संजय राय
दिनिया इस समय दो महामारियोंसे जूझ रही है। वैश्विक महामारी कोरोना और राजनीतिक महामारी। इसका सबसे बुरा असर आम आदमीके जनजीवनपर पड़ रहा है। देशकी केंद्रीय और अधिकतर राज्योंकी राजनीतिमें इस समय भाजपाकी सरकार है। भाजपा एक दक्षिणपंथी धुर राष्ट्रवादी राजनीतिक दल है। पंडित दीनदयाल उपाध्यायका ‘एकात्म मानववादÓ को इस पार्टीकी विचारधाराका प्रमुख हिस्सा है। भाजपा दिखा रही है कि वह पूरी शिद्दतके साथ देशकी राजनीतिमें भारतकी सनातन संस्कृति और परम्पराओंको स्थापित करनेमें जुटी हुई है। फिलहाल जहां इस दलको जनताका भरपूर समर्थन हासिल है, वहीं कांग्रेस और वामपंथी दलों सहित समूचा विपक्ष राजनीतिके हाशियेपर खड़ा होकर भाजपाकी इस वैचारिक जीतको दबानेकी कोशिशमें जुटा है। विपक्षी दलोंने कई बार भाजपाके खिलाफ आन्दोलन करनेका प्रयास भी किया, लेकिन अभीतक उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिल पायी है। इसके पीछे उनका सैद्धांतिक एवं वैचारिक दीवालियापन प्रमुख कारण नजर आता है। ताजा विवाद केंद्रशासित प्रदेश लक्षद्वीपसे उठा है।
लक्षद्वीप एक छोटा-सा राज्य है और यह कई छोटे-बड़े टापुओंके समूहसे मिलकर बना है। यहांपर पिछले कुछ दिनोंसे गोमांसपर प्रतिबंध, जमीनसे जुड़े नये कानून और पंचायत चुनावके नियमोंमें प्रस्तावित बदलावोंको लेकर कांग्रेस, वामपंथी दलों और स्थानीय निवासियों द्वारा विरोध किया जा रहा है। मामला केरलकी अदालततक पहुंच चुका है। इन प्रस्तावोंके विरोधमें भाजपाकी स्थानीय इकाईके भी कई नेता उठ खड़े हुए हैं। कानून-व्यवस्थाकी दृष्टिसे लक्षद्वीप बेहद शांतिपूर्ण राज्योंकी श्रेणीमें शामिल है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरोके आंकड़े भी इसकी पुष्टि करते हैं। यहांकी लगभग ९७ प्रतिशतसे अधिक आबादी मुस्लिम समाजकी है। यहां कोई विधानसभा नहीं है। राज्यकी कमान राष्ट्रपतिकी ओरसे नियुक्त प्रशासकके हाथोंमें होती है। केंद्र सरकारने दिसंबर २०२० से गुजरातके नेता प्रफुल्ल पटेलको यहांका प्रशासक नियुक्त कर रखा है। पूरे विवादपर पटेलका कहना है कि सब कुछ नियमोंके मुताबिक हो रहा है और विरोधके स्वर केरलसे अधिक उठ रहे हैं।
विपक्ष पटेलपर लक्षद्वीपकी संस्कृतिको नुकसान पहुंचाने और बेवजह डर फैलानेकी कोशिशका आरोप लगा रहा है। उसका आरोप है कि हालके कई प्रस्तावित नियम लोकतांत्रिक मर्यादाके खिलाफ हैं। सरकारने फिलहाल नये नियमोंके मसौदेकी अधिसूचनाको जारी किया है। यहांके आम लोगोंका कहना है कि इन अधिसूचनाओंको नियमोंको ताकपर रखकर और चुने हुए प्रतिनिधियोंकी सलाहके बिना जारी किया गया है। इनमें गोमांसपर