सम्पादकीय

लापरवाही बढ़ा रहा तीसरी लहरका डर


सुरेश गांधी

जूनके अंततक कोरोनासे लगभग चार लाख लोगोंकी मौत हो चुकी है। संक्रमितोंकी संख्या ३० लाखसे ऊपर है। पड़ोसी देशोंकी तुलनामें हमारी स्थिति अधिक खराब है। आंकड़े इस बातके गवाह हैं कि दूसरी लहर भारतके लिए बेहद घातक साबित हुई है। पिछले सालके शुरूसे कोरोना वायरसने लगभग समूची दुनियाको प्रभावित किया है। यह आज भी सबसे गंभीर मसला बना हुआ है। आंकड़े इस बातके गवाह है कि कई अन्य देशोंकी तुलनामें भारतपर इसका असर अधिक कष्टकारी रहा। इसकी बड़ी वजह कोरोनाके प्रति बरती गयी लापरवाही रही। दूसरी लहरने चार लाखसे अधिक लोगोंको एक झटकेमें निगल लिया। चारों तरफ कहीं ऑक्सीजन तो कहीं रेमडेसिविर इंजेक्शन तो कहीं अस्पतालोंके डाक्टरोंकी लापरवाहीको लेकर कोहराम मचा रहा। अब जब सब कुछ नियंत्रणमें है और लॉकडाउन खत्म हो गया है तो फिरसे पहलेकी तरह लापरवाहियां दिखने लगी है। खास तौरसे तब लब तीसरी लहरकी आहटके बीच डेल्टा वायरस घरकी दहलीजतक दस्तक दे चुका है।

स्वास्थ्य विभागके मुताबिक, अप्रैल और मईके दो महीनोंमें कोरोनाने ढाई लाख लोगोंका जीवन छीन लिया, जो समूचे पिछले सालके आंकड़ेके दोगुनेसे भी अधिक है। डाक्टरोंकी ही मानें तो आधिकारिक आंकड़े असलमें हुई मौतोंकी संख्यासे बहुत कम हैं। लेकिन सच तो यही है इस साल वायरसकी आक्रामकताने अस्पतालोंमें अफरा-तफरी मचा दी थी और जरूरी दवाओं, आक्सीजन एवं चिकित्साकर्मियोंकी बड़ी कमी हो गयी थी। यहांतक कि शवगृह एवं श्मशान भी बड़ी संख्यामें लाशोंके भारको संभाल नहीं पा रहे थे। बादमें कई शव गंगा नदीके किनारे बालूमें दफन मिले थे। स्पष्ट है कि कोरोनासे हुई बहुत-सी मौतोंका संज्ञान नहीं लिया गया है। कहनेका अभिप्राय यह है कि इस वक्त भले ही संक्रमण दरको कम देखते हुए लाकडाउन हटा लिया गया है। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए डब्ल्यूएचओं लगातार खतरा टला नहीं है कि बीच तीसरे लहरके आहटका संकेत लगातार दे रहा है। डेल्टा वायरसने तो अभीसे दस्तक दे दी है। जो इसके लपेटेमें आया उसे तोड़ दे रही है।

मतलब साफ है बुद्धिमानी इसीमें है कि इस सुनामीरूपी आतंकके सामने पडऩेके बजाय अलर्ट रहे। सरकारी गाइडलाइनका पालन करें। बहुत जरूरी हो तभी घरसे बाहर निकले, वह भी मुंहपर मास्क एवं हाथमें सेनिटाइजरके साथ। लेकिन हकीकत यह भी है कि लोग सरकारी गाइडलाइनका पालन नहीं कर रहे है। शादी-ब्याहके धूमधड़ाकेके बीच लोग झुंडमें सड़कोंपर तफरी ले रहे है। मंदिरोंमें दर्शन-पूजनके लिए हुजूम उमड़ रहा है। बिना मास्कके लोगोंको देख जा सकता है। वह भी तब जब भारतमें नये कोरोना केस पिछले तीन दिनोंसे लगातार बढ़ रहे हैं। ६ जुलाईको भारतमें कोरोनाके करीब ३४ हजार नये केस दर्ज हुए थे जिनकी संख्या पिछले ४८ घंटोंमें बढ़कर करीब ४६ हजार हो गयी। फिर भी लोगोंको न तो अपनी और न ही दूसरोंकी जानकी कोई परवाह हैं। डेल्टा वायरस पूर्वाचल सहित पूरे देशमें दस्तक दे दी है। इसके बढ़ते केसोंको लेकर रेलवे स्टेशनों एवं एअरर्पोटोंपर सतर्कता बढ़ा दी गयी है।

