सम्पादकीय

बढ़ती जनसंख्यासे देशका बिगड़ता स्वरूप


 रवि शंकर

देशमें परिवार नियोजनके सघन प्रयासोंसे प्रजनन दरमें गिरावटके बावजूद महज कुछ सालोंमें भारत चीनको पछाड़कर दुनियाकी सबसे बड़ी आबादीवाला देश हो जायगा। संयुक्त राष्ट्र संघकी विश्व आबादीपर जो रिपोर्ट प्रकाशित की है, उसमें कहा गया है कि २०२७ तक भारतकी आबादी दुनियामें सर्वाधिक होकर १५० करोड़के पार पहुंच जायगी। अभी भारतकी आबादी १३७ करोड़ है, वहीं चीनकी आबादी १४३ करोड़ है। ऐसेमें २०२७ तक चीनको पीछे करके भारत दुनियाका सर्वाधिक जनसंख्यावाला देश बन जायगा। इसमें कोई दोराय नहीं कि बढ़ती आबादी किस तरहसे नयी-नयी चुनौतियां खड़ी कर रही है। जनसंख्याके लिहाजसे भारत विश्वका दूसरा सबसे अधिक जनसंख्यावाला देश है। आजादी समय भारतकी जनसंख्या ३३ करोड़ थी जो अबतक चार गुना बढ़ गयी है। परिवार नियोजनके कमजोर तरीकों, अशिक्षा, स्वास्थ्यके प्रतिजागरूकताके अभाव और विकासात्मक असंतुलनके चलते आबादी तेजीसे बढ़ी है। फिलहाल भारतकी जनसंख्या विश्व जनसंख्याका १७.५ फीसदी है। भूभागके लिहाजके हमारे पास २.५ फीसदी जमीन है। चार फीसदी जल संसाधन है। जबकि विश्वमें बीमारियोंका जितना बोझ है उसका २० फीसदी बोझ अकेले भारतपर है। वर्तमान समयमें जिस तेज दरसे विश्वकी आबादी बढ़ रही है उसके हिसाबसे विश्वकी आबादीमें प्रत्येक साल आठ करोड़ लोगोंकी वृद्धि हो रही है और इसका दबाव प्राकृतिक संसाधनोंपर स्पष्ट रूपसे पड़ रहा है। इतना ही नहीं, विश्व समुदायके समक्ष स्थानान्तरण भी एक समस्याके रूपमें उभर रही हैं। क्योंकि बढ़ती आबादीके चलते लोग बुनियादी सुख-सुविधाके लिए दूसरे देशोंमें पनाह लेनेको मजबूर हैं।

चिंताकी बात यह है कि भारतके कई राज्य विकासमें भले ही पीछे हों परन्तु उनकी जनसंख्या विश्वके कई देशोंकी जनसंख्यासे अधिक है। उदाहरणार्थ तमिलनाडुकी जनसंख्या फ्रांसकी जनसंख्यासे अधिक है तो वहीं उड़ीसा अर्जेंटीनासे आगे है। मध्यप्रदेशकी जनसंख्या थाईलैंडसे ज्यादा है तो महाराष्ट्र मेक्सिकोको टक्कर दे रहा है। उत्तर प्रदेशने ब्राजीलको पीछे छोड़ा है तो राजस्थानने इटलीको पछाड़ा है! गुजरातने साऊथ अफ्रीकाको मात दे दी तो पश्चिम बंगाल वियतनामसे आगे बढ़ गया। यही नहीं, हमारे छोटे-छोटे राज्यों जैसे झारखण्ड, उत्तराखंड, केरलने भी कई देशों जैसे उगांडा, आस्ट्रिया, कनाडा, उज्बेकिस्तानको बहुत पीछे छोड़ दिया है। अपनी इस उपलब्धिके साथ हम यह कह सकते है कि भारतमें जनसंख्याके आधारपर विश्वके कई देश बसते हैं। पिछले दो दशकोंमें भारतने काफी तरक्की की है, लेकिन दूसरी तरफ जनसंख्या वृद्धिसे बेरोजगारी स्वास्थ्य, परिवार, गरीबी, भुखमरी और पोषणसे संबंधित कई चुनौतियां उत्पन्न हो रही हैं। हालांकि इन समस्याओंका विश्वके प्राय: सभी देशोंको सामना करना पड रहा है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। भारतमें अब भी जागरूकता और शिक्षाकी कमी है। लोग जनसंख्याकी भयावहताको समझ नहीं पा रहे है कि यह भविष्यमें हमें नुकसान कितना पहुंचा सकती है। अभी हालमें ही हमें दुनियामें बढ़ते खाद्यान संकटके लिए एशिया जिम्मेदार ठहराया गया था। खाद्यान संकट तेजीसे बढ़ रहा है। अन्नके साथ जल संकट बढ़ रहा है। तेजीसे बढ़ती जनसंख्याने प्रदूषणकी दरको भी धधका दिया है। जिससे जमीनकी उर्वरता तेजीसे घट रही है साथ ही पानीका स्तर भी तेजीसे घट रहा है। ऐसेमें आनेवाली पीढिय़ोंको सुखी और समृद्ध बनानेके लिए जनसंख्यापर नियंत्रण जरूरी है।

