(आज समाचार सेवा)
पटना। गणतंत्र दिवस के मौके पर भारत सरकार ने बिहार की दो विभूतियों को पद्मश्री सम्मान से विभूषित किया गया। इनमें मरणोपरांत जाने-माने अर्थशास्त्री एवं एशियन डेवलपमेंट इंस्टिट्यूट के संस्थापक डा. शैबाल गुप्ता को दिया गया। जबकि सेवा, शिक्षा एवं साधना के लिए वीरायतन की संस्थापक चंदमा मां उर्फ ताई मां को पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
डा. शैबाल गुप्ता को सम्मान मिलने के बाद उनकी पुत्री डा. अस्मिता गुप्ता ने हर्ष व्यक्त करते हुए कहा कि वे अपने शोध के जरिए लगातार बिहार के विकास के लिए समर्पित रहे। उनका यह सम्मान वैसे सभी लोगों के लिए प्रेरणादायक है, जो उनके काम को आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने कहा कि इसी माह की २८ तारीख को उनकी प्रथम पुण्यतिथि भी है। सम्मान मिलने के बाद उनकी पुण्यतिथि को एक अलग यादगार ढंग से मनाया जाएगा।
ज्ञात हो कि सामान्य तौर पर विकास मूलक अर्थशास्त्र एवं खास तौर पर बिहार के विकास की चुनौतियों पर डा. शैबाल गुप्ता के योगदान ने राष्ट्रीय एवं वैश्विक स्तर पर लोगों का ध्यान खींचा। वे सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक मामलों के भी बड़े जानकार एवं विश्लेषक थे।
आद्रि के सदस्य सचिव डा. प्रभात पी घोष ने बताया कि डा. शैबाल गुप्ता एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट आफ सोशल स्टडीज से अपना करियर शुरू किये थे, लगभग 15 साल तक वे इस संस्थान से जुड़े रहे। एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना उन्होंने 1991 में की थी। 1995 से 2020 तक इसका कुशल नेतृत्व किया। अच्छे अर्थशास्त्री के साथ-साथ राजनीतिक विश्लेषण में भी उन्हें महारत हासिल थी। उन्होंने 300 से अधिक शोधपरक आलेख लिखा। 100 से अधिक अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस में शामिल हुए। बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए बनी रघुराम राजन कमेटी में भी वह शामिल थे। डा. शैबाल के पिता डा. पी गुप्ता प्रसिद्ध चिकित्सक थे। वे बेगूसराय में चिकित्सा करते थे। उनकी माता कविता गुप्ता अधिवक्ता थीं। वे सीपीआइ के प्रसिद्ध नेता जगन्नाथ सरकार के दामाद थे। पत्नी डा. उषासी गुप्ता पटना स्थित बैंक रोड पर बेटी अस्मिता गुप्ता के साथ रहती हैं।
सेवा, समर्पण की प्रतिमूर्ति चंदना जी
-डॉ. ध्रुव कुमार-
26 जनवरी 1937 को महाराष्ट्र की पवित्र भीमा नदी के तट पर अवस्थित चासकमान ग्राम में पिता माणिक चंद कटारिया और माता प्रेम कुंवर वाई के घर एक बालिका का जन्म हुआ तो शायद ही किसी सोचा था कि शकुंतला नामक यह बालिका एक दिन पूरी दुनिया में मानवता की सेवा, समर्पण और सादगी की प्रतिमूर्ति के रूप में पहचानी जायेगी। मात्र 15 वर्ष की आयु में उसने मानवता की सेवा और कल्याण के लिए त्याग के पथ को चुना और सन 1952 में राजस्थान के गुलाबपुरा में जैन धर्म संघ में दीक्षित हुईं और साध्वी चंदना के रूप में अवतरित हुई। इसके बाद उन्होंने अपने को श्रमण- संस्कृति में सुनिश्चित कर लिया। गुलाबपुरा से सादडी पहुंचने पर उन्हें पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री अमर मुनि जी महाराज का सानिध्य मिला। अहमदाबाद चतुर्मास में विशाल प्रवचन के दौरान चंदना जी ने जैन परंपरा को नकारते हुए पहली बार ध्वनि विस्तारक यंत्र-माइक का उपयोग किया। परंपरागत आचार में माइक प्रयोग शामिल नहीं था।
मृदुल प्रकृति की शालीन साध्वी चंदना जी अपनी बात निर्भीकता से कहने में हमेशा आगे रही हैं। धर्म प्रचारार्थ वाहन प्रयोग, ध्वनि विस्तारक यंत्र-माइक का प्रयोग अनेक उदाहरण हैं जिनसे उनके वैज्ञानिक विचारों का पता चलता है।
