीद कम ही है। प्रशिक्षण की अवधि में काट-छांट होना लाजमी है। इसका असर जवानों के अनुशासन, समर्पण, लगन और देश एवं पलटन के लिए मर-मिटने के भाव पर पड़ सकता है।

अहम यह है कि चार साल की नौकरी के बाद 25 प्रतिशत युवाओं को नौकरी में बनाए रखने का जो प्रलोभन है, वह बहुतेरे युवाओं को अफसरों की जी-हुजूरी से आगे देश के प्रति समर्पण की ओर कैसे ले जा पाएगा? समस्या या चुनौती का एक स्तर सीमित प्रशिक्षण पाकर युद्ध के मोर्च पर तैनात होने वाले नौसिखिए जवानों की तैनाती से पैदा होगा। ऐसे जवान शत्रु पक्ष की ओर से मिलने वाली चुनौतियों का पूरी ताकत से कैसे मुकाबला कर पाएंगे-इसकी रूपरेखा इस नई योजना में नहीं दिखाई पड़ती है।

अगर अग्निपथ के तहत चयनित जवानों को न्यूनतम चुनौतियों वाली जगहों पर तैनात करने की तैयारी है तो सवाल है कि फिर ऐसी योजना का रोजगार देने के सिवाय आखिर क्या लाभ है? वैसे भी पेशेवर सेनाएं रोजगार देने की योजना चलाने के लिए नहीं, बल्कि सीमाओं की रक्षा करने और चुनौतियों से जूझने के लिए जानी जाती हैं। एक चिंता सेनाओं की पुरानी रेजिमेंटल संरचना में इस कारण पैदा होने वाले व्यवधान को लेकर भी जताई जा रही है, जिस पर इस योजना का असर पड़ना तय है।

बेशक बेरोजगारी का हमारे देश में जो स्तर है, उसके तहत इन भर्तियों के लिए भी कतारें लगेंगी, लेकिन इससे बेरोजगारी नामक समस्या का भी कोई ठोस हल निकलेगा-ऐसी कोई बड़ी सूरत नजर नहीं आती। यह जरूर है कि इसका थोड़ा-बहुत राजनीतिक लाभ सरकारों को मिल सकता है, क्योंकि चुनावों के वक्त उनके लिए इस मुद्दे को भुनाना आसान होगा। इसके अलावा इस संबंध में रक्षा मंत्री का यह दावा भी ठीक लगता है कि अग्निपथ योजना के अंतर्गत भारतीय सशस्त्र बलों का प्रोफाइल उतना ही युवा हो सकता है, जितना कि भारत की आबादी का है, लेकिन युवाओं को सेना से जोड़ने का यह काम पूरी संजीदगी से हो, ताकि उसका फायदा हरेक को मिल सके-यह कामना तो की ही जा सकती है।