सम्पादकीय

शब्दोंका सौन्दर्य


श्रीश्री रविशंकर

जब हम शब्दोंकी शुद्धताको अनुभव करते हैं तो हम जीवनकी गहराईको अनुभव करते हैं और जीवन जीना आरंभ कर देते हैं। हम सुबहसे राततक शब्दोंको ही जीते हैं। हम इनके पीछेके उद्देश्योंको खोजनेमें सारे उद्देश्य भूल जाते हैं। यह इतना गंभीर हो जाता है कि नींद ही खो बैठते हैं। रातभर उन शब्दोंके कारण परेशान हो जाते हैं। बहुतसे लोग रातको सोते समय भी बोलते हैं। यहांपर शब्दोंसे आराम नहीं मिल पाता। शब्द ही सभी प्रकारकी चिंताओंकी जड़ है। बिना शब्दोंके तो आप चिंतित ही नहीं हो सकते। आपकी मित्रता शब्दोंकी ही देन है। कोई कहता है आप कितने महान, सुंदर, दयालु हैं। अचानक आपमें प्रेम जाग्रत हो जाता है और जब कोई व्यक्ति हमसे गलत शब्दोंमें बात करता है तो हम दुखी हो जाते हैं। लेकिन वह तो शब्द मात्र है। जीवन बहुत ही सतही हो जाता है, जब हम जीवनको शब्दोंपर जीते हैं। जो कुछ भी जीवनमें महत्वपूर्ण है, सार युक्त है वह तो शब्दोंमें व्यक्त ही नहीं किया जा सकता। प्रेमका अनुभव सही कृतज्ञता शब्दोंमें व्यक्त नहीं हो सकता। वास्तविक सौंदर्य और सच्ची मित्रतामें शब्द नहीं होते। क्या हम उस व्यक्तिके साथ जिससे हम प्रेम करते हैं, कुछ देर मौनमें बैठे हैं। क्या आपको याद आता है कि आप किसीके साथ बैठकर चुपचाप कार चला रहे हों या सूर्यास्तको देखकर या सौंदर्यको देखकर चुप रहे हों। नहीं, हम अपना मुंह खोल देते हैं। हम बातें करना आरंभ कर देते हैं और जो सौंदर्य है उसको समाप्त कर देते हैं। हम पिकनिक मनाने जायं और वहांपर सौंदर्य देखकर भी बातें करते रहें। कार चला रहे हों तब देखो हम कितनी बाते करते हैं। कभी कभार सभी बातें करने लगते हैं। कोई एक-दूसरेको समझ ही नहीं रहा होता है। हम अपने मनको शोरसे भर लेते हैं। जितना क्रोध अंदर होता है, उतना ही कठोर संगीत बाहर हम चलाते हैं, क्योंकि ऐसा करना हमें राहत देता है। जितनी शुद्ध हमारी चेतना होती है, जितने हम तनावमुक्त होते हैं, उतना ही हम संगीतके प्रति संवेदनशील होते हैं। आपकी उपस्थिति ही बता देती है कि आप क्या हैं। एक महान संत प्रेमपर अपना प्रवचन देगा और आपको वह अनुभव ही नहीं होगा। अपने भीतर बैठें, ध्यान करें, कुछ देर मौनमें रहें और अनुभव करें कि आप प्रेममें हैं।