सम्पादकीय

विपक्षका आत्मघाती विरोध


विष्णुगुप्त
विपक्षका रवैया असंवेदनशील है। एयर स्ट्राइकका सुबूततक मांगा जाता है। भारतीय सेनाको ही बदनाम करनेके लिए राजनीति होती है। दुश्मन देशोंकी पीठ थपथपायी जाती है। जब चीनके खिलाफ भारतीय सरकार जवाब देती है तो फिर विपक्ष यह कहना नहीं चूकता कि भारतीय सरकार और प्रधान मंत्री मोदी देशको युद्ध हिंसामें झेलनेका काम कर रहा हैं। विपक्ष यह नहीं देखता कि आजादीके बाद वर्तमान केन्द्रीय सरकारने ही चीनको वीरतापूर्ण जवाब दिया है, चीनकी उपनिवेशिक नीति और भूमिको हड़पनेकी नीतिको तहस-नहस कर दिया है। विपक्षके विरोधमें एक और खतरनाक प्रवृत्ति शामिल हो गयी है। यह देशी वैक्सीनके विरोधका है। यह विरोध उस देशी वैक्सीनका है जिसके माध्यमसे सपना देखा गया है कि भारतको महामारीसे मुक्ति पाना है। निश्चित तौरपर स्वदेशी वैक्सीन तैयार करना अपने देशके लिए महान उपलब्धि है। इस उपलब्धिपर हमें उन वैज्ञानिकोंपर गर्व करनेकी जरूरत है जिन्होंने दिन-रात परिश्रम कर यह वैक्सीन तैयार किये हैं और जिनके नतीजे भी प्रभावशाली है। हर देशवासीको इस वैक्सीनपर गर्व करने और उपलब्धिके खिलाफ अफवाहोंको खारिज करनेकी जिम्मेदारी है।
सपाके अखिलेश यादवका कहना है कि भाजपाके वैक्सीनपर उन्हें विश्वास नहीं है। भाजपा इस वैक्सीनका इस्तेमाल अपने विरोधियोंको निबटाने और नपुंसक बनानेके लिए करेगी, इस भाजपाके वैक्सीनका बहिष्कार किया जाना चाहिए, वह खुद इस भाजपाके वैक्सीनको नहीं लगवायेंगे। इसीसे मिलते-जुलते बयान कांग्रेसके सांसद शशि थरूर और जयराम रमेशने दिये हैं। जयराम रमेश और शशि थरूरने वैक्सीन प्रयोगके सभी आंकड़े सार्वजनिक करनेकी मांग की है। सबसे पहले तो यह देखना होगा इस वैक्सीनका विरोध करनेवाले कोई डाक्टर नहीं हैं। अबतक ऐसी बात सामने नहीं आयी है जिससे पता चले कि इसके नतीजे खतरनाक हैं। अखिलेश यादव और अन्य विपक्षके नेताओंने जो यह कहा है कि यह वैक्सीन भाजपाका है, यह भी मूर्खतापूर्ण बयानबाजी है। इस मूर्खतापूर्ण बातपर कौन देशवासी स्वीकार कर सकता है? इस वैक्सीनको तैयार करनेवाली सरकारी गैर-सरकारी कंपनी है। इन वैक्सीनोंको लगानेकी जिम्मेदारी और नियंत्रण अधिकार सरकार और शासनके पास है। फिर यह वैक्सीन भाजपाके कैसे हुई? सबसे खतरनाक बयानबाजी तो विशेष आबादीको लेकर है। अखिलेश यादव आदिका कहना है कि भाजपा अपने विरोधकी एक विशेष आबादी और विरोधियोंको निबटाना चाहती है, उनकी जान लेना चाहती है। यह विशेष आबादीका इशारा किस और है और इसके पीछेकी राजनीतिको समझा जा सकता है। देशके विशेष आबादीका अर्थ अल्पसंख्यक आबादीसे है जो हर समय भाजपाके खिलाफ रहती है। साथ ही कांग्रेस, कम्युनिस्ट और सपा, बसपा, राजद जैसी पार्टियोंकी गुलाम होती है। यह विशेष आबादीका राजनीतिक हथकंडा वैक्सीनके खिलाफ विद्रोह करानेकी साजिश भी करार दिया जा सकता है। मोदी सरकारके कार्यकालमें इस विशेष आबादीको उकसाने और विद्रोह करानेकी कई साजिशें रची जा चुकी हैं।