प्रतिबंध, दोसे अधिक बच्चेवालोंपर पंचायत चुनाव लडऩेपर पाबंदी, लोगोंकी गिरफ्तारी और भूमि अधिग्रहणसे जुड़े नये नियम शामिल हैं। यह सभी मसौदाके रूपमें हैं। जाहिर है सरकार इन मसौदोंपर जनताकी आपत्तियोंको सुनेगी और उसके निराकरणके बाद ही स्वराष्टï्र मंत्रालयको मंजूरीके लिए भेजा जायेगा। मंजूरी मिलनेके राष्ट्रपति हस्ताक्षर करेंगे और फिर इसे कानूनके रूपमें लागू किया जायेगा। इसके बावजूद यदि किसीको आपत्ति है तो वह सर्वोच्च न्यायालयमें कानूनोंके खिलाफ वाद दाखिल कर सकता है। यदि न्यायालयने इन्हें संविधानकी कसौटीपर गलत करार दे दिया तो यह रद हो जायेंगे। लेकिन अभीसे ही विपक्षी दल इन सभी प्रस्तावोंको वापस लेनेकी मांग कर रहे है। मुख्य रूपसे यह आरोप लगाया जा रहा है कि सरकार समुद्रके किनारे बने मछुआरोंके शेडको तोड़ रही है। वहीं, दूसरी तरफ सरकारका कहना है कि यह अतिक्रमणके खिलाफ काररवाई है। स्थानीय निवासियोंको यह डर सता रहा है कि अब ऐसी घटनाएं आम हो जायेंगी। लोगोंमें डर है कि उनकी जमीनें आनेवाले समयमें छिन सकती हैं, क्योंकि एक नये प्रावधानके तहत लक्षद्वीप डेवेलपमेंट अथॉरिटीको कई अधिकार दिये गये हैं। लक्षद्वीपसे कांग्रेसके सांसद मोहम्मद फैसलका कहना है है कि इस नयी बॉडीको असीमित शक्तियां दे दी जायेंगी, यहांपर पटेल ५० मीटर चौड़ी सड़कके निर्माणकी बात कर रहे हैं, स्मार्ट सिटी प्रोजेक्टके तहत नयी इमारतें बनानेकी बात हो रही है, हम विकासके खिलाफ नहीं हैं, लेकिन हमें समझना होगा कि यह छोटे-छोटे द्वीप हैं, यहांपर ऐसे निर्माण करनेसे लोगोंको काफी मुश्किले होंगी। सबसे बड़ी बात यह है कि यहांके चुने हुए प्रतिनिधियोंके हाथमें फैसला करनेका अधिकार नहीं होगा। फैसलका यह भी आरोप है कि इन सबको लेकर कोई विरोध न हो, इसलिए लोगोंको गिरफ्तार करनेके लिए २९ जनवरीको एक असामाजिक गतिविधि नियमन मसौदा भी तैयार किया गया है। इसके तहत किसी भी व्यक्तिको एक सालतक बिना सार्वजनिक सुनवाईके हिरासतमें रखा जा सकता है। वहीं, इन आरोपोंसे उलट पटेलका कहना है कि यह प्रावधान इलाकेके विकास और स्मार्ट सिटी प्रोजेक्टके लिए बनाये गये हैं और सभी नियमोंका पालन किया गया है। इस कानूनके बचावमें प्रशासक प्रफुल्ल पटेलका कहना है कि हालमें हुए कुछ आपराधिक मामलोंको देखते हुए इस कानूनकी जरूरत पड़ी। लगभग तीन महीने पहले कोस्ट गार्डने लक्षद्वीपके पाससे ड्रग्सकी बहुत बड़ी खेप पकड़ी थी। यह नौका श्रीलंकाकी थी। इसमें लगभग दो सौ किलो उच्च गुणवत्तावाली हेरोइन और ६० किलो हशीश मिला था। कोस्ट गार्डने शकके आधारपर १८ मार्चको तीन नौकाओंको पकड़ा था। इनके पाससे