अनूप
शास्त्रोंके अनुसार भगवान विष्णुकी पूजा बिना तुलसी पत्तेके अधूरी मानी जाती है। तुलसीकी सेवाभाव करनेसे घरमें सुख-समृद्धि बनी रहती है। हिंदू धर्ममें तुलसीका पौधा पवित्र, पूजनीय और लाभकारी माना गया है। आयुर्वेदमें भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। हिंदू धर्ममें मान्यता है कि तुलसीके पत्तोंको गंगाजलके साथ मृत व्यक्तिके मुंहमें रखनेसे स्वर्गकी प्राप्ति होती है। ऐसा करनेसे व्यक्तिकी आत्माको शांति मिलती है। तुलसी और गंगाजलको कभी बासी नहीं माना जाता है। इन दोनों चीजोंका इस्तेमाल पूजामें किया जाता है। मान्यता है कि इन चीजोंके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। हर रोज तुलसीके पौधेमें जल डालने और नियमित रूपसे पूजा करनेसे मनुष्यके सभी पाप मिट जाते हैं। मान्यता है कि यदि तुलसीके पौधेकी रोजाना पूजा होती है तो यमराज प्रवेश नहीं करते हैं और घरमें सुख-समृद्धि रहती है। तुलसीके पौधेको घरमें रखनेके कुछ नियम होते हैं। कभी भी अपवित्र हाथोंसे तुलसीको न छुएं। पौराणिक ग्रंथोंके अनुसार वृंदा पुत्री तुलसी शंखचूड़ नामक असुरकी पतिव्रता पत्नी थी। इसीके प्रतापसे अजेय हुआ तुलसी असुर पति शंखचूड़ देवताओंके लिए भारी मुसीबत बन गया था। ऐसी स्थितिमें भगवान विष्णुने तुलसीके पतिका वध करनेका निश्चय कर लिया। परंतु पतिव्रता तुलसीके तेज एवं बलके रहते शंखचूड़का वध करना इतना सरल भी नहीं था, इसलिए भगवान विष्णुने लोकहितमें सबसे पहले छलपूर्वक सती तुलसीका सतित्व भंग किया। लेकिन भेद खुल जानेके बाद तुलसीके श्रापसे विष्णुको शालिग्राम बनना पड़ा तथा तुलसीको शरीर त्यागनेके बाद तुलसीके वृक्षका रूप इसलिए धारण करना पड़ा कि वह हमेशाके लिए लक्ष्मीकी भांति ही भगवान विष्णुकी प्रिय रह सके। इसलिए तुलसीको भगवान विष्णुकी भार्या माना गया है। धार्मिक दृष्टिकोणसे आज भी तुलसीको लोग मां लक्ष्मी मान कर पूजते हैं। यही कारण है कि शालिग्रामकी पूजा उस वक्ततक अधूरी ही रहती है, जबतक उसपर तुलसी पत्र नहीं चढ़ते। देशके कोने-कोनेमें तुलसी रूपी पौधेकी पूजा पद्धति अनंतकालसे चली आ रही है। तुलसीके पौधेको मंदिर रूपी स्थान बनाकर उसको स्थापित किया जाता है। प्रात: एवं संध्या बेलामें दीप प्रज्ज्वलित कर इसकी पूरी श्रद्धा एवं आस्थाके साथ पूजा की जाती है।