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ISIS की प्लानिंग- कश्मीर में आतंक के खिलाफ लड़ाई मुश्किल बना सकता है ड्रोन अटैक


नई दिल्ली. नवंबर 2014 की एक सुबह फेड एक्स डिलीवरी (FedEx) वैन ने तुर्की के शहर सनालिउर्फा में एक ‘अपार्टमेंट’ के बाहर डिलीवरी करना शुरू किया. ये सिलसिला हर कुछ हफ्ते में चलता रहता. तुर्की का ये शहर एक घाटी में स्थित है, जहां 5000 साल पहले इंसानों के नियोलिथिक पूर्वजों ने खेती का काम शुरू किया था. फेड एक्स के डिलीवरी बॉक्स में रिमोट कंट्रोल, प्रोग्राम पैड, सॉफ्टवेयर, एंटीना, कैमरा पॉड्स, माइक्रो टर्बाइन इंजन: यह एक ऐसा उत्पाद है, जो बड़ी तकनीकी क्रांति की देन है. बांग्लादेश में पैदा हुआ और ग्लेमोर्गन में शिक्षित कम्प्यूटर इंजीनियर सिफुल हक सुजन सीमाई इलाके से एक घंटे की दूरी पर स्थित रक्का में इस्लामिक स्टेट के हेडक्वार्टर में उन उत्पादों का इंतजार था, जिन्हें जोड़कर एक नया हथियार बनाना था. सुजन ने आईईडी ढोने वाले गाइडेड ड्रोन (IED Guided Drone) का निर्माण किया और उसके बाद आतंकी समूहों की ओर से व्याप्त खतरा हमेशा के लिए बदल गया.

रविवार की सुबह एक ऐसे ही ड्रोन के जरिए जम्मू स्थित भारतीय वायुसेना (Indian Air Force) के बेस में 1.5 किलोग्राम का प्रेशर एक्टिविटे़ड एक्सप्लोसिव डिवाइस गिराया गया. ये एक्सप्लोसिव डिवाइस भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टरों से कुछ ही मीटर की दूरी पर गिरा, शायद ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम के को-ओर्डिनेट्स में एरर की वजह से ऐसा हुआ हो. इन को-ऑर्डिनेट्स का इस्तेमाल ड्रोन को गाइड करने के लिए किया जाता है.

‘ड्रोन’ को पकड़ पाना बेहद मुश्किल
मनी कंट्रोल के लिए लिखे प्रवीण स्वामी के लेख के मुताबिक साल 2018 से ही लश्कर ए तैयबा नियंत्रण रेखा पर छोटे-छोटे ड्रोन के जरिए हथियारों और विस्फोटकों की सप्लाई कर रहा है. ये पहली बार है, जब बांग्लादेशी सुजन के द्वारा बनाई गई ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल आतंकियों द्वारा हमले के लिए किया गया. एक्सपर्ट्स के हवाले से फर्स्ट पोस्ट ने 2019 में खबर दी थी कि ये सिर्फ समय की बात है, जब आतंकी सीमा पार से ड्रोन के जरिए हमले को अंजाम देंगे. एक्सपर्ट्स को सिर्फ इस बात की चिंता थी कि सुजन द्वारा बनाई इस तकनीक से उपजे खतरे का समाधान कैसे किया जाएगा?