सम्पादकीय

नीतिमें बदलावसे ही रुकेगी जनसंख्या


संजय सक्सेना

निर्भीक होकर फैसले लेनेमें प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेशके मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथका कोई मुकाबला नहीं है। अपने फैसलोंसे जनता और विपक्षको चैका देनेवाले योगी गुंडे, बदमाशों, भू-माफियाओंके लिए काल हैं तो लव जेहाद करनेवालोंके खिलाफ वह सख्तीके साथ पेश आते हैं। सरकारी सम्पत्तिको नुकसान पहुंचानेवालोंसे कैसा सुलूक किया जाता है, यह बात वह लोग याद रखेंगे जो आंदोलनकी आड़में सरकारी सम्पतिको नुकसान पहुंचानेसे बाज नहीं आते थे। ऐसा ही साहसिक फैसला लेते हुए योगी सरकार उत्तर प्रदेशको जनसंख्या विस्फोटसे बचानेके लिए नया और अधिक प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण कानून लेकर आ रही है। राज्य विधि आयोगने उत्तर प्रदेश जनसंख्या नियंत्रण, स्थिरीकरण एवं कल्याण विधेयक २०२१ का ड्राफ्ट तैयार कर लिया है। इसमें दोसे अधिक बच्चे होनेपर सरकारी नौकरियोंमें आवेदनसे लेकर स्थानीय निकायोंमें चुनाव लडऩेपर रोक और सरकारी योजनाओंका भी लाभ न दिये जानेका जिक्र है।

योगी सरकारकी नयी जनसंख्या नीतिमें सख्त नियमोंके अलावा समुदाय केंद्रित जागरूकता कार्यक्रम अपनानेपर जोर होगा। राज्य विधि आयोगके अध्यक्ष जस्टिस एन. मित्तलका कहना है कि जनसंख्या नीति तो आती हैं, लेकिन इसे रोकनेका कोई कानून नहीं हैं। नीतिमें आप अनुदान एवं प्रोत्साहन दे सकते हैं लेकिन दंड या प्रतिबंध नहीं लगा सकते इसलिए आयोगने कानूनका ड्राफ्ट तैयार किया है। मित्तलने बताया कि देशकी आजादीके समयसे ही जनसंख्या नियंत्रण कानून लानेकी जरूरत थी। हमने स्वत: संज्ञान लेकर इस कानूनको बनानेके लिए कदम उठाया है। उत्तर प्रदेशकी जनसंख्यामें तेजीसे इजाफा हो रहा है। जनसंख्या वृद्धिपर रोक लगाना जरूरी है। जनसंख्या वृद्धिपर रोक नहीं लगार्यी गयी तो बेरोजगारी, भुखमरी समेत अन्य समस्याएं बढ़ती जायंगी। बेरोजगारी और भुखमरी समेत अन्य पहलुओंको ध्यानमें रखकर एक मसौदा तैयार किया गया है। इसके बाद सरकार इसे प्रदेशमें कानूनके रूपमें लागू करेगी। अब जिन लोगोंको सरकारी योजनाओंका लाभ लेना होगा वह सभी कानूनका पालन भी करेंगे।

बात जनसंख्या कानूनके फायदे-नुकसानकी की जाय तो दो ही बच्चोंतक सीमित होनेपर जो अभिभावक सरकारी नौकरीमें हैं, उन्हें इंक्रीमेंट, प्रमोशन सहित कई सुविधाएं दी जायंगी। यदि कानून लागू हुआ तो एक सालके भीतर सभी सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों और स्थानीय निकायोंमें चयनित जन-प्रतिनिधियोंको शपथपत्र देना होगा कि वह इस नीतिका उल्लंघन नहीं करेंगे। नियम टूटनेपर निर्वाचन रद करनेका प्रस्ताव है। परिवार दो ही बच्चोंतक सीमित करनेवाले जो अभिभावक सरकारी नौकरीमें हैं और स्वैच्छिक नसबंदी करवाते हैं तो उन्हें दो अतिरिक्त इंक्रीमेंट, प्रमोशन, सरकारी आवासीय योजनाओंमें छूट, पीएफमें एंप्लायर कॉन्ट्रिब्यूशन बढ़ाने जैसी कई सुविधाएं दी जायंगी। दो बच्चोंवाले ऐसे दंपती जो सरकारी नौकरीमें नहीं हैं, उन्हें भी पानी, बिजली, हाउस टैक्स, होम लोनमें छूट एवं अन्य सुविधाएं देनेका प्रस्ताव है। वहीं, एक संतानपर स्वैच्छिक नसंबदी करवानेवाले अभिभावकोंकी संतानको बीस सालतक मुफ्त इलाज, शिक्षा, बीमा, शिक्षण संस्थाओं एवं सरकारी नौकरियोंमें प्राथमिकता दी जायगी। सरकारी नौकरीवाले दंपतीको चार अतिरिक्त इंक्रीमेंट देनेका सुझाव है। यदि दंपती गरीबी रेखाके नीचे हैं और एक संतानके बाद ही स्वैच्छिक नसबंदी करवाते हैं तो उनके बेटेके लिए उसे ८० हजार और बेटीके लिए एक लाख रुपये एकमुश्त दिये जानेकी भी सिफारिश है। हालांकि ऐक्ट लागू होते समय प्रेगेनेंसी हैं या दूसरी प्रेगनेंसीके समय जुड़वा बच्चे होते हैं तो ऐसे केस कानूनके दायरेमें नहीं आयंगे। यदि किसीका पहला, दूसरा या दोनों बच्चे नि:शक्त हैं तो उसे भी तीसरी संतानपर सुविधाओंसे वंचित नहीं किया जायगा। तीसरे बच्चेको गोद लेनेपर भी रोक नहीं रहेगी।

