नई दिल्ली, । वित्त वर्ष 2022-23 का आर्थिक सर्वेक्षण (Economic Survey 2022-23) केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से संसद में पेश कर दिया गया है। आर्थिक सर्वेक्षण वित्त मंत्रालय द्वारा जारी की गई एक वार्षिक रिपोर्ट है। यह पिछले एक साल में देश के आर्थिक प्रगति और प्रदर्शन का लेखा -जोखा होता है। इसे हर साल बजट से पहले पेश किया जाता है।
इस बार का आर्थिक सर्वेक्षण काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि ये ऐसे समय पर पेश किया गया है, जब देश वैश्विक अस्थिरता के कारण महंगाई और उच्च ब्याज दरों का सामना कर रहा है।
आर्थिक सर्वेक्षण की मुख्य बातें
- चालू वित्त वर्ष की विकास दर 7 प्रतिशत के मुकाबले देश की अर्थव्यवस्था 2023-24 में 6.5 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी। 2021-22 के दौरान ये आंकड़ा 11 प्रतिशत का था। वहीं, अगले वित्त वर्ष में नॉमिनल टर्म में 11 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी।
- विकास दर को निजी खपत, अधिक कैपेक्स, मजबूत कॉर्पोरेट बैलेंस शीट, छोटे व्यवसायों द्वारा लोन की मांग और शहरों में मजदूरों की वापसी से सहारा मिल रहा है। कोरोना की चुनौतियों से देश उबर चुका है।
- रियल जीडीपी विकास दर 6-6.8 प्रतिशत के आसपास रह सकता है, हालांकि, इकोनॉमिक और राजनीति माहौल पर निर्भर करता है।
- चालू खाता घाटा (Current account deficit) बढ़ने की संभावना है। इस पीछे की वजह कमोडिटी की कीमत उच्च स्तर पर रहना है। इस कारण डॉलर के मुकाबले रुपये पर भी दबाव बना रह सकता है। आरबीआई के ताजा डाटा के मुताबिक, सितंबर तिमाही में चालू खाता घाटा बढ़कर जीडीपी का 4.4 प्रतिशत रह सकता है, जो कि अप्रैल-जून तिमाही में जीडीपी का मात्र 2.2 प्रतिशत था।
- भारत के पास चालू खाता घाटा और विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करने के लिए भारत के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है।
- छोटे व्यवसायों के लिए लोन की मांग में जनवरी- नवंबर के बीच 30.5 प्रतिशत की बढ़त देखने को मिली है।
- चालू वित्त वर्ष में सरकार का पूंजीगत व्यय 63.4 प्रतिशत से बढ़ा है।
- सर्वे में बताया गया है कि महंगाई अधिक रहने के कारण ब्याज दरें उच्च स्तर पर सकती हैं।