सम्पादकीय

उत्थानके विकल्प


सर्वोच्च न्यायालयने मराठा आरक्षण मुद्देपर गम्भीर सवाल खड़ा किया कि किसी भी वर्गको आगे लानेके लिए सिर्फ आरक्षण ही क्यों? पिछड़े वर्गोंके उत्थानके लिए आरक्षणके बजाय और विकल्प क्यों नहीं हो सकते। शिक्षाको आगे बढ़ानेके लिए और संस्थानोंकी स्थापना की जा सकती है। राज्य सरकारोंको इसपर गम्भीरतासे विचार करनेकी जरूरत है। मराठा कोटा मामलेकी सुनवाईके दौरान सोमवारको न्यायमूर्ति अशोक भूषणकी पांच सदस्यीय संविधान पीठने सामाजिक और शैक्षणिक रूपसे पिछड़े वर्गोंके उत्थानके लिए संस्थानोंकी स्थापनापर जोर देते हुए कहा कि सकारात्मक काररवाई सिर्फ आरक्षणतक सीमित नहीं है। संविधान पीठकी यह टिप्पणी उचित और विचारणीय है, क्योंकि कहींपर तो आकर आरक्षणसे आगे बढऩा ही होगा। ऐसी स्थितिमें क्यों न अभीसे हम आरक्षणके अलावा भी उत्थानके लिए सकारात्मक कदम उठायें। अदालतकी इस टिप्पणीपर झारखण्ड सरकारकी ओरसे पैरवी कर रहे अधिवक्ताने कहा कि इस तरहकी पहलके लिए राज्य सरकारके वाणिज्यिक संसाधन भी मुद्दा बनेंगे। इसके अलावा शिक्षकों और स्कूलोंकी संख्या भी आड़े आयगी। निश्चित रूपसे इस पहलसे नयी दिक्कतें सामने आयंगी। इसे राज्य सरकारपर छोड़ देना चाहिए कि वह किस तरहके सकारात्मक कदम उठाती है। यदि आरक्षण ७० प्रतिशत होता है और न्यायालयको यह सही नहीं लगता तो वह इसे रद कर सकता है लेकिन आरक्षणकी अधिकतम ५० प्रतिशत सीमा निर्धारित नहीं कर सकता है। राज्योंकी आबादीके आधारपर आरक्षणकी पहुंच अलग-अलग होगी इसलिए एक समान फार्मूला सभी राज्योंपर लागू नहीं हो सकता। समानताके अधिकारके तहत समाजके आखिरी पायदानपर बैठे व्यक्तिको आगे बढऩेका मौका मिले यह सरकारोंकी जिम्मेदारी है लेकिन इसका आधार एकमात्र आरक्षण हो यह ठीक नहीं है। अभी कुछ ही दिन पहले शीर्ष न्यायालयने कहा था कि आरक्षण कबतक चलेगा। कहीं न कहीं इसका अंत होगा ही। आरक्षणके अतिरिक्त और भी विकल्प तलाशनेका शीर्ष न्यायालयका सुझाव उचित और अनुकरणीय है। आरक्षण नीतिमें भी व्यापक बदलावकी जरूरत है। आरक्षणका आधार जाति या वर्ग नहीं, बल्कि आर्थिक होना चाहिए जिसका लाभ सामान्य वर्गको भी मिल सके।

सुरक्षाबलोंकी सफलता

पाकिस्तान एक ओर जम्मू-कश्मीरमें आतंकी गतिविधियोंको बढ़ावा दे रहा है तो दूसरी ओर सीमापर संघर्षविरामका उल्लंघन कर घुसपैठकी कोशिशमें भी पीछे नहीं है। कुछ दिन पूर्व भारत और पाकिस्तानके बीच संघर्ष विरामपर सहमति बनी थी लेकिन उसी समय इस बातकी भी आशंका बनी थी कि पाकिस्तान शायद ही सीमाकी मर्यादाओंका अनुपालन करे। पाकिस्तानने अपने चरित्रके अनुरूप ही आचरण किया है। सुरक्षा एजेंसियोंने एक सप्ताहमें दो बार घुसपैठके प्रयासको विफल कर दिया। पाकिस्तान स्थित आतंकी संघटन कश्मीर घाटीमें किसी बड़ी घटनाको अंजाम नहीं दे पानेके कारण हताशाकी स्थितिमें आ गये हैं। सुरक्षाबल पूरी तरहसे सतर्क और मुस्तैद हैं। सीमापर बने लांचिंग पैडपर बड़ी संख्यामें आतंकी घुसपैठकी फिराकमें एकत्रित हैं। जिन स्थानोंपर बाड़ नहीं बने हैं वहांसे घुसपैठकी आशंका है लेकिन ऐसे स्थानोंपर भी सुरक्षाबल पूरी तरहसे सतर्क हैं। दूसरी ओर दक्षिणी कश्मीरके मानिहाल (शोपियां) में सुरक्षाबलोंको उस समय बड़ी सफलता मिली जब नौ घण्टेतक लगातार मुठभेड़के बाद लश्कर-ए-तैयबाके चार आतंकी मौतके घाट उतार दिये गये। पुलिस महानिदेशक विजय कुमारके अनुसार गुप्तचर सूचनाके आधारपर सुरक्षाबलोंने आतंकियोंकी घेरेबंदी की और उन्हें ढेर कर दिया। इससे राज्यमें सक्रिय आतंकियोंका मनोबल टूट गया है। इसके बावजूद अभी निरन्तर सतर्कता बरतनेकी जरूरत है, क्योंकि विभिन्न स्थानोंपर आतंकी छिपे हो सकते हैं। सुरक्षाबलोंको सघन अभियान जारी रखना चाहिए जिससे कि राज्यको आतंकियोंसे मुक्त किया जा सके। इसमें स्थानीय जनता और गुप्तचर तंत्रकी महत्वपूर्ण भूमिका है। उन लोगोंकी भी पहचान होनी चाहिए जो आतंकियोंको संरक्षण देते हैं और उनके खिलाफ भी सख्त काररवाई आवश्यक है। संरक्षण देनेवालोंके राजनीतिक दलोंके साथ भी निकटके सम्पर्क हैं, जिन्हें  बेनकाब करनेकी जरूरत है। वैसे कश्मीरमें आतंकियोंकी कमर टूट गयी है लेकिन उनका पूरी तरह सफाया नहीं हो पाया है।