हालांकि जितनी तेजीसे कोविड-१९ एवं डेल्टाके मामलोंमें इजाफा हुआ है। उतनी ही रफ्तारसे ठीक होनेवाले मरीज भी बढ़ हैं। लेकिन क्या यह ठीक होना वास्तवमें उस अर्थमें है जैसा किसी स्वस्थ व्यक्तिके संदर्भमें कहा जाता है। वायरससे बच निकलने और पूरी तरह स्वस्थ होनेके बीच ऐसे कई अवैध सवाल है जो डॉक्टर मरीज और शोधकर्ताओंको परेशान कर रहे हैं। क्योंकि यह कुछ ही महीने पहले आया। इसलिए इसके क्या प्रभाव रहेंगे, सिर्फ कयास ही लगाये जा सकते हैं। यह सीधे श्वसन तंत्रपर अटैक कर रहा है। इसके चलते किडनी, लीवरपर भी इसका प्रभाव देखा जा रहा है। खास बात यह है कि गंभीर रूपसे पीडि़त लोगोंमें साइटो सिण्ड्रोम देखा गया, जिससे ह्यूमन सिस्टमपर इतना प्रभाव हो जाता है कि वह शरीरके खिलाफ काम करने लगता है। इसके चलते कई अंग काम करना बंद करने लगता है। यह प्रभाव स्वाइनफ्लूमें भी देखे गये थे। उससे कोविड-१९ के लक्षण मिलते-जुलते हैं। कोरोना वायरसमें ६० की उम्रसे अधिक आयवाले लोगोंमें गंभीर परिणाम देखे गये हैं। अब तो बच्चे भी इसकी चपेटमें आ रहे है। वाराणसी एक नौ सालकी बच्चीमें कोरोना संक्रमणकी पुष्टि हुई है। इसके अलावा बाबतपुर एयरपोर्ट, संत अतुलानंद एकेडमी होलापुर, दरेखु, कैंसर अस्पतालमें नये मरीज मिले हैं।

डब्ल्यूएचओंकी मानें तो तीसरी लहरका खतरा इस आशंकाके साथ मौजूद है कि उसके सबसे अधिक शिकार बच्चे हो सकते हैं। टीकाकरण एकमात्र उपचार है और केवल वही जीवन और जीवनयापनके साधनोंकी रक्षा कर सकता है तथा हमें सामान्य स्थितिकी ओर ले जा सकता है। यह अफसोसनाक है कि बाकी दुनियाकी तरह भारतमें भी मध्य जनवरीमें टीकाकरण अभियान शुरू होनेके बावजूद अभीतक आबादीके पांच फीसदी हिस्सेको भी दोनों खुराक नहीं दी जा सकी है। प्रति सौ लोगोंको टीकेकी खुराक देनेके मामलेमें २०१ देशोंमें भारत ११४वें स्थानपर है। ऐसा तब है, जब हमने इस मदके लिए आवंटन भी तय कर दिया था और देशमें दुनियाका सबसे बड़ा टीका निर्माण इंफ्रास्ट्रक्चर है। पिछले साल कोविडके कहरसे पीडि़त होनेके बाद कई देशोंने टीकाकरणको अपनी सबसे बड़ी प्राथमिकता बनाया था। अब वह अपने मास्क फेंक रहे हैं और गिरावटकी भरपाईके लिए अर्थव्यवस्थाको खोल रहे हैं। वे बच्चोंको टीका देने तथा खुराक ले चुके लोगोंको बूस्टर डोज देनेकी दिशामें अग्रसर हैं ताकि सामूहिक रोग निरोधक क्षमता हासिल हो। मतलब साफ है कोरोनाके आतंकसे छुटकारा पानेके लिए एकमात्र विकल्प वैक्सीन है। लेकिन अफसोस है कि लोग अब भी न वैक्सीनको लेकर सजग है और न सरकारी गाइडलाइनके अनुपालनके लिए सतर्क है। सोशल डिस्टेंसिग तो छोडिय़े लोग सड़कों या सार्वजनिक जगहोंपर झुंडमें निकल रहे है। इन सबके बीच इस महामारीसे जो आर्थिक संकट गहरा रहा है उसमें आगे चलकर और भी बढ़ोतरी होगी। जाहिर है जब आर्थिक संकट गहरायेगा तो लोगोंमें खींचातानी बढ़ेगी। आपसमें लड़ाईयां हो सकती है। कुछ लोग इसे अवसर मानकर फायदा उठानेकी कोशिश करेंगे। क्योंकि उनकी नजरमें यह धंधा होगा या यूं कहे अनगिनत परेशानियां सिर उठायगी। आर्थिक और सामाजिक संकट इतना भयावह हो जायेगा कि स्थिति संभाले नहीं सभलेगी। ऐसेमें अभी सगता ही इसकी अचूक वैक्सीन है। यही वजह है कि जो इस स्थितिको समझ चुके है, उन्होंने कमानेका सपना त्याग दिया है। वे इस अवसर समझ धन कमानेके बजाय या यूं कहे भीड़तंत्रका हिस्सा बननेके बजाय चुप बैठनेमें ही अपनी भलाई समझ रहे है। आश्चर्य इसलिए भी होता है, क्योंकि हम केवल बातोंसे इनसानका मूल्यांकन करते हैं। जबकि मूल्यांकन एक्शनसे होना चाहिए। पूरी रात-दिनमें सेहतकी बात करेंगे, लेकिन अपनी सेहतका ध्यान नहीं रखेंगे।