आयोगने ड्राफ्टमें धार्मिक या पर्सनल लॉके तहत एकसे अधिक शादियां करनेवाले दंपतियोंके लिए खास प्रावधान किये हैं। यदि कोई व्यक्ति एकसे अधिक शादियां करता है और सभी पत्नियोंसे मिलाकर उसके दोसे अधिक बच्चे हैं तो वह भी सुविधाओंसे वंचित होगा। हालांकि हर पत्नी सुविधाओंका लाभ ले सकेगी। वहीं, यदि महिला एकसे अधिक विवाह करती है और अलग-अलग पतियोंसे मिलाकर दोसे अधिक बच्चे होनेपर उसे भी सुविधाएं नहीं मिलेंगी। राशन कॉर्डमें चारसे अधिक सदस्य नहीं जोड़े जायंगे। स्थानीय निकाय, पंचायत चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। सरकारी नौकरियोंमें मौका नही मिलेगा।

दरअसल यदि जनसंख्या नीति सफल हो गयी होती तो सरकारको जनसंख्या नियंत्रणके लिए कानून बनानेकी जरूरत ही नहीं पड़ती। भारतकी ८० प्रतिशत जनसंख्या गांवोंमें निवास करती है। जनसंख्यामें यह तीव्र वृद्धि देशके लिए अभिशाप बनती जा रही है। फलस्वरूप गरीबी, बेराजगारी तथा महंगी आदि समस्याएं दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। गांवोंमें शिक्षाकी कमी और अज्ञानताके कारण तथा नगरोंमें गंदी बस्तियोंके लोगोंमें शिक्षाकी कमीके कारण जनसंख्या नियंत्रणका कोई भी कार्यक्रम सफल नहीं हो पा रहा है। अतएव लोगोंमें शिक्षाका प्रसार कर ही जनसंख्या वृद्धिपर नियंत्रण किया जा सकता है। इसी प्रकार जनसंख्या वृद्धिको रोकनेके लिए परिवार नियोजनके विभिन्न कार्यक्रमोंका व्यापक प्रचार-प्रसारके बाद भी परिवार नियोजन कार्यक्रमको जन-आंदोलनका रूप नहीं दिया जा सका। हमारे देशमें आज भी महिलाओंकी शिक्षाका स्तर पुरुषोंकी अपेक्षा काफी कम है। महिलाओंके शिक्षित न होनेके कारण एवं जनसंख्या वृद्धिके दृष्परिणामोंको नहीं समझ पाती। जिन क्षेत्रोंमें महिलाओंका शिक्षा स्तर कम है। वहां जनसंख्या वृद्धि दर अधिक है। पढ़ी-लिखी महिलाएं जनसंख्या नियंत्रणके प्रति जागरूक होती हैं। इस तरह महिलाएं शिक्षित होंगी तो वह अपने बच्चोंके खान-पान, पोषण तथा स्वास्थ्यपर भी ध्यान देंगी तथा जनसंख्यापर भी नियंत्रण होगा और एक स्वस्थ समाजका निर्माण होगा। आज भी हमारे समाजमें यौन समस्याओंको छिपानेकी आदत है। लोग इसपर खुलकर बातें करनेसे कतराते है। जानकारी न होनेके कारण लोग अधिक बच्चे पैदा करते हैं। स्वयंसेवी संघटन भी लोगोंके बीच जाकर उनसे बातचीत कर जनसंख्या वृद्धिसे उत्पन्न समस्याओंकी जानकारी देते हैं। उन्हें नुक्कड नाटकों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों तथा तरह-तरहकी प्रतियोगिताएं कराकर जनसंख्या वृद्धिके कारणों तथा समस्याओंकी जानकारी देकर उन्हें जागरूक बनाते हैं। समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं, रेडियों, टेलीविजनपर परिवार नियोजन तथा जनसंख्या शिक्षण संबंधी कार्यक्रमोंको बढ़ावा दे रही है। इस प्रकार जनसंख्या वृद्धिसे होनेवाली समस्याओं तथा उन्हें रोकनेके उपयोंका प्रचार-प्रसार भी करती है। परन्तु यह नाकाफी साबित हो रहे थे। इसी योगी सरकार जनसंख्या नियंत्रण कानूनपर विचार कर रही है।