सम्पादकीय

दायित्वके प्रति सजग रहनेकी आवश्यकता


डा. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

दुनियाके देशोंमें कोरोनाके कारण जान गंवानेवाले लोगोंकी संख्यामें अमेरिका और ब्राजीलके बाद हिन्दुस्तान तीसरा देश हो गया है। हालांकि कोरोनाकी दूसरी लहर अधिक जानलेवा सिद्ध हुई। कोरोनाकी दूसरी लहरकी भयावहताको इसीसे समझा जा सकता है कि इसने देशको संभलनेका ही अवसर नहीं दिया और कोरोना संक्रमितोंमें संक्रमणका असर इतना व्यापक रहा कि देशमें जगह-जगह आक्सीजनके लिए मारामारी हो गयी तो जीवनरक्षक वेंटिलेटरोंकी कमी आ गयी। स्थितिकी भयावहताको इसीसे समझा जा सकता है कि जीवनरक्षक दवाओंतककी कालाबाजारी आम हो गयी। दूषित मानसिकताके लोगोंने इस संकट कालको भी कमाईका अवसर बनानेमें कोई कमी नहीं छोड़ी, यहांतक कि अस्पतालोंमें आक्सीजन बेड दिलानेतकके रुपये वसूलनेमें लोगोंको शर्म नहीं आयी। दरअसल यही समय पश्चिम बंगाल सहित कुछ राज्योंकी विधानसभाओंके चुनावका रहा तो दूसरी ओर संक्रमणके तेजीसे फैलनेके अन्य कारण भी मौजूद रहे। चाहे इस दौरान शादी-विवाह आदि आयोजन रहे हों या किसान आन्दोलन या अन्य रैलियां। यही कारण रहा कि मानवीय नुकसानका जितना नुकसान कोरोनाके पहले दौरमें नहीं हुआ, उससे कहीं अधिक नुकसान दूसरी लहरमें लोगोंको भुगतना पड़ा। हालांकि अब देशमें टीकाकरण भी रफ्तार पकडऩे लगा है। परन्तु इस सबसे यह सबक अवश्य मिला है कि लोग अभीसे तीसरी लहरकी आशंकाको लेकर गंभीर होने लगे हैं। पहले दौरसे भी अधिक डरावनी तस्वीर दूसरी लहरमें देखनेको मिली और अनेक बच्चोंने अपने माता-पितामेंसे किसी एकको तो कई बच्चोंने तो दोनोंको ही इस लहरमें खो दिया।

कोरोनाकी पहली लहरको जिस तरहसे देशव्यापी लाकडाउनके माध्यमसे प्रभावी तरीकेसे निबटा गया और चाहे आलोचनाका ही विषय हो परन्तु ताली-थाली-घडिय़ाल बजाने और फिर दीपक जलाकर जिस तरहसे मनोवैज्ञानिक चेतना जागृत की गयी उसका असर कहीं न कहीं सकारात्मक ही रहा। परन्तु ज्यों ही लाकडाउन हटा, जिन्दगी पटरीपर लौटने लगी तो लोगोंने कोरोनाके प्रति गम्भीरताको ही नकार दिया और उसका परिणाम दूसरी लहरके रूपमें समूचे देशको भुगतना पड़ा। हालांकि भारतसे कहीं कम आबादीवाले अमेरिकाने छह लाख बीस हजार लोगोंको खोया है तो ब्राजीलने पांच लाख बीस हजार लोगोंसे अधिकको खोया है। सवाल यह नहीं है कि किस देशने कितने लोगोंको कोरोनाके कारण खोया, अपितु कोरोना या इसी तरहकी महामारीमें एक भी जान जानेको उचित नहीं ठहराया जा सकता और अब तो कोरोनाकी तीसरी लहरका भय सताने लगा है। जिस तरहसे बच्चोंको लेकर तीसरी लहरमें आशंका व्यक्त की जा रही है उससे लोग सजग और भयभीत होने लगे हैं।

