सम्पादकीय

संक्रमित जानवरोंके लिए भी टीका


मुकुल व्यास

कोरोना वायरससे बचनेके लिए अब जानवरोंको भी वैक्सीन लगायी जा रही है। अमेरिकाके सेन डिएगो चिडिय़ाघरमें कुछ गोरिल्लाओंके पॉजिटिव होनेके बाद अनेक बड़े वानरोंको वैक्सीन लगायी गयी है। इनमें ओरांगुटान और बोनोबो वानर शामिल हैं। इन्हें वैक्सीन लगानेका काम जनवरीमें शुरू हुआ था जो इस महीने भी जारी रहा। इन जानवरोंको तीन हफ्ते बाद दूसरी डोज दी गयी। टीके लगवानेवाले सभी जानवर स्वस्थ हैं और उनमें अभीतक वैक्सीनका कोई दुष्प्रभाव नहीं दिखा है। जिन वानरोंको वैक्सीन लगायी गयी है, उनमें करेन नामक ओरांगुटान शामिल है जो १९९४ में ओपन हार्ट सर्जरी करवानेवाला दुनियाका पहला वानर बना था। इन वानरोंको एक प्रायोगिक वैक्सीन लगायी गयी है, जिसे जोएटिस नामक कंपनीने जानवरोंके लिए खास तौरसे विकसित किया है। गोरिल्लाओंके कोरोनासे संक्रमित होनेके बाद दुर्लभ जीव-जंतुओंके संरक्षणके लिए सक्रिय लोगोंमें बड़ी चिंता उत्पन्न हो गयी है। गोरिल्ला जैसे बड़े वानर भी दुर्लभ जानवरोंकी श्रेणीमें आते हैं। वायरसके मामले दूसरे चिडिय़ाघरोंमें भी देखे गये हैं। पिछले साल न्यूयॉर्कके ब्रोंक्स चिडिय़ाघर और स्पेनके बार्सिलोना चिडिय़ाघरमें शेर संक्रमित हो गये थे। इनके अलावा विश्वभरमें दूसरे जानवरोंमें कोरोनाके संक्रमणकी पुष्टि हो चुकी है। इनमें कुत्ते, बिल्लियां, फेरेट और मिंक शामिल हैं। हांगकांगमें एक कुत्तेके कोरोना पॉजिटिव होनेके बाद जोएटिसने पिछले साल फरवरीमें कुत्तों और बिल्लियोंके लिए वैक्सीन बनानेका काम शुरू कर दिया था। कंपनीने पिछले साल अक्तूबरमें कहा था कि यह वैक्सीन कुत्तों और बिल्लियोंके लिए सेफ है लेकिन इस साल फरवरीतक इसे किसी और जानवरपर नहीं आजमाया गया था। सेन डिएगो चिडिय़ाघरकी एक अधिकारी नडिन लेमब्रस्कीके अनुसार आम तौरपर कुत्तों और बिल्लियोंके लिए तैयार वैक्सीन शेरों और बाघोंको ही लगायी जाती है लेकिन गोरिल्ला जैसे बड़े वानरोंके समक्ष वायरससे उत्पन्न खतरेको देखते हुए उन्हें टीका लगानेका जोखिम उठाना जरूरी था।

मनुष्योंसे जानवरोंमें संक्रमण पहुंचना बहुत ही चिंताजनक बात है। ध्यान रहे कि जानवरों और मनुष्योंके बीच होनेवाली बीमारीको जूनॉटिक रोग कहा जाता है। इस तरहकी बीमारी बैक्टीरिया, परजीवियों, फफूंदी और वायरस द्वारा फैलायी जा सकती है। जानवरों द्वारा उत्पन्न कुछ बीमारियां आसानीसे मनुष्योंमें पहुंच सकती हैं क्योंकि स्तनपायी जीवोंकी जैविक बनावट बहुत कुछ मनुष्यों जैसी होती है। संक्रमण मनुष्यसे जानवरोंमें भी पहुंच सकता है। यदि मनुष्य और जानवर काफी लंबे समयतक साथ रहते हैं तो उनमें रोगका हस्तांतरण ज्यादा आसान हो जाता है। मनुष्योंकी तरह दूसरे स्तनपायी जीवोंमें भी कोरोना वायरसके संक्रमणका खतरा रहता है। चीनी रिसर्चरोंने एक नये अध्ययनमें कहा है कि अनेक स्तनपायी जीव कोरोना वायरसकी चपेटमें आ सकते हैं। उन्होंने प्रयोगशालामें उन जानवरोंकी कोशिकाओंका विश्लेषण किया जिनमें एसीई-२ रिसेप्टर मौजूद हैं। ध्यान रहे कि यह रिसेप्टर वायरसका रास्ता सुगम बनाते हैं। इनका आकार कोरोना वायरसकी बाहरी सतहसे मेल खाता है, जिसकी वजहसे वायरसको रक्तधारामें दाखिल होनेका द्वार मिल जाता है। रिसर्चरोंने पता लगाया कि मनुष्यके अलावा स्तनपायी जीवोंकी ४४ प्रजातियोंमें एसीई रिसेप्टर मौजूद हैं। इनमें मवेशी, पालतू जानवर और चिडिय़ाघरों और मछलीघरोंमें मौजूद जानवर शामिल हैं।

