हृदयनारायण दीक्षित
योग शारीरिक व्यायाम नहीं है। व्यायाममें ऊर्जाका उपयोग होता है। योगमें ऊर्जा प्राप्त होती है। सामान्यतया तमाम बीमारियोंको दूर करनेके लिए योगको उपयोगी बताया जाता है। भारतीय चिंतनमें योग दर्शन भी है।
सामान्यतया तमाम बीमारियोंको दूर करनेके लिए योगको उपयोगी बताया जाता है। लेकिन भारतीय चिंतनमें योग एक महत्वपूर्ण दर्शन भी है। इसका लक्ष्य कैवल्य या मुक्तिकी प्राप्ति है। यह दर्शनके साथ विज्ञान भी है। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीके नेतृत्वमें योगको अन्तरराष्ट्रीय मान्यता मिली है। कोरोना महामारीके दौरान भी योगकी अन्तरराष्ट्रीय चर्चा है। योग राष्ट्रीय स्वास्थ्यका मुख्य उपकरण भी है। योग अंतरराष्ट्रीय चर्चामें रहता है। भारतीय राष्ट्र जीवनमें ‘योगÓ शब्दकी सघन उपस्थिति है। उदाहरणार्थ बिना प्रयास जुडऩा या किसीसे मिलना ‘संयोगÓ है। अलग हो जाना ‘वियोगÓ है। किसी वस्तुको सहायक बनानेका योग ‘उप-योगÓ है। उसका प्रयोग करना ‘प्रयोगÓ है। आरोपित करना ‘अभियोगÓ है। उत्पादक योग ‘उद्योगÓ है। शक्ति और वस्तुका गलत प्रयोग ‘दुरुपयोगÓ है। शक्तिका जवाबी योग ‘प्रतियोगÓ है। इसी तरह ज्ञानको मुक्तिका उपकरण बनना ‘ज्ञानयोगÓ है, भक्तिके रास्ते मुक्ति ‘भक्तियोगÓ है। कर्मप्रधानता ‘कर्मयोगÓ है। संसारको माया और ब्रह्मïको सत्य जानना ‘संन्यास योगÓ है। गीताके अनुसार कर्मकी कुशलता भी योग है। ज्योतिष विज्ञानमें ग्रहोंकी स्थिति भी योग है। ग्रह स्थितिका कल्याणकारी होना ‘सुयोगÓ है। आयुर्वेदमें औषधियोंको लोकहितमें एक साथ मिलाना भी योग है। गणितमें अंकोंका जोड़ भी योग है। योग भारतकी आश्चर्यजनक खोज है।
भारत योग विज्ञानकी जन्मभूमि है। ऋग्वेदमें योग हजारों बरस पहलेसे है। ऋग्वेदके एक मंत्रमें कहते हैं जो जागे हुए हैं उन्हें सामगान प्राप्त होते हैं। मंत्र उनकी कामना करते हैं। यह सामान्य जागरण नहीं है। सामान्य जागरण हम लोगोंके जीवनमें प्रतिदिन आता जाता है। रात्रिमें निंद्रा, दिनमें जागरण लेकिन ऋग्वेदके ऋषि इस जागरणकी चर्चा नहीं कर रहे हैं। जागरण शब्दका अर्थ योग जागरणसे है। ऋग्वेदके ऋषिने योग जागरणकी ओर ही ध्यानाकर्षण किया है। गीतामें भी योगका उल्लेख है। गीताके बड़े भागमें योग विज्ञानकी उपस्थिति है। बुद्धने भी ढेर सारी यौगिक क्रियाओंका उल्लेख किया है। परम्पराके अनुसार योगके प्रथम प्रवक्ता हिरण्यगर्भ बताये गये हैं। वेदोंमें हिरण्यगर्भका अर्थ व्यक्तिवाची नहीं है। यह सम्पूर्ण अस्तित्वका बोध कराता है। सृष्टिके आदिकालसे योगकी उपस्थिति मानी जाती है। योगको व्यवस्थित विज्ञान बनानेका कार्य पतंजलिने किया। वह पुष्पमित्र शुंगकी मंत्रिपरिषदमें थे। उन्होंने पाणिनिके व्याकरणपर महाभाष्य लिखा था। उन्होंने ही ‘योगसूत्रÓ नामक महान ग्रन्थ लिखा। योगसूत्रमें चित्तवृत्तियोंका सूक्ष्म विश्लेषण है। पतंजलिके पहले कपिलने सांख्य दर्शनमें प्रकृतिके तत्व समझाये थे। उन्होंने कहा कि प्रकृतिके तीन गुण ही गुणोंके साथ खेल करते रहते हैं। गुणोंका यह खेल तटस्थ भावसे देखना चाहिए। गुणोंके प्रभावमें होना दु:ख है। इससे मुक्त हो जानेमें सुख है। गीतामें सांख्य दर्शनको अतिरिक्त महत्ता मिली। श्रीकृष्णने स्वयंको भी कपिल बताया था।
