जग्गी वासुदेव
आपको कर्मोंको सुलझानेमें असलमें कोई प्रयास नहीं करना पड़ेगा, क्योंकि जब आप अपने कर्मोंके साथ खेल रहे हैं तो आप ऐसी चीजके साथ खेल रहे हैं, जिसका कोई अस्तित्व नहीं है। यह मनका एक जाल है। बीते हुए समयका कोई अस्तित्व नहीं है परन्तु आप इस अस्तित्वहीन आयामके साथ ऐसे जुड़े रहते हैं, जैसे कि वही वास्तविकता हो। सारा भ्रम बस यही है। मन ही इसका आधार है। यदि आप मनसे परे चले जाते हैं तो एक ही झटकेमें हर चीजके पार चले जाते हैं। आध्यात्मिक विज्ञानके सभी प्रयास बस इसीलिए हैं कि मनसे परे कैसे जायं। मनकी सीमाओंसे बाहर जाकर जीवनको कैसे देखें। बहुतसे लोगोंने योगको अलग-अलग ढंगसे परिभाषित किया है। लोग कहते हैं, यदि आप ब्रह्मïांडके साथ एक हो जाते हैं तो ये योग है। खुदसे परे चले जाते हैं तो योग है। भौतिकताके नियमोंसे प्रभावित नहीं हैं तो योग है। यह सब बातें ठीक हैं। अद्भुत परिभाषाएं हैं, इनमें कुछ भी गलत नहीं है, परन्तु अपने अनुभवकी दृष्टिसे आप इनसे संबंध नहीं बना पाते। किसीने कहा, यदि आप ईश्वरके साथ एक हो जाते हैं तो आप योगमें हैं। आप नहीं जानते कि ईश्वर कहां हैं तो आप एक कैसे हो सकते हैं। परन्तु पतंजलिने ऐसा कहा, मनके सभी बदलावोंसे ऊपर उठना, जब आप मनको समाप्त कर देते हैं, जब आप अपने मनका एक भाग बनना बंद कर देते हैं तो यह योग है। इस दुनियाके सभी प्रभाव आपमें सिर्फ मनके माध्यमसे ही आ रहे हैं। यदि आप, अपनी पूर्ण जागरूकतामें अपने मनके प्रभावोंसे ऊपर उठते हैं तो आप स्वाभाविक रूपसे हर चीजके साथ एक हो जाते हैं। आपका और मेरा अलग-अलग होना, समय स्थानकी सारी भिन्नताएं भी, सिर्फ मनके कारण होती हैं। ये मनका बंधन है। यदि आप मनसे परे हो जाते हैं तो समय स्थानसे भी परे हो जायंगे। यदि आप मनके सभी बदलावों और अभिव्यक्तियोंसे ऊपर उठते हैं तो आप मनके साथ खेल सकते हैं। अपने मनका उपयोग जबरदस्त तरीकेसे कर सकते हैं परन्तु यदि आप मनके अंदर हैं तो आप कभी भी मनकी प्रकृतिको नहीं समझ पायंगे।