सम्पादकीय

संवेदना


जग्गी वासुदेव

क्याआपने कभी ध्यान दिया है कि आप जब अलग-अलग तरहके विचारों और भावनाओंसे गुजरते हैं तो आपकी सांसकी बनावट अलग-अलग तरहकी होती है। जब आप क्रोधित अथवा शांत होते हैं तो दूसरे तरीकेसे सांस लेते हैं। यदि आप बहुत खुश या दुख होते हैं तो दूसरे तरीकेसे सांस लेते हैं। आप जिस तरीकेसे सोचते हैं, उसी तरीकेसे सांस लेते हैं। इस सांसको कई रूपोंमें शरीर और मनके साथ दूसरी चीजें करनेके लिए एक माध्यमके रूपमें इस्तेमाल किया जा सकता है। शांभवीमें हम सांसकी एक बहुत सरल प्रक्रियाका इस्तेमाल करते हैं, लेकिन इसका संबंध सांससे नहीं है। सांस सिर्फ एक माध्यम है, वह सिर्फ एक आरंभ है। जो घटता है, वह सांससे संबंधित नहीं है। प्राणायाम वह विज्ञान है, जहां सजग होकर एक खास तरीकेसे सांस लेने, सोचने, महसूस करने, समझने और जीवनका अनुभव करनेका तरीका बदला जा सकता है। यदि आप स्वयंकी सांसपर नजर रखें तो जो इन दिनों लोगों द्वारा की जानेवाली सबसे सामान्य क्रिया है तो आपको लगेगा कि आप सांसपर ध्यान दे रहे हैं, लेकिन असलमें ऐसा नहीं होता। आप सिर्फ हवाकी आवाजाहीसे उत्पन्न संवेदनोंपर ध्यान दे पाते हैं। यदि आपकी सांसको बाहर निकाल लूं तो आप और आपका शरीर अलग-अलग हो जायंगे क्योंकि जीव और शरीर कूरमा नाड़ीसे बंधे हैं। यह एक बड़ा छल है। यह उसी तरह है कि यदि कोई आपके हाथका स्पर्श करे तो आपको लगता है कि आप उस व्यक्तिके स्पर्शको जानते हैं, लेकिन असलमें आप सिर्फ अपने शरीरके अंदर उत्पन्न संवेदनोंको जानते हैं। सांस ईश्वरके हाथकी तरह है। आप उसे महसूस नहीं करते। जब कोई अपनी इच्छासे पूरी तरह शरीरको छोड़ता है तो हम उसे महासमाधि कहते हैं। इसे आम तौरपर मुक्ति या मोक्षके रूपमें जाना जाता है। यह ऐसी चीज है, जिसकी चाह हर योगीको है और जिसके लिए प्रत्येक मनुष्य प्रयास कर रहा है। आप समभावके एक असाधारण अनुभवपर पहुंच गये हैं, जहां शरीरके अंदर और बाहर क्या है, उसमें कोई अन्तर नहीं है। वह किसी न किसी रूपमें अपना विस्तार करना चाहते हैं और यह परम विस्तार है। बस इतना है कि वह ईश्वरकी ओर किस्तोंमें जा रहे हैं, जो एक बहुत लंबी और असंभव प्रक्रिया है। आप कभी अनंततक नहीं पहुंच पायंगे। अपने मनमें कभी भी नकारात्मक विचारोंको न आने दें। हमेशा सकारात्मकतापर ध्यान केंद्रित करें।