Post Views: 655 बाल मुकुन्द ओझा आज भी दुनिया परिवार और संयुक्त परिवारकी अहमियतको लेकर विवादोंमें उलझी है। भारतमें संयुक्त परिवार प्रणाली बहुत प्राचीन समयसे ही विद्यमान रही है। वह भी एक जमाना था जब भरा पूरा परिवार हंसता खेलता और एक-दूसरेसे जुड़ा रहता था। बच्चोंकी किलकारियोंसे मोहल्ला गूंजता था। पैसे कम होते थे परन्तु […]
Post Views: 301 डा. अजय खेमरिया भारतीय जनसंचार संस्थान यानी आईआईएमसीका यह विश्वसनीय सर्वे समवेत रूपसे विदेशी मीडिया संस्थानों खासकर बीबीसी, इकोनोमिस्ट, द गार्डियन, वाशिंगटन पोस्ट, न्यूयॉर्क टाइम्स, सीएनएनकी पक्षपातपूर्ण, झूठी रिपोर्टिंगको आमजनकी दृष्टिमें भी कटघरेमें खड़ा कर रहा है। नैतिक मापदंडोंपर जन्मना दोहरेपनका शिकार पश्चिमी मीडिया कोविड-१९ को लेकर कैसे निष्पक्षता और ईमानदारीका अबलंबन […]
Post Views: 618 डा. गौरीशंकर राजहंस कोरोना महामारीके दौरान अर्थशास्त्रियोंका यह अनुमान था कि महामारीके समाप्त होते-होते अर्थव्यवस्थापर बहुत बुरा असर पड़ेगा। परन्तु इतना बुरा असर पड़ेगा इसकी किसीने कल्पना भी नहीं की थी। आजकी तारीखमें भारतकी अर्थव्यवस्था पूरी तरह छिन्न-भिन्न हो गयी है और बड़ेसे बड़ा अर्थशास्त्री भी दावेके साथ यह नहीं कह सकता […]