सम्पादकीय

गणतंत्र दिवसकी ऐतिहासिकता


योगेश कुमार गोयल
भारतका संविधान २६ जनवरी, १९४९ को अंगीकृत किया गया था और कुछ उपबंध तुरंत प्रभावसे लागू कर दिये गये थे लेकिन संविधानका मुख्य भाग २६ जनवरी, १९५० को ही लागू किया गया, इसीलिए इस तारीखको संविधानके प्रारंभकी तारीख भी कहा जाता है और यही वजह थी कि २६ जनवरीको ही गणतंत्र दिवसके रूपमें मनाया जाने लगा। २६ जनवरीको ही गणतंत्र दिवसके रूपमें मनाये जानेके पीछे स्वतंत्रता संग्रामका इतिहास भी जुड़ा है। सन् १९२७ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके मद्रास अधिवेशनमें भारतके लिए पूर्ण स्वराज्यकी चर्चा की गयी थी और उसके बाद मोतीलाल नेहरूकी अध्यक्षतामें गठित सर्वदल सम्मेलनने कलकत्तामें हुए अधिवेशनमें इस विषयपर और अधिक जोर दिया। इस सर्वदल सम्मेलनके सचिव थे मोतीलाल नेहरूके सुपुत्र पंडित जवाहरलाल नेहरू। अत: सर्वदल सम्मेलनकी रिपोर्टको नेहरू रिपोर्टके नामसे ही जाना गया।
इस रिपोर्टमें सर्वदल सम्मेलनके अध्यक्ष पं.मोतीलाल नेहरूने उल्लेख किया कि भारतके सामने तात्कालिक राजनीतिक ध्येय अधिराज्य (डोमिनियन) स्तर को प्राप्त करना होगा लेकिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस और पं. जवाहरलाल नेहरूने रिपोर्टमें डोमिनियन स्तरका उल्लेख किये जानेपर इसका डटकर विरोध किया। इसी विरोधके मद्देनजर तब राष्ट्रपिता महात्मा गांधीने मामलेमें हस्तक्षेप करते हुए यह आश्वासन दिया कि यदि अगले एक वर्षके भीतर नेहरू रिपोर्टमें वर्णित डोमिनियन स्तरका दर्जा प्राप्त नहीं हो सका तो आगामी लाहौर अधिवेशनमें वह स्वयं पूर्ण आजादीका प्रस्ताव पेश करेंगे।
गांधीजीने १९२८ में हुए कलकत्ता अधिवेशनमें एक प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि सर्वदल सम्मेलनकी रिपोर्टमें शासन विधानकी जो योजना प्रस्तुत की गयी है, कांग्रेस उसका स्वागत करती है और उसे भारतकी साम्प्रदायिक एवं राजनीतिक समस्याओंको हल करनेमें अत्यधिक सहायता देनेवाली मानती है, इसलिए यदि ब्रिटिश पार्लियामेंट इस शासन विधानको राजनीतिक स्थितिमें कोई बदलाव किये बिना ३१ दिसम्बर १९२९ तक ज्योंका त्यों स्वीकार कर ले तो कांग्रेस इस विधानको स्वीकार कर लेगी लेकिन यदि इस निर्धारित तिथितक वह इसे स्वीकार न करे तो कांग्रेस अहिंसात्मक असहयोग आन्दोलन चलायगी। १९२७ में पूर्ण स्वराज्यकी चर्चा शुरू होने तथा असहयोग आन्दोलनसे उत्पन्न स्थितिके कारण ब्रिटिश सरकारने १९२८ में एक कानूनी आयोग साइमन कमीशन गठित किया, जिसकी नियुक्तिके बारेमें भारत शासन अधिनियम १९१९ (धारा ८४क) में उपबंध था। इस आयोगको अधिनियमके कार्यकरणकी जांच करके उसपर अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करना