रविवार की सुबह एक ऐसे ही ड्रोन के जरिए जम्मू स्थित भारतीय वायुसेना (Indian Air Force) के बेस में 1.5 किलोग्राम का प्रेशर एक्टिविटे़ड एक्सप्लोसिव डिवाइस गिराया गया. ये एक्सप्लोसिव डिवाइस भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टरों से कुछ ही मीटर की दूरी पर गिरा, शायद ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम के को-ओर्डिनेट्स में एरर की वजह से ऐसा हुआ हो. इन को-ऑर्डिनेट्स का इस्तेमाल ड्रोन को गाइड करने के लिए किया जाता है.
‘ड्रोन’ को पकड़ पाना बेहद मुश्किल
मनी कंट्रोल के लिए लिखे प्रवीण स्वामी के लेख के मुताबिक साल 2018 से ही लश्कर ए तैयबा नियंत्रण रेखा पर छोटे-छोटे ड्रोन के जरिए हथियारों और विस्फोटकों की सप्लाई कर रहा है. ये पहली बार है, जब बांग्लादेशी सुजन के द्वारा बनाई गई ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल आतंकियों द्वारा हमले के लिए किया गया. एक्सपर्ट्स के हवाले से फर्स्ट पोस्ट ने 2019 में खबर दी थी कि ये सिर्फ समय की बात है, जब आतंकी सीमा पार से ड्रोन के जरिए हमले को अंजाम देंगे. एक्सपर्ट्स को सिर्फ इस बात की चिंता थी कि सुजन द्वारा बनाई इस तकनीक से उपजे खतरे का समाधान कैसे किया जाएगा?