दु:ख सम्पूर्ण मानवताकी समस्या है। पश्चिमी दृष्टिमें दु:खका कारण आर्थिक अभाव है। भोग सुख है, ज्यादा भोग ज्यादा सुख है। उनकी मानें तो मनुष्य मूल रूपमें उपभोक्ता इकाई है। भारतीय दर्शनमें दु:खका कारण अज्ञान है। भोग सुख नहीं देते, ज्यादा भोग ज्यादा लोभ देते हैं। मनुष्य तनावग्रस्त होता है। लोभमें बाधासे क्रोध आता है। क्रोध बुद्धिनाशी है। बुद्धिनाशसे स्मृतिक्षय होती है। पतंजलिने दु:ख दूर करनेकी वैज्ञानिक पद्धति दी। पतंजलिके अनुसार सभी दु:खोंकी जड़ मनुष्यकी चित्तवृत्तियां है। प्रख्यात मनोविज्ञानी सिगमण्ड फ्रायडने भी मन-कामनाको सभी क्रियाओंका केन्द्र माना और नया नाम दिया- ‘लिविडोÓ। फ्रायडने भी मनका गहन विश्लेषण किया था। उसे तीन तरहका बताया- क्षिप्त (साधारण), विक्षिप्त और मूढ़ मन। पतंजलिने मूढ़, क्षिप्त (साधारण), विक्षिप्त, एकाग्र और निरुद्ध सहित चित्तकी पांच अवस्थाएं बतायीं। उन्होंने चित्तवृत्तियोंकी समाप्तिको योगका लक्ष्य बताया। भक्ति, भजन आदि भी मन ठीक करते हैं। लेकिन योगमें चित्तवृत्ति ही असली बात है। बाईबिलमें कहा गया है-‘धन्य हैं वे जो मन के दीन (अचंचल) हैं, स्वर्गका राज्य उनका है।Ó यानी स्वर्ग मनका स्वभाव है, धनका नहीं। इसके पहले मनकी एकाग्रतापर जोर देकर कहा गया है कि मन फिराओ, स्वर्गका राज्य निकट है। मनको खास दिशामें मोडऩा योगाभ्यास है। बाइबिलमें भी इसके संकेत हैं। लंदन विश्वविद्यालयके प्रोफेसर ए.एल. बाशमने ‘द वंडर दैट वाज इंडियाÓ में बताया कि ‘योगÓ पश्चिममें सुविदित है और अंग्रेजी शब्द ‘योकÓ से सम्बधित है। अंग्रेजी शब्दकोषमें ‘योकÓ का अर्थ संधि और जोडऩा, बांधना है। योग तनावको दूर करनेका भी सहज विज्ञान है। पतंजलिके सूत्र बीजगणित जैसे हैं। वह आसन, प्राणायाम और ध्यानके माध्यमसे स्वयंका बोध (समाधि) कराते हैं। आसन और प्राणायाम सीधे सरल शब्द हैं, लेकिन ध्यान और समाधि योगकी तकनीकी शब्दावली हैं। यहां ध्यान एकाग्रता है। पतंजलिके अनुसार ध्यानका केन्द्र उपकरण है। यहां प्रीतिकर विषयपर ध्यानकी सुविधा है-‘यथाभिमतध्याना द्वाÓ अर्थात जिसका जो अभिमत हो उसपर ध्यान करे। अथवा ईश्वरपर प्राण पूरा ध्यान लगाये- ‘ईश्वर प्रणिधाना द्वाÓ। साधनाका एक विकल्प ईश्वर भी है। वह ईश्वरकी परिभाषा करते हैं- क्लेश, कर्म, कर्मफल और वासनासे असंबद्ध चेतना-विशेष ईश्वर है। यहां ईश्वर विशेष चेतना है। शासक नहीं है।
आसन, प्राणायाम एवं ध्यानसे मन और बुद्धिपर चमत्कारिक प्रभाव पड़ते हैं। स्मृति शुद्ध होती है। चित्त निर्विकार होता है। पतंजलिने बुद्धिके लिए ऋतंभरा नामक बड़ा प्यारा विशेषण लगाया है- ऋतंभरा तत्र प्रज्ञा। सामान्य बुद्धि ऋतम्भरा नहीं होती। ऋत ब्रह्मïाण्डका संविधान है। योगसिद्ध व्यक्तिकी प्रज्ञा प्रकृतिके संविधानसे जुड़ जाती है और ऋतम्भरा हो जाती है। पतंजलिकी योग समाधि स्थायी आनन्द है और कैवल्य महासिद्धि है। योग परिपूर्ण आनन्दका भौतिक विज्ञान है। स्वामी रामदेवने पतंजलिको पुनप्र्रतिष्ठित किया है। उन्होंने योग विज्ञानको घर-घर पहुंचाया है। वह योग शिक्षणको लोकतक ले गये हैं। उन्होंने आधुनिक भारतमें सर्वत्र योगका उपयोग पहुंचाया है। वह प्रशंसाके पात्र हैं। योग प्राकृतिक ऊर्जाका बीज है। गुरू गोरखनाथने योग बीज नामक ग्रंथमें लिखा है योगात्परतरं पुण्यं योगात्परतरं सुखम। योगात्परतरं सूक्ष्मं योगमार्गात्परं न हि॥ (योगबीज- ८७) कहते हैं कि ‘न तो योगसे श्रेष्ठ कोई पुण्य है, न कोई सुख है, न सूक्ष्म ज्ञान है, न साधनाका कोई श्रेष्ठ मार्ग है। योगसे श्रेष्ठ आनन्द या मुक्ति देनेवाला मोक्ष प्रदान करनेवाला दूसरा मार्ग नहीं है।Ó योग भारतकी ओरसे विश्व मानवताके लिए उत्तम पुरस्कार है।