1971 में 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जयंती के अवसर पर अमर मुनि जी ने रचनात्मक कार्यों के संपादन के लिए आह्वान के उपरांत महावीर जयंती के अवसर पर 1973 में राजगीर में वीरायतन की स्थापना की गई। 11 जुलाई 1973 को साध्वी मंडली के साथ साध्वी चंदना जी राजगीर पहुंचीं और बिहार की होकर रह गयीं। वैभारगिरि की तलहटी में 45 एकड़ में अवस्थित वीरायतन का हरा-भरा परिसर उनकी सेवा साधना स्थली है।
साध्वी श्री चंदना जी जैन धर्म की पहली महिला हैं जिन्हें आचार्य पद से विभूषित किया गया है। यह संपूर्ण नारी समाज के लिए गौरव का विषय है। गुरुदेव उपाध्याय अमर मुनि ने उनको यह अलंकरण देते हुए कहा था- यह जैन इतिहास की सर्वाधिक क्रांतिकारी घटना है।
26 जनवरी 1987 को जीवन के 50 वर्ष पूरे होने के अवसर पर आचार्य पद से सुशोभित चंदना जी के ज्ञान और भक्ति की पराकाष्ठा को जैन समाज ने शालीन सम्मान किया। आचार्यश्री चंदना जी को एक के बाद एक नए कार्यों को नया आयाम देने में महारत हासिल है। उन्होंने निज मंगल के साथ जग मंगल का सदैव उदघोष किया। वीरायतन तीर्थभूमि से मुंबई होते हुए भारत की सीमा को पार कर उन्होंने कनाडा,अमेरिका, इंग्लैंड, केन्या, सिंगापुर, इंडोनेशिया नेपाल आदि देशों में धर्म की ध्वजा को फहराकर यह प्रमाणित किया कि वे बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नारी हैं। सात्विक आहार-व्यवहार के कारण उन्होंने सार्वभौमिक प्रेम को सदैव विस्तारित किया। उनकी यात्राएं आध्यात्म की झील में हंस-विहार के समान है। उनके मुताबिक प्रवचन, प्रार्थना, ध्यान, आगम, वाचन, तप, विचार-गोष्ठी, लेखन के माध्यम से अध्यात्म-रस का लगातार प्रवाहमान हो रहा है।
उन्होंने धर्म को परिभाषित करते हुए स्पष्ट किया – जो मनुष्य को मनुष्य से दूर कर दे वह धर्म नहीं है, जो मनुष्य को मनुष्य जोड़ने का कार्य करें और शांति का मार्ग प्रशस्त करें वह धर्म है। मातृशक्ति को महिमामंडित करते हुए उनका कथन – यदि इस विश्व की बागडोर मातृशक्ति के साथ में होती तो विश्व का इतिहास कुछ और होता बहुत ही सटीक और सार्थक है।
उनका यह भी मानना है कि – मित्रता ही जीवन शास्त्र है। मित्रता ही तीर्थंकर महावीर की अहिंसा है। जो धर्म दूसरों की पीड़ा का अनुभव कर सकता है इस पृथ्वी पर मात्र उसी धर्म को फैलने का अधिकार है। आचार्यश्री चंदना जी ने किसी जाति, धर्म और संप्रदाय के व्यक्ति से धर्म परिवर्तन के लिए आग्रह नहीं किया। प्रत्येक धर्म अहिंसा, प्रेम, सत्य और स्वपरहित का संदेश देता है।
उनके द्वारा संस्थापित वीरायतन, नेत्र ज्योति मंदिर, श्री ब्राह्मी कला मंदिर, ज्ञानांजलि, वीरायतन बीएड कॉलेज, फार्मेसी कॉलेज, श्री चोदना विद्यापीठ, तीर्थंकर महावीर विद्या मंदिर, गुणशील उद्यान या किसी संस्था, धर्म – प्रार्थना सभा में धर्म के आधार पर भेदभाव या आग्रह या दुराग्रह को स्थान नहीं दिया जाता है। वह सबका सम्मान करती हैं। उनकी नजर में मनुष्य का जन्म शुभ कर्मों के लिए हुआ है। जन्मोत्सव को कर्मोत्सव के रूप में मनाना चाहिए। जिन्होंने श्रमोपासना की है उन्हें विश्राम कैसा? कर्म में थकान नहीं आनंद का स्थान होता है।
आचार्यश्री चंदना जी के दर्शन के पश्चात ऐसा आभास होता है कि उनका बाह्य स्वरूप जितना आकर्षक और देदीप्यमान है, आंतरिक उससे कहीं अधिक उज्जवल और प्रभावशाली है। चमकती आंखों में दिव्यता का संदेश है, इन पंक्तियों के लेखक को आचार्यश्री से लगभग एक घंटे की मुलाकात के दौरान यह साक्षात अनुभव हुए। अपनी सेवा और समर्पण से नित नया इतिहास रचने वाली 84 वर्षीया आचार्य श्री चंदना जी को आज पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किये जाने की घोषणा की गई है।