डा. धनंजय सहाय
राजनीतिके वर्तमान गलाकाट परिदृश्यमें पिछले दिनों नेताओं द्वारा लिखे गये पत्र आमजन मानसका ध्यान आकृष्टï करनेमें सफल रहे हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि राष्टï्रीय एवं अन्तरराष्टï्रीय स्तरपर लिखे गये यह खत एक तरफ जहां उम्मीदोंका चिराग रोशन करनेका प्रयास करते दिखे वहीं, सत्तासे बिछडऩेकी आशंका भी सिरपर सवार दिखी। आश्चर्यजनक रूपसे जिन पत्रोंका उल्लेख प्रस्तुत आलेखमें किया जा रहा है उसमें भारतके प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी एवं उनकी सरकार केन्द्रमें है। प्रधान मंत्री मोदी द्वारा पाकिस्तान दिवसके अवसरपर इमरान खानको लिखी गयी चि_ïी और फिर उसके जवाबमें इमरान द्वारा मोदीको भेजा गया खत हो या फिर पश्चिम बंगालके रणमें चौरफा घिर चुकी ममता बनर्जी द्वारा गैर-भाजपाई दलोंके नेताओंको बेबसीके अन्दाजमें लिखी गयी पत्री या फिर केन्द्र सरकार द्वारा पंजाब सरकारको सीमावर्ती गांवोंमें बंधुआ मजदूरी एवं मादक द्रव्योंके प्रयोगपर ध्यान आकृष्टï करानेवाला खत हो, सब कहीं न कहींसे यह साबित करते हैं कि खतोंमें अब भी इतना दम है कि वह नेताओंके साथ आम जनमानसको भी अपनी तरफ खींच सकती हैं।
फिलहाल खतोंकी यह आवाजाही भविष्यमें भी होती रहेगी, परन्तु विचारका मुद्दा यह है कि यह सारे खत अपने अन्दर गूंढ़ रहस्य तो समेटे ही हैं इनपर राष्टï्रीय एवं अन्तरराष्टï्रीय राजनीतिकी दशा और दिशा तय करने की कूबत भी है। दरअसल जबसे भारतने जम्मू-कश्मीरसे धारा ३७० हटाया है तभीसे पड़ोसी देश पाकिस्तानकी सोच यही थी कि धारा ३७० हटाना ‘न भूतो, न भविष्यतिÓ वाली प्रक्रिया है लेकिन मोदी सरकारने चुटकी बजाने जैसे इस नासूरका इलाज कर दिया उससे पड़ोसी नापाक इरादोंवाले देशके हाथोंसे मानो तोते ही उड़ गये। खिसियाहटमें उसने भारतसे व्यापारपर रोककी घोषणा कर दी। हालांकि इससे भारतका नुकसान कम हुआ, परन्तु पाकिस्तानकी तो मानो कंगालीमें आटा गीला हो गया। दोनों देशोंके रिश्तोंपर जमी बर्फ पिघलनेका नाम ही नहीं ले रही थी। पिछले कुछ दिनोंसे सऊदी अरबके पर्देके पीछेसे किये गये प्रयासोंसे पाकिस्तानी सरकार एवं सेनाके बद्ïजुबानीमें कुछ फर्क अवश्य आया। इन सबके बावजूद पाकिस्तान दिवसपर मोदीने इमरान खानको जब शुभकामना सन्देश प्रेषित करते हुए लिखे खतमें कहा कि भारत पाकिस्तानके लोगोंके साथ अच्छे रिश्ते चाहता है। इसके लिए आतंकवाद एवं शत्रुतासे मुक्त और विश्वास और भरोसेसे भरे माहौलकी आवश्यकता है।
