सम्पादकीय

महामारीके बीच कालाबाजारी


साक्षी शर्मा

कोरोना महामारीने देशको झकझोर दिया है। देशमें आक्सीजनकी समस्याको लेकर अपने देश ही नहीं, अपितु विदेशोंमें भी भारतको इस किल्लतको लेकर खरी-खोटी सुनायी जा रही है। पहले जहां वैक्सीनको लेकर भारतकी हर जगह तारीफ हो रही थी, वहीं आक्सीजनकी कमीसे हो रही दयनीय दशा पूरे विश्वको दिखायी जा रही है। हमारे देशके राज्यों दिल्ली, महाराष्ट्र, हरियाणा, उत्तर प्रदेश या हिमाचल, सभीको भीतरसे झकझोरनेवाली खबरें मिल रही हैं। इस संबंधमें केंद्रीय स्वास्थ्यमंत्री हर्षवर्धनने भी साफ शब्दोंमें कहा कि भारतमें आक्सीजनकी कोई कमी नहीं है और प्रत्येक राज्यको आक्सीजनकी भरपूर पूर्ति की जा रही है। इन सारी स्थितियों और परिस्थितियोंके अंतर्गत सवाल यह उठता है कि अब सरकारपर विश्वास किया जाय तो समस्या कहांसे उत्पन्न हो रही है। अभी जनवरीमें एक बड़े व्यवसायीकी पत्नीको कोरोना हो गया जिनके फेफड़ोंमें ज्यादा संक्रमणकी वजहसे उनकी जान चली गयी। उनके सभी मित्रोंने उनकी पत्नीकी मृत्युसे प्रभावित होकर आक्सीजन सिलेंडर अपने घर रख लिये, ताकि भविष्यमें ऐसी समस्या उनके साथ पेश न आये। यह एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक बड़े तबकेकी बात है जिन्होंने पैसेके दमपर एक-दो नहीं, बल्कि चार-पांच आक्सीजन सिलेंडर अपने घरपर खरीद कर रख लिये हैं। सोचनेका विषय यह है कि ऐसा यदि पांचसे आठ लाख लोगोंने भी किया होगा तो कितनी जमाखोरी हो गयी होगी। ऐसेमें आक्सीजन सिलेंडरके उपलब्ध न होनेपर केवल सरकार जिम्मेदार है या इन व्यक्तियोंका स्वार्थ भी जिम्मेदार है जिन्हें केवल अपनी और अपने परिवारकी चिन्ता है। यह सोचना सहज भी है क्योंकि पहले लाकडाउनमें भी इन लोगोंने केवल सालभरका राशन घरमें भरकर गरीबको भूखा मरनेके लिए छोड़ दिया था। दूसरा अनुभव, एक परिचित प्राइवेट अस्पतालमें भर्ती था क्योंकि सरकारी अस्पतालमें जगह नहीं थी। उसे भी आक्सीजनकी जरूरत थी। एक तरफ समयके साथ व्यक्तिकी तबीयत खराब हो रही है जिससे उस व्यक्तिके परिवारके साथ वहांके मरीज भी घबराने शुरू हो गये हैं। जो ठीक होनेकी कगारपर है, वह डर कर ही जान गंवा रहा है। ऐसी स्थितिमें अस्पतालका ही कोई कर्मचारी मरीजके परिजनके पास आकर उसे विश्वास दिलाता है कि वह यह चीजें उन्हें उपलब्ध करवा सकता है, परन्तु कीमत असली कीमतसे कई गुना ज्यादा होगी।

एक तरफ मौतकी तरफ बढ़ता भाई और एक तरफ यह कालाबाजारी, आखिर एक आम आदमी किसे चुनेगा। १२०० रुपयेका टीका वह व्यक्ति ३० हजार रुपयेमें उपलब्ध करवाता है। एक आक्सीजन सिलेंडर ६५ हजार रुपयेमें। अब एक प्रश्न है कि उस व्यक्तिके पास आक्सीजन सिलेंडर और वह इंजेक्शन कहांसे आया जो अस्पताल प्रशासनके पास भी उपलब्ध नहीं है। क्या इसके पीछे केवल वह व्यक्ति है या हर वह डाक्टर, हर वह केमिस्ट या हर वह अस्पताल प्रशासन भी है जो इस महामारीमें लोगोंकी जान खरीदने और बेचनेका खेल खेलनेमें लगे हैं। क्या यह व्यक्तिगत स्वार्थ भी इन व्यक्तियोंकी मौतका जिम्मेदार नहीं। हमारे देशमें अक्सर कहा जाता है सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दु:खभाग् भवेत॥ एक तरफ यह स्वार्थ सिद्धि हेतु जमाखोरी और कालाबाजारी! हम भारतीयोंकी सबसे बड़ी समस्या है। यहां हर व्यक्ति चाहता तो है कि घर-घरसे भगत सिंह निकले, परन्तु मन ही मन उम्मीद की जाती है कि वह भगत सिंह अपने नहीं, पड़ोसीके घरसे निकले। इसी तरह जब बात खुदपर या अपने परिवारपर आती है तो लोगोंको बड़ी संख्यामें आक्सीजन सिलेंडरकी जमाखोरी करना गलत नहीं लगता, परन्तु जब बात दूसरेके घरकी हो तो इसे सरकारका कमजोर रवैया घोषित कर दिया जाता है और जमकर सोशल मीडियापर इसकी आलोचना शुरू हो जाती है। पिछले एक सालसे बहुतसे व्यक्तियोंको करोड़ों दान करते देखा, समाजसेवा करते देखा और कोरोनाको ठीक होते हुए भी देखा।

इस समय तो इस महामारी कोरोनाने इतना भयानक रूप धारण कर लिया है कि लोग अपनोंसे ही डर रहे हैं, लेकिन इस बीमारीका पूरा लाभ निजी अस्पतालोंके कर्मचारी, जमाखोरी करनेवाले ले रहे हैं, जिन्होंने अपना स्वार्थ तो सिद्ध कर लिया, परन्तु अपने देशवासीको संसाधनोंके अभावका नाटक कर मरनेके लिए छोड़ दिया है। इससे साफ होता है कि इन व्यक्तियोंकी वजहसे कोरोना और ज्यादा विशाल रूप धारण कर रहा है। आज यदि भारतका हर व्यक्ति कालाबाजारी और जमाखोरी छोड़ दिलसे अपने देशवासियोंकी कोरोनासे जान बचानेमें अपना सहयोग देगा तो मात्र दोसे तीन महीनोंमें पूरा देश कोरोनामुक्त हो जायगा और हम सभी अपने खुशहाल जीवनमें फिरसे लौट आयंगे। आजके समयमें आपकी ईमानदारी ही देशके लिए सबसे बड़ी समाजसेवा होगी। देशको बचाने और यहांकी गरीब जनताको इस बीमारीसे मुक्त करवानेके लिए जो उपकरण, जो दवाई और आक्सीजन जिसपर आम व्यक्तिसे लेकर हर तबकेके व्यक्तिका हक है, उन्हें बिना किसी स्वार्थके उनतक पहुंचने दें। इस संकटकी घड़ीमें यही आपका सबसे बड़ा योगदान होगा। इसीके साथ सभी राजनीतिक दलोंको अपने स्वार्थ किनारे रखकर जनताके मनसे संसाधनोंकी कमीका डर निकालने एवं कालाबाजारी रोकनेकी कोशिश करनी चाहिए।