सम्पादकीय

रक्षा सौदोंमें भ्रष्टाचार


विजयनारायण      

फ्रांसकी एक अदालतमें राफेल विमान सौदेसे सम्बन्धित भ्रष्टïाचारके खुलासेके बाद मुकदमा दर्ज हो गया है। ज्ञातव्य है कि यह सौदा फ्रांसकी विमान निर्माता कम्पनी दसाल्टने भारतके साथ किया था। यद्यपि दसाल्ट एक निजी कम्पनी है किन्तु इस सौदेमें फ्रांसकी सरकारकी भी अहम भूमिका रही है। फ्रांसकी सरकारके राजीनामेके बाद ही यह सौदा सम्पन्न हो पाया था। फ्रांसकी अदालतमें यह मुकदमा हालमें ही फ्रांसके कुछ अखबारोंमें भ्रष्टïाचारोंके खुलासेके बाद दाखिल किया गया है। यह खबर भारततक ही नहीं सारी दुनियातक फैल गयी है, इसलिए भारतमें भी इस मामलेको लेकर दिलचस्पीका बढऩा स्वाभाविक है। इस मुकदमेंसे जुड़े तथ्योंके बारेमें जो खबरें फ्रांसके अखबारोंमें छपी है, उनमें फ्रांसके वर्तमान राष्टï्रपतिके नामकी भी चर्चा जोरोंपर है। भारतकी तरह मुकदमे फ्रांस और यूरोपीय देशोंमें लम्बे समयतक नहीं खिंचते। अब देखनेकी बात यह होगी कि मुकदमेमें किन पहलुओंको शामिल किया गया है या आगे शामिल किया जाता है।

भारतमें यह सभी जानते हैं कि राफेल विमानकी खरीदके समय ही भारतमें सम्भावित भ्रष्टïाचारके विभिन्न बिन्दुओंपर चर्चा चली थी और मामला संसदमें तो उठा था, लेकिन जांचतक पहुंचानेमें भी कामयाबी नहीं मिली थी। भारतीय संसदमें जोरदार मांग उठी थी। मामलेकी जांचके लिए संसदीय समितिका गठन किया जाय। कई दिनोंतक संसदीकी काररवाई नहीं चल पायी थीख् लेकिन विपक्षको संसदीय समितिके गठनमें कामयाबी नहीं मिली थी। जांचके लिए मामला सुप्रीम कोर्टतक भी गया था और लम्बी बहस चली थी, लेकिन सुप्रीम कोर्टने सीबीआई जांचकी अनुमति नहीं दी। इस मामलेको लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी सुर्खियोंमें रहे। उन दिनों उन्होंने दावेके साथ कहा था कि मोदी सरकार अपनेको पाक-साफ साबित नहीं कर पायगी और जब अंतमें सुप्रीम कोर्टने सीबीआई जांचकी मांग खारिज कर दी तब इस फैसलेपर राहुल गांधीने तीखी प्रतिक्रिया की थी। इस प्रतिक्रियाके कारण ही सुप्रीम कोर्टने उनके नाम मानहानिकी नोटिस जारी कर दी थी और अंतमें राहुल गांधीको सार्वजनिक रूपसे खेद व्यक्त करना पड़ा था। उस वक्त भारतमें राफेल विमानसे जुड़े दो प्रमुख मामले उठे थे। पहला तो था दामको लेकर और दूसरा था सौदेमें अंबानीकी भागीदारीको लेकर। इन दोनों ही बातोंकी चर्चा आज फ्रांसके अखबारोंमें भी है किन्तु इसके अलावा भी कुछ नये मामले प्रकाशमें आये हैं।

भारतके समाचारपत्रोंमें और फिर फ्रांसके समाचारपत्रोंमें यह सवाल आ रहे कि जब विमान सौदेमें फ्रांस एवं भारत दोनों सरकारोंकी उपस्थिति थी तो बिचौलियेके रूपमें अनिल अम्बानीकी कम्पनी अम्बानी एविएशन कहांसे आ गयी। यहां यह बात जान लेनेकी है कि फ्रांसके तत्कालीन और अब भूतपूर्व राष्टï्रपति फ्रांसने कहा था कि उन्होंने भारतके प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीकी सिफारिशपर अम्बानी एविएशनको भागीदार बनाया था। अब यदि फ्रांसका न्यायालय फ्रांसके पूर्व राष्टï्रपति फ्रास्वांसे पूछताछ करता है तो मामलेमें नया रंग आते देर नहीं लगेगा। यह जानना भी दिलचस्प है कि भारत और फ्रांसके बीच औपचारिक सौदेके मात्र चार-पांच दिन पूर्व ही फ्रांसकी दसाल्ट कम्पनीने अम्बानी एविएशनके साथ एक सहमति पत्रपर हस्ताक्षर किया था, जिसके पास विमान निर्माताका कोई अनुभव नहीं था। सम्भावना यह व्यक्त की जा रही थी कि दसाल्ट कम्पनी भारतकी एकमात्र भारतीय विमान निर्माता कम्पनी एचएल, बंगालूरूके साथ समझौता करेगी, किन्तु ऐसा हुआ नहीं। यह विमान सौदे कुल ५९ हजार करोड़ रुपयेका था। इसमेंसे तीस हजार करोड़ रुपये अम्बानी एविएशनको अपना कारखाना बनानेके लिए वापस दिये जाने थे, ताकि वह नागपुरमें अपने प्रस्तावित कारखानेका निर्माण कर सके। भारतने फ्रांससे ३६ विमान पूरी तरह तैयार हालतमें खरीदे थे। अब यह कयास लगाया जा रहा था कि क्या नागपुरमें अम्बानी एविएशन विमानोंकी मरम्मत करेगा या कलपुर्जे बनायेगा।

उस वक्त यह मामला दब तो गया किन्तु रहस्यमय जरूर बना रहा। अब जबकि फ्रांसकी अदालतमें जांचकी काररवाई शुरू हो गयी तो भारतमें बोफोर्स तोप सौदेमें कमीशनखोरी और उसके बाद लम्बी जांच एवं मुकदमेबाजीकी कहानियां ताजी हो जाती हैं। भारतके साथ यह पुराना दुर्भाग्य जुड़ा रहा है कि तमाम रक्षा सौदोंमें भ्रष्टïाचारकी बातें उठती रहीं, किन्तु किसीमें भी न्यायालयसे किसी भी मामलेका स्पष्टï निबटारा नहीं हो सकता। चालू जुलाई महीनेके तीसरे सप्ताहसे संसदका मानसून सत्र शुरू होने जा रहा है। फ्रांसकी अदालत द्वारा राफेल विमान सौदेकी जांच काररवाईका मामला उठेगा और यह मांग एक बार फिर जोरदार ढंगसे उठेगी कि इस सौदेकी जांचके लिए संसदीय समितिका गठन किया जाय। सम्भावना इस बातकी भी है कि कुछ व्यक्ति या संस्थाएं एक बार फिर सुप्रीम कोर्टका रुख कर सकती हैं और मामलेकी जांच करनेके लिए मामला सीबीआई जांचकी मांग भी कर सकते हैं।