पाकिस्तानने फिर दुस्साहस करते हुए शुक्रवारको भोरमें जम्मू-कश्मीरके अरनिया सेक्टरमें अन्तरराष्टï्रीय सीमाके पास ड्रोनसे हमलेकी साजिश की थी, जिसे सीमा सुरक्षा बलके जवानोंने विफल कर दिया। यह घटना प्रात: साढ़े चार बजेकी है। पाकिस्तानी ड्रोन अन्तरराष्टï्रीय सीमा पार करनेकी कोशिश कर रहा था लेकिन भारतीय जवानोंने तत्काल फायरिंग कर उसे भगा दिया। जम्मू एयर फोर्स स्टेशनपर ड्रोनसे किये गये हमलेके पांच दिनोंके अन्दर यह तीसरी घटना है, जब पाकिस्तानी ड्रोनने भारतीय सीमामें घुसनेकी कोशिश की। २७ जूनको हुए हमलेकी साजिश पाकिस्तानमें रची गयी थी जिसके पीछे लश्कर-ए-तैयबाके सरगना हाफिज सईद और आईएसआईका हाथ था। एयर फोर्स स्टेशनपर हमलेके अगले दिन जम्मूके कालूचक मिलिट्री स्टेशनके पास भी दो ड्रोन दिखे थे। सेनाके जवानोंने जैसे ही फायरिंग की वहांसे ड्रोन भाग गये। भारतके सैन्य अड्डïेपर ड्रोनके इस्तेमालका यह पहला हमला था। इस हमलेकी जांच एनआईए कर रही है। अभी उसकी रिपोर्ट नहीं आयी है लेकिन भारतने ड्रोन हमलेसे निबटनेके लिए एक प्रणाली और तकनीक खोज ली है। इस सम्बन्धमें शीघ्र मजबूत नीति बनायी जा सकती है। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीने मंगलवारको एक उच्चस्तरीय बैठक की, जिसमें विस्फोटकोंसे लैस ड्रोनके आतंकी हमलेसे निबटनेके लिए व्यापक ड्रोन नीतिपर चर्चा हुई। सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणेने स्वीकार किया है कि ड्रोनकी आसानीसे उपलब्धताने सुरक्षा चुनौतियोंकी जटिलताओंको और बढ़ा दिया है। भारतीय सेना इनके खतरोंसे प्रभावी ढंगसे निबटनेकी क्षमता विकसित कर रही है। उन्होंने यह भी कहा कि सुरक्षा प्रतिष्ठïान चुनौतियोंसे भली-भांति अवगत हैं और कुछ सुरक्षा उपाय अपनाये भी जा रहे हैं। वस्तुत: सुरक्षा बल पूरी तरह सतर्क हैं और सतत निगरानी भी की जा रही है जिसके कारण पाकिस्तान प्रायोजित ड्रोन हमलोंको विफल किया जा सका है। इसके बावजूद जम्मू-कश्मीरमें अशान्ति उत्पन्न करनेके लिए आतंकी संघटन सक्रिय हैं। शुक्रवारको पुलवामा जिलेमें सुरक्षाबलों और आतंकी संघटनोंके बीच देरतक मुठभेड़ हुई, जिसमें सेनाका एक जवान शहीद हो गया। यह इस बातका प्रमाण है कि राज्यमें बड़ी संख्यामें आतंकियोंको मारे जानेके बाद भी अभी आतंकी मौजूद हैं, जो जम्मू-कश्मीरके सुरक्षा व्यवस्थाके लिए चुनौती बने हुए हैं। इसे देखते हुए आतंकियोंके खिलाफ बड़ा अभियान जारी रखनेकी जरूरत है जिससे कि जम्मू-कश्मीरसे इनके नेटवर्कका पूरा सफाया किया जा सके।
महंगी गम्भीर चुनौती
बेतहाशा बढ़ती महंगी देशके लिए गम्भीर चुनौती बनती जा रही है। एक तरफ तो कोरोना संकटकी वजहसे कारोबार, नौकरी-धन्धा और बाजारमें कामकाजपर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है दूसरी तरफ अनियंत्रित महंगी जनताको बेहाल कर रही है। महंगीकी मार सिर्फ खाने-पीनेकी चीजोंतक ही सीमित नहीं है, बल्कि डीजल-पेट्रोल और रसोई गैसने सारे रेकार्ड तोड़ दिये हैं, जिससे महंगी हर दिन बढ़ रही है। बात यदि सिर्फ रसोई गैसकी करें तो इसकी कीमत जहां ९०० रुपयेके पास पहुंच गयी है, वहीं खानेके तेलकी कीमत ११ सालोंके उच्चतम स्तरपर पहुंच गयी है। इतना ही नहीं, हर घरमें इस्तेमाल होनेवाला दूध भी महंगा हो गया है। ऐसेमें सवाल उठता है कि आखिर गृहस्थी कैसे चलेगी, क्योंकि कोरोनाकी वजहसे अधिकतर लोगोंकी आमदनीपर असर पड़ा है। लोगोंकी आमदनी घटी है लेकिन बढ़ती महंगीने उनकी मुसीबत बढ़ा दी है। खानेके तेलकी कीमतें पिछले एक सालमें काफी बढ़ गयी हैं। सरसोंका तेल ४४ और सोयाबीन और सूरजमुखीका तेल करीब ५० प्रतिशततक महंगा हो चुका है। दाल, सब्जियां, गैस सिलेण्डर, दूध जैसी बुनियादी चीजोंकी कीमतें आसमान छूनेसे आम जनताका बजट बुरी तरह गड़बड़ा गया है। महंगीमें आग लगानेके लिए यदि सबसे ज्यादा कोई जिम्मेदार है तो फ्यूलकी कीमतें हैं। दरअसल पेट्रोल-डीजलका भाव बढऩेसे ट्रांसपोर्ट महंगा हो जाता है जिसका सीधा असर आवश्यक चीजोंपर पड़ता है। कम्पनियां ट्रांसपोर्ट महंगा होनेका हवाला देकर अपने उत्पादोंका दाम बढ़ा रही हैं। थोक महंगी दर मईमें बढ़कर उच्च स्तर १२.९४ प्रतिशतपर पहुंच गयी है, जो अर्थव्यवस्थाके लिए खतरेका संकेत है। महंगी बढऩेसे मुद्रास्फीति बढ़ेगी जिसका सीधा असर अर्थव्यवस्थापर पड़ेगा। अनियंत्रित महंगीको कम करनेके लिए सरकारको शीघ्र ठोस उपाय करना होगा अन्यथा स्थिति विस्फोटक हो सकती है। महंगीकी विकट चुनौतीसे निबटनेके लिए केन्द्र सरकारको पेट्रोल और डीजलपर लगनेवाले उत्पाद करको जहां कम करना होगा, वहीं राज्योंको भी वैट कम करना होगा तभी विकराल होती महंगीकी रफ्तारको रोका जा सकता है।