मोदीका यह खत भारतकी परम्पराओं एवं स्वयं मोदीके कामकाजके तरीकोंसे मेल खाता है। इमरानने भी इस खतका जवाब दिया परन्तु अपने चिर-परिचित अन्दाजमें। जवाबी खतमें भी वह जम्मू-कश्मीरके जिन्नसे अपना पीछा नहीं छुड़ा पाये। सरहदके उस पारसे आये खतमें इमरानने लिखा कि पाकिस्तान दिवसकी शुभकामनाओंके साथ भेजे गये पत्रके लिए मैं आपको शुक्रिया अदा करता हूं। पाकिस्तानके लोग भी भारत समेत अपने सभी पड़ोसी देशोंके साथ शान्तिपूर्ण और सहयोगपूर्ण रिश्ते चाहते हैं। हम इस बातको लेकर निश्चिन्त हैं कि दक्षिण एशियामें स्थायी शान्ति और स्थिरता भारत और पाकिस्तानके बीच सभी मुद्दों, जिसमें खास तौरपर जम्मू और कश्मीरका विवाद शामिल है उसके सुलझ जानेसे जुड़ी है। कुल मिलाकर कहा जाय तो पाकिस्तानकी सुई जम्मू-कश्मीरपर जाकर अटक जाती है। यूं भी पाकिस्तान कभी भी भरोसे लायक रहा नहीं और अब उसे यही डर सता रहा है जम्मू-कश्मीरके अन्दरूनी हालात सुधरनेके बाद मोदी सरकारका अगला निशाना पाकिस्तानअधिकृत कश्मीरके साथ उसके असंतुष्टï अन्य इलाकोंपर भी है। लिहाजा उसकी नींद उड़ी है। फिलहाल मोदी सरकारको पाकिस्तानके मसलेपर फूंक-फूंककर कदम उठानेकी आवश्यकता है, क्योंकि इतिहास गवाह है कि कुत्सित चालों एवं पीठमें छुरा घोपनेमें उसका कोई सानी नहीं है।
अब चर्चा एक बेहद महत्वपूर्ण अन्दरूनी चि_ïीकी जो पश्चिम बंगालकी मुख्य मंत्री ममता बनर्जीने विपक्षके तमाम बड़े दलोंके नेताओंको लिखी है। इस खतका सारांश यही है कि आओ हम सब अपने आपसी जूतम-पैजारको परे रखकर गलबहियां डालते हुए मोदीका सामना करें अन्यथा यह मोदी हम सबको कहींका नहीं छोड़ेगा। भारतीय राष्टï्रीय कांग्रेसकी सोनिया गांधी, शिवसेनाके उद्धव ठाकरे, आम आदमी पार्टीके अरविन्द केजरीवाल, राष्टï्रवादी कांग्रेस पार्टीके शरद पवार, द्रमुकके एम.के. स्टालिन, सपाके अखिलेश यादव, राष्टï्रीय जनता दलके तेजस्वी यादव, भाकपाके दीपांकर भट्टïाचार्या, झारखण्ड मुक्ति मोरचाके हेमन्त सोरेन, नेशनल कांफ्रेंसके फारुक अब्दुल्ला, पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती, वाईएसआर कांग्रेसके जगन रेड्डïी, बीजू जनता दलके नवीन पटनायक आदिको भेजे खतका लब्बोलुआब यही है कि भाजपाके खिलाफ वह सब उसका साथ दें। पाती भेजे जानेका जो समय है वह विचारणीय है। यह पत्र नंदीग्राममें मतदानसे ठीक पहले भेजा गया। नंदीग्राम वहीं रणभूमि है जहां ममता बनर्जीका मुकाबला कभी उनके विश्वासपात्र रहे, परन्तु अब भाजपा प्रत्याशीके रूपमें उन्हें कांटेकी टक्कर दे रहे शुभेन्दु अधिकारीका गढ़ रहा है। नंदीग्राममें चाहे कमल खिले अथवा दो पत्तियां और चमकदार होकर सामने आये यह तो भविष्यके गर्भमें है परन्तु यह तो मानना होगा कि शायद ममता बनर्जी नंदीग्रामसे चुनाव लडऩेके अपने फैसलेको गलत मान रही हों। उनकी सोच यही रही होगी कि शुभेन्दुके खिलाफ यदि वह चुनाव लड़ेंगी तो वह नंदीग्राममें ही सिमटकर रह जायंगे और अन्य इलाकोंमें ज्यादा नुकसान तृणमूलको नहीं पहुंचा पायेंगे परन्तु शायद ममताको लगा कि ऊंट कहीं दूसरी करवट न बैठ जाय इसलिए उन्हें खुद राशन-पानी लेकर नंदीग्राममें किरायेके मकानमें मतदानसे कई दिनों पूर्व आशियाना बनाना पड़ा।