था। १९२९ में ब्रिटिश सरकारने घोषणा की कि भारतीय राजनीतिक विकासका उद्देश्य डोमिनियन प्रास्थिति है। ३१ अक्तूबर १९२९ को लार्ड इरविनने सम्राटकी ओरसे घोषणा की कि भारतको औपनिवेशिक स्वराज्य दिया जायगा लेकिन उस घोषणामें इस बारेमें कुछ नहीं कहा गया कि यह कार्य कबतक किया जायगा, इसलिए ब्रिटिश सरकारकी इस नीतिके मद्देनजर कांग्रेसने माना कि भारतको ब्रिटिश सरकार द्वारा स्वराज तभी दिया जायगा, जब ब्रिटिश सरकार ऐसा करनेके लिए बाध्य हो जायगी। अत: ३१ दिसम्बर १९२९ को कांग्रेसकी लाहौरमें हुई बैठकमें देशकी पूर्ण आजादीका प्रस्ताव पारित किया गया और उसी दिन स्वतंत्र भारतका तिरंगा फहरा दिया गया, साथ ही महासमितिको भी यह अधिकार सौंप दिया गया कि वह जब चाहे, करबंदी और सविनय अवज्ञाका कार्यक्रम आरंभ कर सकती है। २६ जनवरी १९३० को महात्मा गांधीके नेतृत्वमें पूर्ण स्वतंत्रताकी शपथ ली गयी।
सर जॉन साइमनकी अध्यक्षतामें बने साइमन आयोगने १९३० में अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया और उसके बाद उस प्रतिवेदनपर विचार करनेके लिए गोलमेज परिषदमें ब्रिटिश सरकार, ब्रिटिश भारत और देशी रियासतोंके प्रतिनिधियोंको शामिल किया गया। इस सम्मेलनकी परिणतिपर तैयार किये गये एक श्वेत पत्रकी ब्रिटिश संसदकी एक संयुक्त प्रवर समिति द्वारा परीक्षा की गयी और प्रवर समितिकी सिफारिशोंके अनुसार भारत शासन विधेयकका प्रारूप तैयार करके उसे कुछ संशोधनोंके साथ भारत शासन अधिनियम १९३५ के रूपमें पारित किया गया। उल्लेखनीय है कि १९२९ में साइमन आयोगने जो डोमिनियन प्रास्थिति देनेका वादा किया था, वह इस अधिनियम द्वारा प्रदत्त नहीं की गयी, उल्टे इस अधिनियमने मुस्लिमों और गैरमुस्लिमोंके बीच साम्प्रदायिक वैमनस्यको और अधिक बढ़ाया क्योंकि इसमें ब्रिटिश प्रधान मंत्री रामसे मैकडोनाल्ड द्वारा ४ अगस्त १९३५ को दिये गये साम्प्रदायिक अधिनिर्णयके आधारपर पृथक निर्वाचन मंडलोंकी व्यवस्था कर दी गयी, जिसका आधार यह बताया गया कि दो मुख्य सम्प्रदाय सहमत नहीं हो सके हैं। इस अधिनियममें मुसलमानोंके अलावा सिखों, ईसाईयों, एंग्लो इंडियनों और यूरोपीय लोगोंके लिए भी पृथक प्रतिनिधित्वकी व्यवस्था की गयी थी, जिसके कारण राष्ट्रीय एकताके निर्माणमें कई बाधाएं भी उत्पन्न होती रही। २६ जनवरी १९२९ को पं. जवाहरलाल नेहरूने रावी नदीके तटपर देशके लिए पूर्ण स्वतंत्रताकी घोषणा की थी। उसके बाद २ जनवरी १९३० को पं. जवाहरलाल नेहरूकी अध्यक्षतामें हुई बैठकमें २६ जनवरी १९३० को स्वतंत्रता दिवसके रूपमें मनानेका निर्णय लिया गया और उसके बादसे हर वर्ष २६ जनवरीको देशमें स्वतंत्रता दिवसके रूपमें मनाये जानेका फैसला किया गया।