इन जीवोंमें गोरिल्ला, डॉल्फिन स्पर्म वेल, गैंडे, घोड़े, बिल्लियां, बकरियां, पांडा और तेंदुए जैसे जानवरोंका उल्लेख खास तौरसे किया जा सकता है। इस अध्ययनसे पता चलता है कि वायरसकी मौजूदगी अनुमानोंसे कहीं ज्यादा व्यापक है। अध्ययनके लेखकोंका कहना है कि सार्स-कोव-२ में अनेक स्तनपायी जीवोंको संक्रमित करनेकी क्षमता है। इन प्रजातियोंमें मनुष्योंसे सार्स-कोव-२ का संक्रमण हो सकता है। इसी तरहका संक्रमण जानवरोंमें आपसमें भी हो सकता है। उन्होंने कहा कि यह अध्ययन भविष्यमें होनेवाली महामारियोंके निवारणके लिए जरूरी कदम उठानेमें सहायक होगा। यदि भविष्यमें हमें वायरसके ऐसे प्रकोप रोकने हैं तो हमें सबसे पहले वन्य जीव-जंतुओंके अवैध व्यापार और उनके उपभोगपर प्रतिबंध लगाना होगा। इसके अलावा मनुष्यके संपर्कमें आनेवाले जानवरोंपर लगातार चौकसी रखनी पड़ेगी क्योंकि यह जानवर वायरसोंके वाहक हो सकते हैं।

चमगादड़ोंको कोरोना वायरसोंका कुदरती वाहक समझा जाता है। विशेषज्ञोंने चेताया है कि है कि हम अभीतक उन बिचौलिये जानवरोंके बारेमें नहीं जानते जो वायरसके मूल वाहकोंसे वायरसको मनुष्योंमें पहुंचाते हैं। रिसर्चरोंने अपने अध्ययनमें पाया कि पांच जानवर ऐसे हैं, जिनमें एसीई-२ रिसेप्टर नहीं पाये जाते। इनमें चूहे, कोआला और स्क्विरल मंकी शामिल हैं। रिसर्चरोंका कहना है कि उनका अध्ययन प्रयोगशालामें सेल कल्चरपर आधारित हैं। यह वास्तविक प्रयोगोंपर आधारित नहीं है लेकिन पीनास पत्रिकामें प्रकाशित उनके निष्कर्ष हालमें की गयी इस खोजके अनुरूप हैं कि कुत्ते, बिल्लियां और कुछ बंदर वायरसकी गिरफ्तमें आ सकते हैं। यूनिवर्सिटी कालेज लंदन (यूसीएल) के रिसर्चर पहले ही यह पता लगा चुके हैं कि चिडिय़ाघरों और फार्ममें रहनेवाले जानवर कोरोना वायरससे संक्रमित हो सकते हैं। उन्होंने अपने अध्ययनमें २८ प्रजातियोंकी पहचान की है जो सार्स-कोव-२ की चपेटमें आ सकते हैं। इनमें गिलहरी, गाय, भेड़, गधे, धु्रवीय भालू और पांडा शामिल हैं। पिछले महीने ब्रिटिश रिसर्चरोंने चेतावनी दी थी कि ब्रिटेनके बाग-बगीचोंमें पाये जानेवाले खरगोशों, कांटेदार जंगली चूहों और बिल्लियोंमें कोरोना वायरसकी नयी किस्मों (स्ट्रेन) धारण करनेकी क्षमता है। पिछले साल प्रकाशित एक अध्ययनमें कहा गया था कि ह्वïेल और डॉल्फिन जैसे समुद्री जीव मानव अपशिष्ट जलसे कोरोना वायरसकी चपेटमें आ सकते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपूलकी रिसर्च टीमने एआई मॉडलके जरिये यह दर्शाया कि कोरोना वायरसोंकी ४११ किस्मोंका स्तनपायी जीवोंकी ८७६ प्रजातियोंके साथ संबंध हो सकता है। जब वायरसकी दो किस्में एक ही जानवरको संक्रमित करती हैं तो उनकी आनुवंशिक सामग्री आपसमें मिलती है। इससे एक नया कोरोना वायरस उत्पन्न हो सकता है। इस समय दुनियामें फैला सार्स-कोव-२ भी कोरोना वायरसोंकी किस्मोंका मिश्रण ही लगता है।