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- छात्र-छात्राओं की संख्या सवा दो लाख से घट कर 86 सौ पर पहुंची
- संस्कृत शिक्षा बोर्ड की माली हालत बिगड़ी, वेतन के भी पड़े लाले
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(आज शिक्षा प्रतिनिधि)
पटना। राज्य में मध्यमा की पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं की संख्या सवा दो लाख से घट कर 86 सौ पर पहुंच गयी है। इससे मध्यमा की पढ़ाई वाले संस्कृत स्कूलों का भविष्य खतरे में हैं। छात्र-छात्राओं की संख्या में आयी भारी कमी से मध्यमा की परीक्षा लेने वाला बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड के समक्ष तो कर्मचारियों को वेतन देने के भी पैसे नहीं हैं।
राज्य में बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड की स्थापना 1981में हुई थी। बोर्ड के जिम्मे संस्कृत स्कूलों की प्रस्वीकृति, उसमें शिक्षक-कर्मियों की नियुक्ति, प्रथमा एवं मध्यमा का पाठ्यक्रम निर्माण, उसकी परीक्षा एवं परीक्षाफल प्रकाशन के कार्य हैं। इसके लिए बोर्ड में अधिकारी-कर्मचारियों के 134 पद स्वीकृत हैं। हालांकि, वर्तमान में कार्यरत अधिकारी-कर्मचारियों की संख्या 40 के करीब है।
प्रथमा आठवीं कक्षा के समतुल्य है। इससे इतर मैट्रिक के समतुल्य है मध्यमा। बोर्ड द्वारा प्रथमा की परीक्षा वर्ष 2000 तक ली गयी। उसके बाद प्रथमा की परीक्षा संचालन के अधिकार प्रथमा की पढ़ाई वाले संस्कृत स्कूलों को ही दे दिये गये। वैसे भी, बोर्ड द्वारा जब प्रथमा की परीक्षा ली जाती थी, तो उसमें बैठने वाले बच्चों से पंजीयन शुल्क नहीं लिये जाते थे। प्रथमा के बच्चों से सिर्फ परीक्षा शुल्क लेने की ही व्यवस्था थी।
प्रथमा की परीक्षा संचालन के अधिकार स्कूलों को दिये जाने के बाद से बोर्ड के जिम्मे मध्यमा की परीक्षा रह गया है। मध्यमा की परीक्षा में बैठने वाले छात्र-छात्राओं से पंजीयन शुल्क और परीक्षा शुल्क लिये जाते हैं। यही बोर्ड की आय का स्रोत है। जब मध्यमा की पढ़ाई शुरू हुई, तो यह छात्र-छात्राओं के आकर्षण का केंद्र बन गया। इसलिए कि, बहालियों में मध्यमा योग्यताधारियों के लिए भी वही स्थान था, जो मैट्रिक योग्यताधारियों के लिए। कई नौकरियों में तो मध्यमा योग्यताधारियों के लिए दस फीसदी आरक्षण की भी व्यवस्था थी। केंद्र सरकार की नौकरियों में भी मध्यमा योग्यताधारियों के लिए जगह थी।
वर्ष 1990 में मध्यमा की परीक्षा में बैठने वाले परीक्षार्थियों की संखया सवा दो लाख पर पहुंच गयी। हालांकि, 1992, 1993 एवं 1994 में परीक्षार्थियों की संख्या मात्र पांच हजार के करीब पहुंच गयी। ऐसा
परीक्षा में हुई सख्ती की वजह से हुआ था। उसके अगले ही साल से परीक्षार्थियों की संख्या फिर बढऩी शुरू हुई। वर्ष 2007 में परीक्षार्थियों की संख्या फिर दो लाख पर पहुंच गयी। लेकिन, उसके बाद से परीक्षार्थियों की संख्या इसलिए घटनी शुरू हो गयी, क्योंकि प्रस्तावित संस्कृत स्कूलों से छात्र-छात्राओं के सीधे परीक्षा फॉर्म भरने पर रोक लगा दी गयी। प्रस्तावित संस्कृत स्कूलों के लिए बोर्ड द्वारा यह प्रावधान किया गया कि उसके छात्र-छत्राओं के परीक्षा फॉर्म प्रस्वीकृत संस्कृत स्कूलों के माध्यम से भरे जायेंगे। इस व्यवस्था ने प्रस्तावित संस्कृत स्कूलों को उदासीन कर दिया।
इस बीच केंद्र की उन नौकरियों में मध्यमा योग्यताधारियों के दरवाजे बंद हो गये, जो पहले खुले हुये थे। राज्य में भी शिक्षक नियोजन नियमावली लागू होने के बाद सामान्य शिक्षकों की बहाली में मध्यमा योग्यताधारियों के दरवाजे बंद हो गये। सिर्फ संस्कृत शिक्षक पद के लिए होने वाली बहाली तक ही मध्यमा की योग्यता सिमट गयी। मध्यमा योग्यताधारियों के लिए दस फीसदी आरक्षण की व्यवस्था भी बीते दिनों की बात बन कर रह गयी।
मध्यमा की पढ़ाई पर गहराए संकट का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि राज्य भर में तकरीबन 650 प्रस्वीकृत संस्कृत स्कूलों में तकरीबन 272 ही मध्यमा स्तर तक की पढ़ाई वाले हैं। इनमें भी तकरीबन 100 स्कूलों में शिक्षकों के पद रिक्त हैं। कारण चाहे जो हो, लेकिन शिक्षक ही नहीं होंगे, तो भला बच्चे क्यों आयेंगे। सो, यह भी बच्चों की घटती संख्या का एक कारण बताया जा रहा है।
नतीजा यह हुआ कि वर्ष 2018 में मध्यमा में परीक्षार्थियों की संख्या घट कर 12000 पर पहुंच गयी। यह संख्या बढ़ कर वर्ष 2019 और 2020 में क्रमश: 22000 और 23000 पर पहुंची। लेकिन, वर्ष 2021 में परीक्षार्थियों की संख्या घट कर मात्र 8600 पर आ गयी। इससे बोर्ड की माली हालत बिगड़ गयी है। बोर्ड की संचित निधि से कर्मचारियों को गत मार्च तक का वेतन तो मिला हुआ है, लेकिन गत अप्रैल से वेतन के लाले पड़े हुए हैं।
स्थिति के मद्देनजर बोर्ड ने गत मार्च में यह प्रस्ताव पारित कर राज्य सरकार को भेजा कि वह पांच करोड़ 30 लाख रुपये का बोर्ड का वार्षिक व्यय वहन करे। बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड कर्मचारी संघ के महासचिव भवनाथ झा ने बताया कि संघ द्वारा भी शिक्षा विभाग को कई बार लिखा गया है, लेकिन बोर्ड को मांगी गयी पांच करोड़ 30 लाख रुपये की राशि नहीं मिली है, जबकि वेतन के अभाव में कर्मचारी इस कोरोनाकाल में आर्थिक संकट के गंभीर दौर से गुजर रहे हैं।