वैदिक एजुकेशनल रिसर्च सोसाइटी द्वारा राष्ट्रकल्याण एवं विश्वशांति हेतु वेदमाता मंदिर छित्तूपुर, लंका में आयोजित गायत्री पुरश्चरण महायज्ञ में जारी विद्वत् चर्चा एवम विद्वान सम्मान कार्यक्रम के २४ वें दिन गुरुवार को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के वेद विभाग के अतिथि आचार्य डाक्टर उमापति मिश्र ने कहा कि गायत्री जप को संध्योपासन का अवयवभूत कार्य माना गया है इसके साथ सूर्य की उपासना पर भी बल दिया गया है। संध्योपासन में अघमर्षण, सूर्योपस्थान और गायत्री जप यह मुख्य तीन क्रियाएँ महत्वपूर्ण हैं। गायत्री जप करने से साक्षात सविता देवता प्रसन्न होकर पापों का शमन कर जीवन को सर्ववाधाओं से मुक्त कर देते हैं। किसी भी कार्य को करने से पूर्व उस मंत्र और सूक्त का विनियोग करना कर्मफलों में वृद्धि का कारक माना गया है अत: मंत्रों का प्रयोग विनियोग के साथ करना चाहिए। कार्यक्रम के संयोजक पंडित शिवपूजन चतुर्वेदी के नेतृत्व में वैदिक वटुकों ने डाक्टर मिश्र एवं आमंत्रित अतिथियों का सामगान से स्वागत किया एवं उन्हें अंगवस्त्र, पुष्पमाला से सम्मानित किया। इस अवसर पर पंण् चतुर्वेदी ने कहा कि किसी भी कार्य की प्रेरणा दैवीय शक्ति से प्राप्त होती है और दैवीय शक्तियों के माध्यम से ही कार्य पूर्ण होते हैं। हमें दैवीय प्रेरणा कैसे प्राप्त हो इसके बारे में अहर्निश चिंतनशील रहना चाहिए। इस अवसर पर ओमप्रकाश चतुर्वेदी, डाक्टर रामकेश्वर तिवारी, सुनील चौबे, रमाशंकर तिवारी, अमूल उपाध्याय, राधाकृष्ण तिवारी, राजीव रंजन तिवारी, सुनील पाठक, वाचस्पति पांडेय सहित विद्वान एवं श्रद्धालु उपस्थित थे।