गौर करनेवाली बात यह है कि मनुष्यकी संख्या तो प्रतिदिन बढ़ रही है लेकिन धरतीका क्षेत्रफल नहीं बढ़ सकता। बढ़ती हुई आबादी भारतकी राजनीतिक, सामाजिक एवं गंभीर आर्थिक समस्याओंकी जननी हैं तो पर्यावरण संबंधी समस्याएं भी उसीकी उपज हैं क्योंकि प्रकृतिके सीमित साधानोंपर असीमित प्राणियोंके पोषणका भार है। अपने देशमें जनसंख्या वृद्धिका प्रमुख कारण है गरीबी। जनसंख्या वृद्धिके कारणोंमें अन्य प्रमुख कारण है कम उम्रमें विवाह होना। कानून बननेके बाद बाल विवाहोंमें तो कुछ कमी अवश्य आयी है परन्तु अभीतक पर्याप्त सुधार नहीं हुआ है। भारतीय समाजमें लड़केकी चाहत भी जनसंख्या वृद्धिके लिए काफी कुछ जिम्मेदार है। सरकार द्वारा चलाया जा रहा परिवार नियोजन अब परिवार कल्याण कार्यक्रम अभी भी जनताका कार्यक्रम नहीं बन पाया है इसे जनता द्वारा मात्र सरकारी कार्यक्रम ही समझा जाता है। यदि हमें देशको जनसंख्या वृद्धिके विस्फोटसे बचाना है तो हमें ऐसी योजनाएं बनानी पड़ेंगी जो देशके आम लोगोंको आर्थिक रूपसे सम्पन्न बना सके। साथ ही साक्षरताके लिए भी प्रयास करना होगा, जिससे शिक्षाका प्रकाश सबतक पहुंच सके। परिवार कल्याण कार्यक्रममें जनताकी भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। साथ ही हमें कुछ ऐसी नीतियां बनानी होंगी जिनसे जनता स्वयं इसमें रुचि ले। इमरजेंसीके दौरान जिस तरह जनसंख्या नियंत्रणके प्रयास किये गये थे, वे किसीसे छिपे नहीं हैं। उस समय सरकारके इस प्रयासके विरोधमें जनता जबरदस्त गुस्सेमें थी और इसका खमियाजा सरकार को उठाना पड़ा था। इसलिए यह स्पष्ट है कि यदि जनसंख्या नियंत्रणकी नीतियों और जन-अवधारणोंके बीच असंतुलन और संवादहीनताकी स्थिति कायम रहेगी तो बेहतर परिणाम सामने नहीं आयंगे। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि पिछले पचास वर्षोंमें सरकार और विभिन्न सामाजिक संघटन जनताके साथ एक ऐसा संवाद स्थापित करनेमें नाकाम रहे हैं जिससे कि इस समस्याका स्थायी समाधान निकल सके। निश्चित रूपसे भारतके प्रत्येक नागरिकको निजी स्वार्थ त्याग कर देशहितमें परिवारका स्वरूप निधर्रित करना होगा और यथा सामथ्र्य समाजको जागरूक करनेका प्रयास करना होगा।