सम्पादकीय

गणतंत्रपर हावी होता आरक्षण


डा. शंकर सुवन सिंह
आजादीके बाद देशको चलानेके लिए संविधान लिखा गया, जिसे लिखनेमें पूरे दो वर्ष ११ महीने और १८ दिन लगे। २६ जनवरी १९५० को सुबह १०.१८ मिनटपर भारतका संविधान लागू किया गया।
भारतमें २६ जनवरी १९५० को सुबह १०.१८ मिनटपर भारतका संविधान लागू किया गया था और इसी उपलक्ष्यमें हम २६ जनवरीको गणतंत्र दिवसके रूपमें मनाने लगे। २६ जनवरी १९५० से पहले भारत संवैधानिक तौरपर गणराज्य नहीं, बल्कि राजतंत्र ही था। २६ जनवरी १९५० से पहले गर्वनमेंट ऑफ इंडिया एक्ट १९३५ के तहत भारतमें शासन चलाया जाता था। दिल्लीमें २६ जनवरी, १९५० को पहली गणतंत्र दिवस परेड, राजपथपर न होकर इर्विन स्टेडियम (आज का नेशनल स्टेडियम) में हुई थी। १९५५ को दिल्लीके राजपथपर गणतंत्र दिवसकी पहली परेड हुई थी। गणतंत्र दिवसके मौकेपर राजपथपर परेड आयोजित की जाती है और इस परेडकी सलामी देशके राष्ट्रपति लेते हैं। गणतंत्र दिवस २०२१ के मौकेपर इस साल कोई मुख्य अतिथि नहीं होगा। ऐसा ५० सालोंमें पहली बार होगा जब कोई मुख्य अतिथि नहीं होगा। शुरूमें ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसनको भारत आनेके लिए आमंत्रित किया गया था। लेकिन ब्रिटेनमें एक नये कोविड-१९ स्ट्रेनके बढ़ते प्रकोपके चलते उन्हें अपनी यात्रा रद करनेके लिए मजबूर होना पड़ा। इससे पहले, भारतके पास १९५२, १९५३ और १९६६ में परेडके लिए मुख्य अतिथि नहीं थे। पिछले साल भारतीय वायु सेनामें शामिल राफेल लड़ाकू जेट, पहली बार परेडमें भाग ले रहे हैं। कोविड-१९ सुरक्षा मानदंडोंके चलते, मोटरसाइकिलसे चलनेवाले पुरुषोंके करतब जो राजपथपर गणतंत्र दिवस समारोहमें भीड़के लिए एक प्रमुख आकर्षण होता है, इस साल देखनेको नहीं मिलेगा। लद्दाख जो हालमें ही केंद्रशासित क्षेत्र बना है, राजपथपर एक शानदार झांकीके साथ पहली बार दस्तक दे रहा है। अयोध्यामें बन रहे राम मंदिरकी महिमा और भव्यताका प्रदर्शन २६ जनवरीको राष्ट्रीय राजधानी नयी दिल्लीमें होनेवाले गणतंत्र दिवस परेडके दौरान किया जायगा।
गणतंत्र दिवसकी झांकीमें अयोध्यामें दीपोत्सवकी झलक भी होगी। वीरता पुरस्कारोंकी परेड और बहादुरी पुरस्कार हासिल करनेवाले बच्चे भी ७२वें गणतंत्र दिवस समारोहमें नहीं होंगे। गणतंत्र दिवस समारोहका समापन बीटिंग रिट्रीट सेरेमनीसे २९ जनवरीको किया जाता है। बीटिंग रिट्रीट समारोह सदियों पुराने उस सैन्य परंपराको दर्शाती है जिसमें इन सैन्य धुनोंके बजनेपर सेना लडऩा बंद कर देती है और अपने हथियार रख देती है। दो शब्दोंसे मिलकर बना है गणतंत्र । गण और तंत्र। गणका शाब्दिक अर्थ है दल। समूह। लोक। तंत्रका शाब्दिक अर्थ है डोरा-सूत (रस्सी)। अर्थात ऐसी रस्सी-डोरा, जो लोगोंके समूहको जोड़े, लोकतंत्र कहलाता है। भारतमें लोकतंत्र है और राजनेताओंने लोकतंत्रका आधार, आरक्षणको बना दिया है। भ्रष्ट प्रशासन, शिक्षासे लेकर न्यायतकका राजनीतिककरण होना, लोकतंत्रात्मक प्रणालीका जुगाड़ तंत्रात्मक हो जाना आदि अन्य सामाजिक कुरीतियोंने जन्म ले लिया। २५ अगस्त, १९४९ में संविधान सभामें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति आरक्षणको मात्र दस वर्षतक सिमित रखनेके प्रस्तावपर एस.