ममता बनर्जीका यह खत कई मामलोंमें विचारणीय है। इसमें कहींपर निगाहें कहींपर निशाना तो है ही बंगालसे रुखसत होनेके बाद केन्द्रकी राजनीतिमें अवसर तलाशनेका भाव भी है और यदि बंगालमें उनकी पुन: ताजपोशी होती है तो भी मोदीसे टकराना उनके अकेलेके बूतेकी बात तो आगे नहीं रहेगी। यह उन्हें अच्छेसे पता है। उन्होंने अपने पत्रकी शुरुआत दिल्लीके मुख्य मंत्री अरविन्द केजरीवालकी दुखती रगपर हाथ रखकर लिया है जो केन्द्र सरकार द्वारा एलजीके अधिकारोंमें वृद्धिसे हुआ है। उन्हें दिल्ली और केजरीवालकी चिन्ता कम अपना कुनबा बढ़ानेकी जरूरत ज्यादा महसूस हो रही है। उन्हें पता है कि विपक्षी एकता दूरकी कौड़ी है। दिल्लीके तख्तपर हर क्षेत्रीय क्षत्रप नजरें गड़ाये बैठा है। एक-दूसरेके खिलाफ चुनाव मैदानमें दो-दो हाथ कर रहे दलोंसे बीच मतदान इस तरहकी अपीलसे यह भी अन्देशा जताया जा सकता है कि ममताको पश्चिम बंगालका अपना किला सुरक्षित रख पानेमें सन्देह हो रहा है। उनके किलेमें भाजपाने अच्छीखासी घुसपैठ कर ली है। परन्तु कांग्रेस एवं वामदलोंसे साथ देनेकी अपील गलेके नीचे नहीं उतरती जो खुद उनसे चुनावमें दो-दो हाथ कर रहे हैं। विधानसभा चुनावके बाद विपक्षी एकताका प्रयास इस समय करना ममताके लिए घाटेका सौदा भी हो सकता है, क्योंकि जनता यानी मतदाता भी अब पहलेकी अपेक्षा काफी परिपक्व हो चुका है।
आम मतदाता यह समझ रहा है कि सिर्फ मोदी एवं भाजपाको रोकनेके लिए यदि ‘केर-बेरको संगÓ वाली विपक्षी एकता होती भी है तो यह आपसी सिर फुटौव्वलसे अधिक कुछ नहीं होगी। अव्वल तो यह सम्भव ही नहीं है, क्योंकि पूर्वमें किये गये प्रयासोंके बुरे हश्रमें हम सभी वाकिफ हैं। उधर केन्द्र सरकार द्वारा पंजाब सरकारको भेजे गये एक खतसे अलग बवाल मचा है। केन्द्रने अपने पातीमें लिखा है कि पंजाबके सीमावर्ती जिलों यथा अमृतसर, गुरुदासपुर, फिरोजपुर, फजितका आदिमें किसान जमींदार उत्तर प्रदेश एवं बिहारसे कृषि मजदूरोंको लाकर उन्हें नशेका आदी बनाकर बंधुआ मजदूरकी तरह रखते हैं। इन्हें नाममात्रका वेतन दिया जाता है और इनका शोषण किया जाता है। सीमा सुरक्षा बलने वर्ष २०१९ एवं २०२० में लगभग ५८ लोगोंको इन हालातोंमें छुड़ाया था। यह बात दीगर है कि राजनीतिमें जब कोई अपनी गिरेबानमें नहीं झांकता तो भला पंजाब सरकार ऐसा क्यों करेगी। फिलहाल अब इन खतोंका असर देखनेवाली बात होगी। उसके लिए हमें करना होगा थोड़ा इन्तजार।