सम्पादकीय

परिसंघीय ढांचेपर जीएसटीका प्रभाव


डा. सुशील कुमार सिंह   

देशमें १ जुलाई २०१७ को एक नया आर्थिक कानून वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू हुआ था। जीएसटी लागू होनेसे पहले ही केन्द्र और राज्य सरकारोंके बीच आपसमें इस बातपर सहमतिका प्रयास किया गया था कि इसके माध्यमसे प्राप्त राजस्वमें केन्द्र और राज्योंके बीच राजस्वका बंटवारा किस तरह किया जायेगा। पहले इस तरहके राजस्वका वितरण वित्त आयोगकी सिफारिशोंके आधारपर किया जाता था। जीएसटीका एक महत्वपूर्ण संदर्भ यह रहा है कि इस प्रणालीके लागू होनेसे कई राज्य इस आशंकामें शामिल रहे हैं कि इनकी आमदनी इससे कम हो सकती है और यह आशंका सही भी है। हालांकि ऐसी स्थितिसे निबटनेके लिए केन्द्रने राज्योंको यह भरोसा दिलाया था कि साल २०२२ तक उनके नुकसानकी भरपाई की जायेगी। परन्तु पड़ताल यह बताती है कि बकाया निबटानेके मामलेमें केन्द्र सरकार पूरी तरह खरी नहीं उतर पा रही है। समझनेवाली बात यह भी है कि पिछले साल दो लाख ३५ हजार करोड़ रुपयेकी राजस्व कमीपर केन्द्र सरकारने राज्योंको सुझाव दिया था कि वे इस कमीको पूरा करनेके लिए उधार लें जिससे राज्योंमें सहमतिका अभाव देखा जा सकता है। इसी दौरान सरकारने दो विकल्प सुझाये थे पहला यह कि राज्य सरकारें राजस्वकी भरपाई हेतु कुल राजस्वका आधा उधार उठायेंगी और उसके मूल और ब्याज दोनोंकी अदायगी भविष्यमें विलासितावाली वस्तुओं और अवगुणवाली वस्तुओंपर लगाये जानेवाली क्षतिपूर्ति सेससे की जायेगी। दूसरा विकल्प यह था कि राज्य सरकारें पूरे नुकसानकी राशिको उधार लेंगी लेकिन उस परिस्थितिमें मूलकी अदायगीको क्षतिपूर्ति सेससे की जायेगी परन्तु ब्याजके बड़े हिस्सेकी अदायगी उन्हें स्वयं करनी होगी। पहले विकल्पको भाजपाशासित और उनके गठबंधनवाली सरकारोंने तो स्वीकार किया लेकिन शेष दस राज्योंने इसे खारिज किया।

पड़ताल यह बताती है कि वित्तीय सम्बंधके मामलेमें संघ और राज्यके बीच समय-समयपर कठिनाइयां आती रही हैं। सहकारी संघवादके अनुकूल ढंाचाकी जब भी बात होती है तो यह भरोसा बढ़ानेका प्रयास होता है कि समरसताका विकास हो। आरबीआईके पूर्व गर्वनर डी. सुब्बारावने कहा था कि जिस प्रकार देशका आर्थिक केन्द्र राज्योंकी ओर स्थानांतरित हो रहा है उसे देखते हुए इस बातसे इनकार नहीं किया जा सकता कि वर्तमानमें भारतका आर्थिक विकास सहकारी संघवादपर टिका देखा जा सकता है। गौरतलब है कि संघवाद अंग्रेजी शब्द फेडरेलिज्म का हिन्दी अनुवाद है और इस शब्दकी उत्पत्ति लैटिन भाषासे हुई है जिसका अर्थ समझौता या अनुबंध है। जीएसटी संघ और राज्यके बीच एक ऐसा अनुबंध है जिसे आर्थिक रूपसे सहकारी संघवाद कहा जा सकता है परन्तु जब अनुबंध पूरे न पड़े तो विवादका होना लाजमी है। वित्तीय लेन-देनके मामलेमें अब भी समस्या समाधान नहीं हुआ। जुलाई २०१७ में पहली बार जब जीएसटी आया तब इस माहका राजस्व संग्रह ९५ हजार करोड़के आसपास था। धीरे-धीरे गिरावटके साथ यह ८० हजार करोड़पर भी पहुंचा था और यह उतार-चढ़ाव चलता रहा। जीएसटीको पूरे चार साल हो गये परन्तु इन ४८ महीनोंमें बहुत कम अवसर रहे जब यह एक लाख करोड़ रुपयेके आंकड़ेको पार किया। कोविड-१९ महामारीके चलते अप्रैल २०२० में इसका संग्रह ३२ हजार करोड़तक आकर सिमट गया जबकि दूसरी लहरके बीच अप्रैल २०२१ में यह आंकड़ा एक लाख ४१ हजार करोड़का है जो पूरे चार सालमें सर्वाधिक है। हालांकि बीते आठ महीनेसे जीएसटीका संग्रह एक लाख करोड़से अधिकका बना हुआ है। परन्तु जून २०२१ में यह ९३ हजारपर सिमट गया। एक दौर ऐसा भी था कि दिसम्बर २०१९ तक पूरे ३० महीनेके दरमियान सिर्फ नौ बार ही अवसर ऐसा था जब जीएसटीका संग्रह एक लाख करोड़से अधिक हुआ था। जब जीएसटी शुरू हुआ था तब करदाता ६६ लाखसे थोड़े अधिक थे और आज यह संख्या सवा करोड़से अधिक हो गयी है।

