सम्पादकीय

अफगानिस्तानमें बाइडेनकी चुनौती


टी.मनीष
नौसितम्बर २००१ को अमेरिकापर हुए आतंकी हमलेके मद्देनजर अमेरिकी तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुशने ७ अक्तूबर २००१ को आप्रेशन एंड्यूरिंग फ्रीडमको हरी झंडी दे दी। इसका उद्देश्य तालिबान और अल कायदासे अफगानिस्तानका छुटकारा पाना था। १७ महीनोंके लिए बुश-चिनाय-रम्सफील्डके तहत तत्कालीन अमेरिकी प्रशासनने उस युद्धको बहुत तेजीसे आगे बढ़ाया। तबाह देशको और तबाह कर दिया गया। यह काररवाई तबतक चलती रही, जबतक कि तालिबान और अल कायदाका नेतृत्व पाकिस्तान और यहांतक कि ईरान भाग नहीं गये। ब्लैक साइट्स, वाटर बोॄडग, रैनडीशन तथा ग्वांटेनामो कुछ ऐसे नये शब्द थे जो दुनियाभरके लोगोंके रोजमर्रा जीवनमें प्रवेश कर गये। २० मार्च २००३ को अमेरिकाने इराकपर हमला बोला और इसके तुरन्त बाद अफगानिस्तान बुश प्रशासनके लिए एक जल क्षेत्र बन गया। जनवरी २००८ में जब बुशने कार्यालय संभाला तब अफगानिस्तानमें अमेरिकी सैनिकोंकी संख्या ४७,००० थी। वहांपर ५० हजारसे अधिक नाटो सैनिक तथा अफगान नैशनल आर्मीके ७० हजार सैनिक थे। हालांकि यह मिशन योजनाके तहत सफल नहीं हुआ। २२ दिसम्बर २००१ को हामिद कारजेईके पदभार संभालनेके दौरान और नागरिक प्रशासन होनेके बावजूद अफगानिस्तान सरकार और वहांपर गठबंधन सेनाकी पकड़ सबसे बेहतर स्थितिमें थीं। बराक ओबामाको युद्ध विरासतमें मिला। डैमोक्रेटिक राष्ट्रपति पदके नामित उम्मीदवार ओबामाने १९ जुलाई, २००८ को अफगानिस्तानकी यात्रा की। उन्होंने इराकमें अमेरिकी भागीदारी तथा अफगानिस्तानमें अमेरिकी सेनाकी भागीदारीके बीच एक अंतर बना दिया। फरवरी २००९ में ओबामाने अमेरिकी सैनिकोंकी संख्यामें २१ हजारकी वृद्धि की, जिसमें चार हजार सैन्य प्रशिक्षक शामिल थे। इसके दस महीने बाद पैंटागन तथा जमीनी कमांडरके दबावके आगे झुकते हुए ओबामाने अफगानिस्तानमें ३० हजार सैनिकोंकी वृद्धिकी घोषणा कर डाली। इसके अलावा ४० हजार नाटो सैनिक पहलेसे ही उस देशमें अपनी ड्यूटी निभा रहे थे। अमेरिकी सैनिकोंकी कुल गिनती एक लाख हो गयी।
हालांकि स्थिति स्थिर नहीं हुई और तालिबान जमीनपर कायम रहे। हालांकि देशकी ओरसे इसकी पकड़ कम होती गयी लेकिन इसका पूरा प्रभाव बढ़ता चला गया। २८ दिसम्बर, २०१४ को अमेरिका तथा नाटोका अफगानिस्तानमें युद्ध अभियान समाप्त हुआ। इसके बाद आप्रेशन फ्रीडम सैंटीनल और नाटोके नेतृत्ववाले संकल्प समर्थनकी शुरुआत की गयी। इसका मुख्य उद्देश्य आतंकवाद विरोधी समूहोंको संचालित करनेके लिए अल कायदा और इसके स्थानीय सहयोगी आईएसआईएस जैसे आतंकी समूहोंको निशाना बनाना