तीन हजार करोड़ रुपयेकी ड्रग, पांच एके-४७ राइफल और एक हजार जिन्दा कारतूस जब्त किया गया। इससे पहले भी कोस्ट गार्डने तूतीकोरिनके पास नवंबर २०२० में लंकाकी एक नौकाको पकड़ा था, जिसमेंसे एक हजार करोड़ रुपयेसे अधिकके ड्रग और हथियार बरामद हुए थे। गौर करनेवाली बात यह है कि श्रीलंकामें चीनके बढ़ते प्रभावको देखते हुए लक्षद्वीपका रणनीतिक महत्व बढ़ा है। इस दृष्टिसे देखा जाय तो कोई भी सरकार होती, वह इस तरहके खतरोंसे निबटनेके लिए समुद्र तटीय इलाकोंपर सुरक्षाका पहरा कड़ा करती।
फिलहाल गोमांससे जुड़ी अधिसूचनाकी बात करें तो जिसे पिछले फरवरी महीनेमें जारी किया गया है। इसके तहत प्रत्यक्ष या परोक्ष रूपसे गोमांस बेचने, रखने, जमा करने, एक जगहसे दूसरी जगह भेजनेके लिए प्रदर्शित करने या इससे जुड़ा कोई उत्पाद खरीदनेपर पांबदी होगी। यहांके लोगोंका कहना है कि गोमांसके कारोबारसे कई लोग जुड़े हैं, इस नियमके कारण उनपर रोजगारका संकट आ गया है। पशु संरक्षण नियमनके तहत जारी किये गये मसौदेमें गाय, भैंस और बैलका जिक्र है। केंद्र सरकारने देशमें भैंसेके मांसकी बिक्री और इसके निर्यातपर कोई रोक नहीं लगायी है। यदि केंद्र सरकारकी नीयत गोरक्षाकी है तो उसे पूरे देशमें समान रूपसे लागू कर देना चाहिए। देशके संविधानमें भी आर्थिक महत्वके आधारपर गोहत्यापर प्रतिबंधका प्रावधान है। जहांतक भैंसेके मांसकी बात है, दुनियाके सबसे बड़े निर्यातकोंमें भारतका शुमार है। इस अधिसूचनाके पीछे सरकारकी नीयत संदेहके घेरेमें है।
जहांतक पंचायत चुनावके लिए दो बच्चोंके प्रावधानकी बात है तो यह कानून भी राष्ट्रीय स्तरपर ग्राम प्रधानसे लेकर लोकसभाके चुनावोंपर भी लागू होना चाहिए। कई राज्योंने इस नियमको पंचायत चुनावोंके लिए लागू किया है। कोई भी कानून, सरकारकी नजरमें चाहे जितना अच्छा हो, यदि उसे स्थानीय लोगोंने खारिज कर दिया तो जमीनी स्तरपर लागू करनेका कोई मतलब नहीं होता है। संविधानमें गायको भले ही अर्थिक आधारपर लाभकारी पशु मानकर गोहत्यापर रोक लगानेका प्रावधान किया गया है, लेकिन इतिहास गवाह है कि अभीतक यह अर्थिकसे अधिक राजनीतिक बना हुआ है। इसे लेकर किसीकी भी नीयत साफ नहीं दिखती है। यदि नीयत साफ हो तो लोगोंको समझाकर गोहत्या पाबंदीको पूरे देशमें लागू किया जा सकता है। कुल मिलाकर लक्षद्वीपमें जो कुछ हो रहा उसमें राजनीति अधिक नजर आ रही है। जिन मुद्दोंको लेकर विपक्षने स्थानीय लोगोंको लेकर हंगामा खड़ा कर रखा है, वह अभी मसौदेके स्तरपर हैं। इसी स्तरपर अदालत पहुंचनेकी बात समझसे परे है। वहीं, सरकारको भी यह समझना होगा कि राजनीतिसे ऊपर राष्ट्रनीति होती है।