नई दिल्ली। नासा के नए चंद्रमा राकेट ने बुधवार तड़के तीन टेस्ट डमी के साथ अपनी पहली उड़ान भरी, जो कि अमेरिका के 50 साल पहले अपोलो कार्यक्रम के बाद पहली बार अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर ले जाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
यदि तीन-सप्ताह की मेक-या-ब्रेक शेकडाउन उड़ान के दौरान सब कुछ ठीक रहा, तो राकेट एक खाली चालक दल के कैप्सूल को चंद्रमा के चारों ओर एक विस्तृत कक्षा में ले जाएगा और फिर कैप्सूल दिसंबर में प्रशांत क्षेत्र में एक स्पलैशडाउन के साथ पृथ्वी पर वापस आ जाएगा।
अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा अपने मून मिशन ‘आर्टेमिस-1’ को लगभग डेढ़ महीने के बाद एक बार फिर से लांच कर दिया है। बता दें कि ये लान्चिंग आज यानि 16 नवंबर को सुबह 11.34 से दोपहर 1.34 के बीच फ्लोरिडा के केनेडी स्पेस सेंटर से हुई। यह नासा की तीसरी कोशिश थी। इससे पहले 29 अगस्त और 3 सितंबर को भी राकेट लान्च करने का प्रयास किया गया था, लेकिन तकनीकी खराबी के चलते इसे टाल दिया गया था।
रविवार को प्रेस ब्रीफिंग में आर्टेमिस मिशन मैनेजर माइक सैराफिन ने कहा, हाल ही में फ्लोरिडा में आए निकोल तूफान ने स्पेसक्राफ्ट के एक पार्ट को ढीला कर दिया है। इसकी वजह से लिफ्ट आफ के वक्त दिक्कत हो सकती है। इसलिए हमारी टीम इस समस्या को रिव्यू कर रही है। यदि किसी कारण 16 नवंबर को राकेट लान्च नहीं होता है, तो नई तारीख 19 या 25 नवंबर हो सकती है।
क्या है NASA का आर्टेमिस-1 मून मिशन?
अमेरिका 53 साल बाद अपने मून मिशन आर्टेमिस के जरिए इंसानों को चांद पर एक बार फिर से भेजने के लिए तैयारियां कर रहा है। आर्टेमिस-1 इसी दिशा में पहला कदम है। यह मेन मिशन के लिए एक टेस्ट फ्लाइट है, जिसमें किसी एस्ट्रोनाट को नहीं भेजा जाएगा। इस फ्लाइट के साथ वैज्ञानिकों का लक्ष्य यह जानना है कि क्या अंतरिक्ष यात्रियों के लिए चांद के आस-पास सही हालात हैं या नहीं। साथ ही एस्ट्रोनाट्स चांद पर जाने के बाद पृथ्वी पर सुरक्षित लौट सकेंगे या नहीं।
नासा का ‘स्पेस लान्च सिस्टम (SLS) मेगाराकेट’ और ‘ओरियन क्रू कैप्सूल’ चंद्रमा पर पहुंचेंगे। आमतौर पर क्रू कैप्सूल में एस्ट्रोनाट्स रहते हैं लेकिन इस बार यह खाली रहेगा। ये मिशन 42 दिन 3 घंटे और 20 मिनट का है, जिसके बाद यह धरती पर वापस आ जाएगा। स्पेसक्राफ्ट कुल 20 लाख 92 हजार 147 किलोमीटर का सफर तय करेगा।
कई बार असफल हो चुका है मिशन
बता दें कि कुछ दिनों पहले ही नासा को अपना बहुप्रतिक्षित मिशन Artemis-1 मिशन वापस लेना पड़ा था । नासा को फिलहाल इस मिशन को स्थगित कर इसको वापस व्हीकल असेंबली बिल्डिंग (Vehicle Assembly Building/VAB) में भेजने का फैसला करना पड़ा है।
क्या है आर्टेमिस मिशन? यहां समझिए…
यूनिवर्सिटी आफ कोलोराडो बोल्डर के प्रोफेसर और वैज्ञानिक जैक बर्न्स का कहना है कि आर्टेमिस-1 का राकेट ‘हैवी लिफ्ट’ है और इसमें अब तक के राकेट्स के मुकाबले सबसे शक्तिशाली इंजन लगे हैं। यह चंद्रमा के आर्बिट (कक्षा) तक जाएगा, कुछ छोटे सेटेलाइट्स छोड़ेगा और फिर खुद आर्बिट में ही स्थापित हो जाएगा।
बता दें कि 2024 के आस-पास आर्टेमिस-2 को लान्च करने की प्लानिंग है। इसमें कुछ एस्ट्रोनाट्स भी जाएंगे, लेकिन वे चांद पर कदम नहीं रखेंगे। वे सिर्फ चांद के आर्बिट में घूमकर वापस आ जाएंगे। हालांकि इस मिशन की अवधि ज्यादा होगी। फिलहाल एस्ट्रोनाट्स की कंफर्म लिस्ट सामने नहीं आई है। इसके बाद फाइनल मिशन आर्टेमिस-3 को रवाना किया जाएगा। इसमें जाने वाले अंतरिक्ष यात्री चांद की सतह पर उतरेंगे। यह मिशन 2025 या 2026 के आस-पास लान्च हो सकता है। पहली बार महिलाएं भी ह्यूमन मून मिशन का हिस्सा बनेंगी। बर्न्स के मुताबिक पर्सन आफ कलर (श्वेत से अलग नस्ल का व्यक्ति) भी क्रू मेम्बर होगा। ये चांद के साउथ पोल में मौजूद पानी और बर्फ पर रिसर्च करेंगे।
कितनी है आर्टेमिस मिशन की लागत?
नासा आफिस आफ द इंस्पेक्टर जनरल के एक आडिट के अनुसार, 2012 से 2025 तक इस प्रोजेक्ट पर 93 बिलियन डालर यानी 7,434 अरब रुपए का खर्चा आएगा। वहीं, हर फ्लाइट 4.1 बिलियन डालर यानी 327 अरब रुपए की पड़ेगी। इस प्रोजेक्ट पर अब तक 37 बिलियन डालर यानी 2,949 अरब रुपए खर्च किए जा चुके हैं।
नासा के मीडिया प्लेटफार्म पर होगा स्ट्रीम
आर्टेमिस मिशन लान्च को नासा के मीडिया प्लेटफार्म- नासा टेलीविजन पर एजेंसी की वेबसाइट और नासा ऐप और इसके सोशल मीडिया हैंडल ट्विटर, फेसबुक, लिंक्डइन पर भी लाइव-स्ट्रीम किया गया है।