था। इसके अलावा तालिबानसे लडऩेमें मददके लिए स्थानीय अफगान सुरक्षाके निर्माणपर ध्यान केंद्रित करना था। बराक ओबामाने डोनाल्ड ट्रम्पको अफगान युद्ध सौंप दिया, जिन्होंने अपने २०१६ के चुनावी अभियानके दौरान अफगानिस्तानमें अमेरिकाकी निरन्तर उपस्थितिकी भारी आलोचना की थी। हालांकि २१ अगस्त २०१७ को अपने कार्यकालके आठवें महीनेमें उन्होंने फोर्ट मायरमें घोषणा की, मैं अफगानिस्तानमें अमेरिकाके मूल हितोंके बारेमें तीन मूलभूत निष्कर्षोंपर पहुंचा हूं। सबसे पहले हमारे देशके जबरदस्त बलिदानों, सम्माननीय और स्थायी परिणामकी तलाश करनी चाहिए जो किये गये हैं। विशेष रूपसे जीवनके बलिदानके रूपमें। ९/११ हमारे इतिहासमें सबसे खराब आतंकी हमला था, जो अफगानिस्तानसे योजनाबद्ध और निर्देशित था क्योंकि उस देशमें एक ऐसी सरकारका शासन था जिसने आतंकवादियोंको आराम और आश्रय दिया था। जल्दबाजीमें अमेरिकी सैनिकोंकी वापसी एक वैक्यूमको बना देगी जिसे आईएसआईएस तथा अल कायदा तुरंत ही भर देंगे, जैसा कि ११ सितम्बरको हुआ था। तीसरा और अंतमें मैंने निष्कर्ष निकाला है कि अफगानिस्तानमें हम जिस सुरक्षा खतरेका सामना कर रहे हैं, वह एक विशाल और व्यापक क्षेत्र है। आज बीस अमेरिकी नामित विदेशी आतंकी संघटन अफगानिस्तान तथा पाकिस्तानमें सक्रिय हैं। दुनियामें कहीं भी किसी क्षेत्रमें इन दोनों देशोंपर अधिक एकाग्रता रखी गयी है।
एक साल बाद २१ सितम्बर २०१८ को उन्होंने तालिबानके साथ एक समझौतेकी कोशिश करनेके लिए अमेरिकी विशेष प्रतिनिधिके रूपमें राजदूत जल्मेई खलीलजादको नियुक्त किया। २९ फरवरी २०२० को खलीलजाद और मुल्ला अब्दुल गनीने दोहामें अफगानिस्तानमें शांति लानेके समझौतेपर हस्ताक्षर किये। काबुलमें सरकारके बीच अंतर अफगान वार्ता १२ सितम्बरको शुरू हुई। तालिबानके साथ बातकी राजनीतिक भूमिका निभानेके लिए इसे शुरू किया गया था। समवर्ती हिंसाके स्तर घटनेकी बजाय बढ़ रहे हैं। अक्तूबर २०२० में अफगानिस्तानमें कमसे कम ३६९ सरकारी समर्थक तथा २०१२ अन्य नागरिकोंको मार डाला गया। यह सितम्बर २०१९ के बादसे एक महीनेमें उच्चतम नागरिक मृत्युका आंकड़ा है। यह वह स्थिति है जो बाइडेनको विरासतमें मिली है। एक पत्रिकाके अंशमें उन्होंने कहा, यह हमेशाके लिए युद्धको समाप्त करनेका अतीत है। हालांकि यह कहना आसान है कि यदि बाइडेन तालिबानके साथ अमेरिकी सैनिकोंकी संख्या २५०० से नीचे लानेकी दोहा निकास योजनासे चिपके रहते हैं तो सौदेबाजीका अंत नहीं होनेके कारण यह संदिग्ध है कि क्या अशरफ गनी सरकार पकड़में आ सकेगी। अमेरिकाने जो अपना खून खर्च किया है, वह क्या व्यर्थ चला जायगा।