करायपरशुराय (नालंदा)(संसू)। पढ़ने लिखने के समय देश के ये नौनिहाल बच्चे आज अपनी बेबसी के कारण ट्रेन के डिब्बों में 2-4 रूपया मिलने की उम्मीद के साथ यात्रियों को भोजपुरी गाना सुनाकर उनका मनोरंजन कर रहे हैं। इनकी बेवसी देखने सुनने वाला ना तो कोई अधिकारी, ना कोई जनप्रतिनिधि और ना ही स्वयंसेवी संस्थान से जुड़े लोग हैं।
आज दोपहर 12:00 बजे डियांवा से पैसेंजर ट्रेन से हिलसा आने के क्रम में ऐसे ही दो मासूम बच्चे देखने को मिले। 4 से 5 वर्ष के ये बच्चे जिनका अभी पढ़ने लिखने, खेलने-कूदने का समय है। इन बच्चों के गले में ढोल लटक रहा था आज ये ट्रेन में यात्रियों के स्थानों पर जाकर भोजपुरी गाना गा रहे थे। यात्रियों का समूह भी मजे लेकर इन बच्चों के द्वारा गाये गाना को सुन रहे थे और प्रसन्न होकर कोई 1 रुपया तो कोई 2 रुपए मासूम बच्चों के हाथों में दे रहा था।
इनकी बेबसी को देखने सुनने वाला ना तो कोई अधिकारी ना कोई जनप्रतिनिधि और ना ही स्वयंसेवी संस्थान से जुड़े लोग हैं। हद तो यह है कि बच्चों के खातिर सरकार के द्वारा बाल श्रम आयोग का गठन किया गया है लेकिन आयोग से जुड़े लोगों का भी इन जैसे बच्चों पर नजर नहीं पड़ती है।
इसके लिए इन बच्चों के माता-पिता भी कम दोषी नहीं है, बच्चों को जन्म देने के बाद अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं। अपने पेट की भूख मिटाने की खातिर इन बच्चों के माता-पिता पढ़ने-लिखने, खेलने-कूदने की उम्र में इनके गले में ढोल लटका दिया है। ऐसे बच्चों के माता-पिता पर भी कानूनी कार्रवाई किए जाने की आवश्यकता है, कारण की माता पिता के भय से मासूम बचचे इच्छा रहते हुए भी आज अपनी पढ़ाई, खेलकूद से वंचित है।
सूत्रों के मुताबिक इन बच्चों के माता-पिता ट्रेन के डिब्बे में दूर रहकर उन पर निगरानी रखते हैं। काफी पूछे जाने के बाद इन बच्चों ने अपना नाम सोनू तथा चिंटू बताया ना तो यह अपने माता-पिता का नाम बता पाए और ना ही अपने घर का पता बता पाए।