जीएसटीके इस चार सालके कालखण्डमें जीएसटी काउंसिलकी ४४ बैठकें और हजारसे अधिक संशोधन हो चुके हैं। कुछ पुराने संदर्भको पीछे छोड़ा जाता है तो कुछ नयेको आगे जोडऩेकी परम्परा अब भी जारी है। संघ और राज्यके वित्तीय मामलोंमें संवैधानिक प्रावधानको भी समझना यहां ठीक रहेगा। अनुच्छेद २७५ संसदको इस बातका अधिकार प्रदान करता है कि वह ऐसे राज्योंको उपयुक्त अनुदान देनेका अनुबंध कर सकती है जिन्हें संसदकी दृष्टिïमें सहायताकी आवश्यकता है। अनुच्छेद २८६, २८७, २८८ और २८९ में केन्द्र तथा राज्य सरकारोंको एक-दूसरे द्वारा कुछ वस्तुओंपर कर लगानेसे मना किया गया है। अनुच्छेद २९२ एवं २९३ क्रमश: संघ और राज्य सरकारोंसे ऋण लेनेका प्रावधान भी करते हैं। गौरतलब है कि संघ और राज्यके बीच शक्तियोंका बंटवारा है संविधानकी सातवीं अनुसूचीमें संघ, राज्य और समवर्ती सूचीके अंतर्गत इसे बाकायदा देखा जा सकता है। जीएसटी वन नेशन, वन टैक्सकी थ्योरीपर आधारित है जो एकल अप्रत्यक्ष कर संग्रह व्यवस्था है। जिसमें संघ और राज्य आधी-आधी हिस्सेदारी रखते हैं। ८०वें संविधान संशोधन अधिनियम २००० और ८८वें संविधान संशोधन अधिनियम २००३ द्वारा केन्द्र-राज्यके बीच कर राजस्व बंटवारेकी योजनापर व्यापक परिवर्तन दशकों पहले किया गया था जिसमें अनुच्छेद २६८डी जोड़ा गया जो सेवा करसे सम्बंधित था। बादमें १०१वें संविधान संशोधन द्वारा नये अनुच्छेद २४६ए, २६९ए और २७९ए को शामिल किया गया तथा अनुच्छेद २६८ को समाप्त कर दिया गया। गौरतलब है राज्य व्यापारके मामलेमें करकी वसूली अनुच्छेद २६९ए के तहत केन्द्र सरकार द्वारा की जाती है जबकि बादमें इसे राज्योंको बांट दिया जाता है। जीएसटी केन्द्र और राज्यके बीच झगड़ेकी एक बड़ी वजह उसका एकाधिकार होना भी है। क्षतिपूर्ति न होनेके मामलेमें तो राज्य केन्द्रके खिलाफ सुप्रीम कोर्टतक जानेकी बात कह चुके हैं। काफी हदतक इसे जीएसटीको महंगीका कारण भी राज्य मानते हैं। सवाल यह भी है कि वन नेशन, वन टैक्सवाला जीएसटी जब अभी वादे राज्योंसे किये गये वादेपर पूरी तरह खरा नहीं उतर रहा है तो २०२२ के बाद क्या होगा जब क्षतिपूर्ति देनेकी जिम्मेदारीसे केन्द्र मुक्त हो जायेगा। जीएसटीके नफे-नुकसानमें राज्य कहां खड़े हैं और इसमें व्याप्त कठिनाईयोंको लेकर केन्द्र कितना दबाव लेता है। फिलहाल जीएसटीमें उगाही भले ही बेहतर अवस्थाको प्राप्त कर ले परन्तु समयके साथ राज्योंको घाटा होता है तो तनावका घटना मुश्किल ही रहेगा।