सम्पादकीय

जीवनका निर्माण


श्रीराम शर्मा 

संसार एक शीशा है। इसपर हमारे विचारोंकी जैसी छाया पड़ेगी, वैसा ही प्रतिबिंब दिखेगा। विचारोंके आधारपर ही संसार सुखमय अथवा दुखमय अनुभव होता है। उत्कृष्ट उत्तम विचार जीवनको ऊपर उठाते हैं। मनुष्यका जीवन उसके विचारोंका प्रतिबिंब है। सफलता-असफलता, उन्नति, अवनति, तुच्छता, महानता, सुख-दु:ख, शांति-अशांति आदि सभी पहलू मनुष्यके विचारोंपर निर्भर है। किसी भी व्यक्तिके विचार जानकर उसके जीवनका नक्शा सहज ही मालूम किया जा सकता है। मनुष्यको कायर, वीर, स्वस्थ-अस्वस्थ, प्रसन्न-अप्रसन्न कुछ भी बनानेमें उसके विचारोंका महत्वपूर्ण हाथ होता है। तात्पर्य कि अपने विचारोंके अनुरूप ही मनुष्यका जीवन बनता बिगड़ता है। अच्छे विचार उसे उन्नत बनायंगे तो हीन विचार मनुष्यको गिरायंगे। स्वामी रामतीर्थने कहा है, मनुष्यके जैसे विचार होते हैं, वैसा ही उसका जीवन बनता है। स्वामी विवेकानंदने कहा था, स्वर्ग और नरक कहीं अन्यत्र नहीं, इनका निवास हमारे विचारोंमें ही है। भगवान बुद्धने अपने शिष्योंको उपदेश देते हुए कहा था, भिक्षुओं! वर्तमानमें हम जो कुछ हैं अपने विचारोंके कारण। शेक्सपीयरने लिखा है, कोई वस्तु अच्छी या बुरी नहीं है। अच्छाई-बुराईका आधार हमारे विचार ही हैं। संसारके समस्त विचारकोंने एक स्वरसे विचारोंकी शक्ति और उसके असाधारण महत्वको स्वीकार किया है। संक्षेपमें जीवनकी विभिन्न गतिविधियोंका संचालन करनेमें हमारे विचारोंका ही प्रमुख हाथ रहता है। हम जो कुछ भी करते हैं, विचारोंकी प्रेरणासे ही करते हैं। संसारमें दिखाई देनेवाली विभिन्नताएं, विचित्रताएं भी हमारे विचारोंका प्रतिबिंब ही हैं। संसार मनुष्यके विचारोंकी ही छाया है। किसीके लिए संसार स्वर्ग है तो किसीके लिए नरक। किसीके लिए संसार अशांति, क्लेश, पीड़ा आदिका आगार है तो किसीके लिए सुख-सुविधा संपन्न उपवन। एकसी परिस्थितियोंमें एकसी सुख-सुविधा, समृद्धिमें युक्त दो व्यक्तियोंमें भी अपने विचारोंकी भिन्नताके कारण असाधारण अंतर पड़ जाता है। एक जीवनमें प्रतिक्षण सुख-सुविधा प्रसन्नता, खुशी, शांति, संतोषका अनुभव करता है तो दूसरा पीड़ा, शोक, क्लेशमय जीवन बिताता है। इतना ही नहीं, कई व्यक्ति कठिनाईका अभावग्रस्त जीवन बिताते हुए भी प्रसन्न रहते हैं तो कई समृद्ध होकर जीवनको नारकीय यंत्रणा समझते हैं। एक व्यक्ति अपनी परिस्थितियोंमें संतुष्ट रहकर जीवनके लिए भगवानको धन्यवाद देता है तो दूसरा अनेक सुख-सुविधाएं पाकर भी असंतुष्ट रहता है। दूसरोंको कोसता है, महज अपने विचारोंके ही कारण।