सबसे महत्वपूर्ण बात प्रयोगके आंकड़े सार्वजनिक करनेकी है। विपक्षका कहना है कि अंतिम चरममें प्रयोगके आंकड़े सरकार क्यों नहीं सार्वजनिक कर रही है। ध्यान देनेवाली बात यह है कि प्रयोगके आंकड़े गोपनीय होते हैं, प्रयोगके आंकड़े सार्वजनिक करनेके भी खतरे कम नहीं है, उसका उपयोग दुष्प्रचारमें हो सकता है। अबतक दुनियामें जितनी भी वैक्सीनोंको स्वीकार किया गया है उन सभीके अंतिम चरणके प्रयोगके आंकड़े जारी नहीं हुए है, वैक्सीन बनानेवाली कंपनी और सरकारोंने आंकड़े जारी करनेसे मना कर दिया है। चीन और रूसने जो वैक्सीनें बनायी है उनके आकंडे भी जारी नहीं किये हैं। चीन और रूस अपनी-अपनी वैक्सीनका इस्तेमाल युद्ध स्तरपर कर रहे हैं। ब्रिटेन और अमेरिकाने भी बिना विरोधका वैक्सीन इस्तेमाल शुरू कर दिया है।
भारत सरकारने जो दो वैक्सीनोंको इस्तेमाल करनेकी स्वीकृति प्रदान की है, उसमेंसे एक अद्र्ध्र देशी है तो दूसरी पूर्ण देशी है। कोविशील्ड और कोवैक्सीन नामक वैक्सीनको भारत सरकारने स्वीकृति दी है। कोविशील्ड ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेकाका भारतीय संस्करण है परन्तु कोवैक्सीन पूरी तरहसे स्वदेशी है, कोविशील्डको भारतमें सीरम इंस्टिटयूट आफ इंडिया बना रही है। कोवैक्सीनको भारत बायोटेक कंपनी इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च बना रही है। गौर करनेवाली बात यह है कि ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेकाकी वैक्सीन कोविशील्डको ब्रिटेनमें इस्तेमालकी स्वीकृति मिल गयी है। जब ब्रिटेनने अपने यहां कोविशील्डको इस्तेमाल करनेकी स्वीकृति प्रदान कर दी है तब भारतमें भी इस वैक्सीनके इस्तेमालकी स्वीकृति मिली है। विपक्ष इस तथ्यकी अवहेलना क्यों कर रहा है?
स्वदेशी कोवैक्सीनकी उपलब्धि महान है। यह उपलब्धि सक्षम भारत और आत्मनिर्भर भारतकी पहचान है। दुनियाको भारतने दिखा दिया है कि हमारे पास भी वैज्ञानिक शक्ति है और हम भी दुनियाकी कोरोना महामारी संकट ही नहीं, बल्कि हर उन संकटोंसे निबटनेकी शक्ति रखते हैं। दुनियाको यह विश्वास ही नहीं था कि भारत भी उसके साथ वैक्सीन तैयार कर लेगा। यह मोदीका भारत है जो दुनियासे कदम-ताल मिलानेकी शक्ति रखता है। भारतकी स्वदेशी वैक्सीन दुनियाके लिए चर्चाका विषय है। दुनियाके कई देशोंने भारतकी स्वदेशी वैक्सीनपर दिलचस्पी दिखायी है। दुनियाके कई देशोंने कोवैक्सीनको खरदीनेकी राय जाहिर की है। भारत अपनी इस कोवैक्सीन कोरोना वैक्सीनके माध्यमसे दुनियाभरमें अपनी शक्तिशाली पैठ बनानेमें कामयाब हुआ है। कम्युनिस्टोंकी संस्कृति थी कि सिर्फ कार्ल माक्र्स, लेनिन, स्टालिन और माओत्से तुंग ही प्रेरक पुरुष है, उनके सामने गांधी, सुभाष और भगत सिंह कुछ भी नहीं हैं। कम्युनिस्ट देशकी हर उस उपलब्धिका विरोध करते थे जिस उपलब्धिसे भारत दुनियाको चकित करता रहा है। भारतीय विपक्ष यदि इसी तरह स्वदेशी उपलब्धिपर विरोध करते रहें तो फिर यह भी कम्युनिस्टोंकी तरह निबट ही जायेगे। ऐसे भी मोदीके सामने भारतीय विपक्ष लगातार हाशियेपर जा रहे हैं। कोवैक्सीनका विरोध भी आत्मघातक होगा।