- अक्सरहां, जब हम क्रिकेट मैच देखते हैं और किसी टीम का कोई खिलाड़ी मैदान में आता है और आउट होकर फिर पवेलियन की ओर लौट जाता है तो कॉमेंटेटर उस खिलाड़ी को “आया राम-गया राम” कह कर संबोधित करते हैं। उत्तराखंड में भी अभी कुछ यही हुआ है। सियासी पिच पर महज चार महीने पहले उतरे मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत अब अपना इस्तीफा दे चुके हैं। कारण में रावत ने कहा है कि उन्हें छह महीने के भीतर विधानसभा का सदस्य बनना था और अब विधानसभा चुनाव में सिर्फ आठ महीने बचे हैं। लेकिन, सवाल ये भी उठ रहे हैं कि जब भाजपा को ये चीजें पता थी फिर क्यों नहीं पार्टी ने विधायक दलों के नेता में से किसी को सीएम पद की जिम्मेदारी सौंपी।
अब उत्तराखंड को फिर नया मुख्यमंत्री मिल सकता है, जिसके लिए आज शनिवार को विधायक दलों की बैठक होगी। तीरथ सिंह रावत ने बीती 10 मार्च को मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की थी और इस तरह से रावत चार महीने का कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पाए। संवैधानिक संकट का हवाला देकर तीरथ ने इस्तीफा देने की बात कही है। लेकिन अपने विवादित बयानों को लेकर तीरथ सिंह रावत मुख्यमंत्री बनते ही सुर्खियों में आ गए थे। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले तीरथ की कार्यशैली की वजह से भाजपा राज्य में सकते में आ गई थी। माना जा रहा है कि इसी की वजह से तीरथ को इस्तीफा संवैधानिक कारणों का हवाला देते हुए देना पड़ा है।
वहीं, विधायक दलों की बैठक को लेकर उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता त्रिवेंद्र सिंह रावत बीजापुर गेस्ट हाउस पहुंच चुके हैं। उन्होंने कहा, “विधानमंडल दल की बैठक होगी उसमें नेता चुना जाएगा।” वहीं, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर देहरादून में बीजापुर गेस्ट हाउस पहुंचे हैं।
अब देखना होगा कि क्या रावत को फिर से मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी मिल सकती है। दरअसल, त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल के दौरान भाजपा बाहरी तौर पर उतनी मुसीबतों का सामना नहीं कर रही थी, जो तीरथ सिंह के दौरान करना पड़ा है। हालांकि, पार्टी विधायकों के भीतर असंतुष्टता की वजह से ही त्रिवेंद्र सिंह को हटाया गया था।