देशमें कोरोना संक्रमणकी रफ्तार भयावह रूपसे बढ़ रही है और इसमें कमी नजर नहीं आ रही है, जो गम्भीर चिन्ताका विषय है। शुक्रवारको कोरोना वायरसके नये मामलोंमें १३ प्रतिशतकी वृद्धि देखी गयी। पिछले २४ घण्टेमें ८१,४६६ मामले दर्ज किये गये और ४६९ लोगोंकी मृत्यु हुई। विगत दो महीनोंमें कोरोना मामलोंमें दस गुना वृद्धि इसकी भयावहताकी ओर संकेत करती है। अक्तूबरके बाद यह सर्वाधिक आंकड़ा है। देशमें कुल संक्रमितोंकी संख्या १,२३,३१ हजारके ऊपर पहुंच गयी है। अभी सक्रिय मरीजोंकी संख्या ६,१४,६९६ है। वहीं ठीक होनेवालोंका आंकड़ा १,१५,२५,०३९ पर पहुंच गया है। पिछले २४ घण्टोंमें ५०,३५६ लोगोंने कोरोनाको परास्त किया। सबसे अधिक खराब और चिन्ताजनक स्थिति महाराष्टï्रकी है। इसके बाद छत्तीसगढ़ और कर्नाटकका स्थान है। भारतमें कोरोना एक बार फिर कहर बनता दिख रहा है। देशमें युद्ध स्तरपर टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है लेकिन हालात बिगड़ते ही जा रहे हैं। भारत सरकारने टीकाकरण अभियानको तेज गति दी है। अब अप्रैल महीनेमें प्रतिदिन और २४ घण्टे टीके लगाये जायंगे। छुट्टिïयोंके दिन भी टीकाकरण केन्द्रोंमें यथावत कार्य होते रहेंगे। गुरुवारसे ४५ वर्ष और उससे अधिक उम्रवाले सभी लोगोंके लिए टीकाकरणका कार्य शुरू कर दिया गया है, जो प्रशंसनीय कदम है। केन्द्र सरकारने राज्योंको आश्वस्त किया है कि टीकाकी कोई कमी नहीं है। इसकी आपूर्तिके लिए कोल्ड चेन तैयार है। राज्योंको उनकी आवश्यकताके अनुसार टीके उपलब्ध कराये जायंगे। टीका केन्द्रोंकी समुचित निगरानी भी आवश्यक है क्योंकि इन केन्द्रोंपर अनियमितताओंकी शिकायतें भी मिली हैं। इसका त्वरित निस्तारण होना चाहिए। वैसे देशमें अबतक छह करोड़ ८७ लाखसे अधिक लोगोंको टीके लगाये जा चुके हैं। अप्रैल माहके अन्ततक बड़ी संख्यामें लोगोंको टीके लगा दिये जायंगे लेकिन केन्द्र और राज्य सरकारोंको दवाईके साथ अब कड़ाई करनेकी भी जरूरत है। हर राज्यकी स्थितिको देखकर आवश्यक सख्ती बरती जाय। एम्स दिल्लीके निदेशक डाक्टर रणदीप गुलेरियाका कहना है कि यदि सख्त कदम नहीं उठाये गये तो देश गम्भीर संकटकी स्थितिमें फंस सकता है। इसलिए सभी प्रभावित क्षेत्रोंमें कड़े कदम उठानेकी जरूरत है। मास्क नहीं लगानेवालोंको दण्डित किया जाना चाहिए। साथ ही बचावके सभी उपायोंका सख्तीसे अनुपालन भी अत्यन्त आवश्यक है।
वृद्ध जनोंका संरक्षण
परिवारके बुजुर्गोंको प्यार एवं सम्मान देनेके बजाय उनका तिरस्कार करने और उनसे पीछा छुड़ानेका प्रयास करनेवाली सन्तानोंको सबक सिखानेकी उत्तर प्रदेशकी योगी आदित्यनाथकी सरकारकी योजना सराहनीय और अन्य राज्योंके लिए अनुकरणीय है। परिवारोंमें माता-पिता और वरिष्ठï नागरिकोंकी अनदेखी, उनके साथ दुव्र्यवहारकी बढ़ती घटनाओंको देखते हुए संप्रग सरकारने २००७ में माता-पिता और वरिष्ठï नागरिक भरण-पोषण एवं कल्याण कानून बनाया था। दुर्भाग्यकी बात है कि यह सिर्फ कानूनकी किताबों या सन्तानोंसे सताये जानेके कारण वकीलोंकी शरण लेनेवाले वृद्ध जनोंतक सीमित रह गया है। इस कानूनके तहत वरिष्ठï नागरिकका परित्याग दण्डनीय अपराध है। इसके बावजूद देशमें बूढ़े माता-पिताके परित्यागकी घटनाएं आम है। पिछले कुछ दशकोंके दौरान सामाजिक मूल्योंमें आये बदलाव और संस्कारोंमें गिरावटके कारण परिवारोंमें वृद्ध माता-पिता और दूसरे बुजुर्गोंको बोझ समझा जाने लगा है। सम्पन्नताकी सीढिय़ोंपर आगे बढ़ रहे पुत्र-पुत्रियों, बहुओं और दामादोंके आचरणसे घरकी चहारदीवारीके भीतरका विवाद अदालतोंमें पहुंचने लगे हैं। ऐसेमें उत्तर प्रदेश सरकारने ऐसी सन्तानोंको सम्पत्तिसे बेदखल करनेके लिए माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकोंके भरण-पोषण एवं कल्याण नियमावली २०१४ में संशोधन कर इसे और सख्त बनानेवाली है। राज्य विधि आयोगने संशोधनका ड्राफ्ट तैयार कर शासनको सौंपा है। जल्द ही सरकार इसे मंजूरी देकर अधिसूचित करनेकी तैयारी कर रही है। यदि अन्य राज्य सरकारें भी इस कानून और इसके प्रावधानोंको कड़ाईसे लागू करनेका निर्णय कर ले तो निश्चित ही वृद्धिजनोंको अपने ही घरोंमें बेगानों जैसी जिन्दगी गुजारनेके लिए मजबूर नहीं होना पड़ेगा। कानून तो ठीक है परन्तु सिर्फ कानूनके तहत इस तरहकी कुप्रवृत्तिको समाप्त नहीं किया जा सकता। इसके लिए संस्कार गत सोचकी जरूरत है। इसके साथ ही पर्याप्त संख्यामें न्यायाधिकरण स्थापित करनेकी आवश्यकता है, ताकि उपेक्षाओं और अत्याचारोंसे पीडि़त माता-पिताको कम समयमें न्याय मिल सके।