नये कृषि कानूनोंके खिलाफ पिछले लगभग ढाई महीनेसे चल रहे किसानोंके आन्दोलनके बीच प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीने सोमवारको राज्यसभामें किसानोंको बड़ा भरोसा देते हुए उन्हें आन्दोलन समाप्त कर साथ मिल-बैठकर बात करनेको कहा है। राष्टï्रपतिके अभिभाषणपर धन्यवाद प्रस्तावपर उन्होंने यह भी कहा कि कृषि कानून जरूरी कानून है और इन्हें लागू करनेका यह सही समय भी है। उन्होंने कहा कि आन्दोलनकारियोंको समझाते हुए देशको आगे ले जाना होगा। आओ मिलकर चलें, अच्छा कदम है, किसी न किसीको करना था, मैंने किया है, गालियां मेरे हिस्सेमें जा रही हैं, जाने दो। कृषिमंत्री लगातार काम कर रहे हैं। एक-दूसरेको समझने-समझानेकी जरूरत है। किसान आन्दोलन कर रहे हैं, यह उनका अधिकार है लेकिन वहां बुजुर्ग बैठे हुए हैं, यह अच्छी बात नहीं है। हम मिलकर बात करेंगे। प्रधान मंत्रीने यह भी कहा कि एमएसपी था, एमएसपी है और रहेगा। हमें भ्रम नहीं फैलाना चाहिए। उन्होंने पूर्व प्रधान मंत्री चौधरी चरण सिंहका उल्लेख करते हुए कहा कि कम जमीनवाले किसानोंकी संख्या आज बढ़कर ६८ प्रतिशत हो गयी है। आज ८६ प्रतिशत ऐसे किसान हैं, जिनके पास दो हेक्टेयरसे कम जमीन है। ऐसे १२ करोड़ किसान हैं। क्या इनके प्रति हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं है। हर कानूनमें अच्छे सुझावोंके बाद कुछ समयके बाद बदलाव होते हैं। अच्छे सुधारोंके साथ हमें आगे बढऩा होगा। प्रधान मंत्रीने किसानोंको जो बड़ा भरोसा दिया है, वह अच्छी बात है। किसानोंका आन्दोलन लम्बे समयतक चलना भी अच्छी बात नहीं है। इसका समाधान शीघ्र निकालना होगा। कृषिमंत्री नरेन्द्र सिंह तोमरने भी रविवारको ग्वालियरमें संकेत दिया था कि किसान आन्दोलनका समाधान शीघ्र ही निकल जायगा। केन्द्र सरकार लगातार किसानोंसे वार्ता कर रही है। लेकिन भारतीय किसान यूनियनके नेता राकेश टिकैतका कहना है कि मैंने कब कहा कि एमएसपी खत्म हो रहा है। हम तो एमएसपीपर कानून बनानेके पक्षमें है। यदि ऐसा कानून बनता है तो इससे किसानोंका फायदा होगा। अभी एमएसपीपर कोई कानून नहीं है और किसान ट्रेडर्सके हाथों लूट लिया जाता है। ऐसी स्थितिमें यह आवश्यक हो गया है कि सरकार और किसान संघटनोंके साथ बातचीत अब निर्णायक दौरमें होनी चाहिए। सरकार और किसान नेता दोनों शीघ्र निर्णयपर पहुंचे जिससे कि किसानका आन्दोलन समाप्त हो।
अभिनव प्रयोग
प्रजा और तंत्र इन दो शब्दोंके मेलसे बना प्रजातंत्र, जनताका, जनताके लिए और जनताके द्वारा गठित तंत्रमें जनता ही मालिक होती है। लोग अपने बीचसे एक प्रतिनिधि चुनकर शासनके लिए भेजते हैं। इन जन-प्रतिनिधियोंका चरित्र जितना ही उज्ज्वल और आदर्शका प्रतीक होगा, शासन उतना ही पारदर्शी और जनहितमें होगा। यह विडम्बना ही है कि आज जमीनी हकीकत इसके ठीक विपरीत है। सत्ताके लोभमें राजनीतिक पार्टियां दागी चरित्रके लोगोंको ही पार्टीसे जोडऩेको प्राथमिकता देती हैं ताकि अधिकसे अधिक सीटोंपर जीत हासिल किया जा सके। सत्ताके लिए राजनीतिका अपराधीकरण जनताके साथ धोखा है। राजनीतिमें दागी चरित्रके लोगोंके प्रवेशपर अंकुशके लिए बिहार सरकारने अभिनव प्रयोग किया है। राज्यके जन-प्रतिनिधियोंको अब अपने बेदाग चरित्रकी सार्वजनिक घोषणा करनी होगी। बिहार विधानसभा भवनके शताब्दी समारोहमें विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हाकी घोषणा काफी महत्व रखता है। बिहार विधानसभा अध्यक्षने कहा कि राज्यके विधायक अब अपने घरके बाहर लिखेंगे कि उनका और उनके परिवारका अपराधसे कोई वास्ता नहीं है। उनका परिवार नशामुक्त है और उनके घरमें बाल विवाहका कोई मामला नहीं है। जिस तरह राजनीतिमें दागी चरित्रके लोगोंकी संख्या बढ़ती जा रही है वह गम्भीर चिन्ताका विषय है। जो भी लोग निर्वाचित होते हैं वे सभी जनताके प्रतिनिधि होते हैं। प्रजातंत्रमें सरकारमें बैठे लोग जनताके सेवक हैं। चाहे वह सत्तापक्षके हों, चाहे विपक्षके। सदनके सदस्योंका कर्तव्य है कि अपने क्षेत्रकी समस्याओंकी जानकारी लें और उसके निराकरणके लिए सकारात्मक कदम उठायें। जन-प्रतिनिधियोंका नैतिक दायित्व बनता है कि वे अपनी साफ-सुथरी छवि बनाये रखें। इससे न सिर्फ उनपर जनताका विश्वास बढ़ेगा, बल्कि उनकी लोकप्रियता भी बढ़ेगी। राजनीतिमें दागियोंके प्रवेशपर रोकके लिए बिहार सरकारकी अभिनव पहल स्वागतयोग्य और अन्य राज्योंके लिए अनुकरणीय है।