एक बात साफ है कि कोरोनाके इस दौरमें देशमें दोनों ही तरहकी स्थितियोंका सामना किया है। एक ओर जहां आक्सीजन सिलेण्डर या आक्सीजन बेडकी तलाशमें लोग भटकते देखे गये, यहांतक कि आक्सीजनकी कमीके कारण मौतके आगोशमें समाते देखे गये तो दूसरी और समग्र प्रयासोंसे हालातको काबूमें करनेके साझा प्रयास भी किये गये। कोरोनाके पहले दौरमें जहां पीपीई किट और वेंटिलेटरोंको लेकर मारामारी रही तो दूसरे दौरमें आक्सीजनकी मारामारी आम हो गयी। इतनी अधिक मात्रामें मास्क और सेनेटाइजरकी मांग पहली बार देखी गयी। परन्तु देशके जज्बेको सलाम करना होगा कि दोनों ही स्थितियोंसे जल्दी ही काबू पा लिया गया। आज हालात यह हो गये हैं और जिस तरहके समाचार आम हो रहे हैं उससे यह साफ हो गया है कि आनेवाले दिनोंमें अब देशके किसी भी चिकित्सा केन्द्रपर आक्सीजनकी कमी नहीं रहनेवाली है। इसी तरहसे वेंटिलेटरोंकी कमी भी नहीं रहेगी। लगभग डेढ़से दो माहमें इस तरहकी व्यवस्था सुनिश्चित करनेके प्रयास निश्चित रूपसे सराहनीय है तो केन्द्र एवं राज्योंकी सरकारोंका इसके लिए साधुवाद करना होगा। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अन्य देशों और हमारे देशकी परिस्थितियोंमें बड़ा अन्तर है। हमारे यहांकी आबादी ही १३५ करोड़से अधिक है। दुनियाके कई देशोंको मिलाकर भी इतनी आबादी नहीं है। ऐसेमें इतने बड़े स्तरपर व्यवस्थाओंको अंजाम देना चुनौतीभरा रहा है। कोरोनासे देशमें पहली मौत जहां १२ मार्च, २०२० को हुई और करीब छह माह बाद एक अक्तूबरको मौतका आंकड़ा एक लाखको छू गया, वहीं दूसरी लहरकी भयावहताको इसीसे समझा जा सकता है कि २४ अप्रैल, २०२१ को दो लाख और अगले २३ दिनोंमें यानी कि २० मई, २०२१ को तीन लाख लोगोंकी कोरोनाके कारण मौत हो गयी। इसके बाद अगले ४२ दिन यानी कि एक जुलाईको यह आंकड़ा बढ़कर चार लाखकी मौतको छू गया। हालांकि अब हालातमें तेजीसे सुधार हो रहा है।

देशमें ३४ करोड़से अधिक लोगोंको वैक्सीन लग गयी है तो कोरोनाको मात देनेवालोंकी दर भी ९७ प्रतिशतसे अधिक हो गयी है। इन सब हालातोंके बावजूद अब अधिक सतर्कताकी आवश्यकता है और इसका एक बड़ा कारणसे संभावित तीसरी लहर ही है। क्योंकि माना जा रहा है कि तीसरी लहरने इंग्लैण्डमें दस्तक दे दी है और विशेषज्ञोंकी माने तो सितंबरके बाद यह कभी भी आ सकती है। अक्तूबर-नवंबरमें पीकपर रहनेकी संभावना व्यक्त की जा रही है। ऐसेमें वैक्सीनेशनमें तेजी लानेके साथ ही सुरक्षा मानकोंकी पालनामें सख्ती करनी ही होगी। लाकडाउनमें छूटके चलते अब अधिक अहतियात बरतनेकी आवश्यकता है। सभीको मालूम है कि स्टे होम-स्टे सेफ अधिक दिनतक नहीं चल सकता। ऐसेमें बिना आवश्यकताके बाहर नहीं निकलने और मास्क लगाने, बार-बार हाथ धोने, सेनेटाइजरके उपयोग और दो गजकी दूरीकी पालना सख्तीसे करनी ही होगी। जिस तरहसे देशने कोरोनाके कारण चार लाख लोगोंको खोया है, अब वह स्थिति नहीं आनी चाहिए और इसके लिए सरकारकी ओर देखनेके स्थानपर हमें हमारी सुरक्षा खुद सुनिश्चित करनी होगी, तभी कोरोनाके इस दौरसे बचकर निकला जा सकेगा। हमें हमारे दायित्वके प्रति अब अधिक सजग होना होगा।