नागप्पा एवं बी. आई. मुनिस्वामी पिल्लई आदिकी आपत्तियां आयी। डाक्टर अम्बेडकरने कहा मैं नहीं समझता कि हमें इस विषयमें किसी परिवर्तनकी अनुमति देनी चाहिए। यदि दस वर्षमें अनुसूचित जातियोंकी स्थिति नहीं सुधरती तो इसी संरक्षणको प्राप्त करनेके लिए उपाय ढूंढऩा उनकी बुद्धि शक्तिसे परे न होगा। आरक्षणवादी लोग, डा. अम्बेडकरकी राष्ट्र सर्वोपरिताकी कद्र नहीं करता। आरक्षणवादी लोगोंने राष्ट्रका संतुलन खराब कर दिया है। आरक्षणवादी लोग वोटकी राजनीति करने लगे हैं, न कि डा. अम्बेडकरके सिद्धांतका अनुपालन कर रहे हैं। आरक्षण देनेकी समय सीमा तय होनी चाहिए जिससे दबे कुचले लोग उभर सकें। जब आरक्षण देनेकी तय सीमाके अंतर्गत दबे-कुचले लोग उभर जायं तो आरक्षणका लागू होना सफल माना जाय। आरक्षण कोटेसे चयनित न्यायाधीश, आईएएस, आईईएसएपीसीएस, इंजीनियर, डाक्टर आदि अपने कार्यका संचालन ठीक ढंगसे नहीं कर पाते क्योंकि उन्हें कोटेके तहत उभरा गया। इस प्रकारके आरक्षणसे मानवतापर कुठारा घात हो रहा है। अतएव शिक्षित एवं योग्य व्यक्तिको शोषणका शिकार होना पड़ रहा है। इस प्रकारकी आरक्षित कोटेकी शिक्षा विकासकी उपलब्धि नहीं है। यह विकासके नामपर अयोग्य लोगोंको शरण देनेवाली बात है। किसी भी देशके विकासमें आरक्षण अभिशाप है। आज यदि हम देशको उन्नतिकी ओर ले जा चाहते हैं और देशकी एकता बनाये रखना चाहते हैं तो जरूरी है कि आरक्षणोंको हटाकर हम सबको एक समान रूपसे शिक्षा दें और अपनी उन्नतिका अवसर पानेका मौका दें। अत: राष्ट्रके विकासको जीवित रखनेके लिए, आरक्षणको वोटकी राजनीतिसे दूर रखना होगा। आरक्षण विकासका आधार नहीं हो सकता।
स्थिति यह है कि आरक्षण राष्ट्रीय विकासपर हावी है। जिस तरह देशमें फर्जी स्कूलोंकी बाढ़ आ चुकी है और हजारमें डिग्रियां बिक रही है। उसी प्रकार जाति प्रमाण पत्र है। यह ऐसी डिग्री है जिसके सहारे बिना परिश्रमके मलाई मिल जाती है। जातिवाद देशको तोडऩेका काम करता है जोडऩेका नही। देशके विषयसे इन्हें प्यारा है आरक्षण। दूसरोंकी गलतियां निकाल कर खुदको दोषमुक्त और दयाका पात्र बनाना। आरक्षण जिसे खुद अंबेडकरने दस सालसे ज्यादा नहीं चाहा और जिसे यह लोग मसीहा मानते हैं उसके बनाये हुए नियमको खुद तोड़ते है सिर्फ अपनी आरक्षण नामकी लतको पूरा करनेके लिए। वैसे भी जब किसीको बिना किये सब कुछ मिलने लगता है तो मेहनत करनेसे हर कोई जी चुराने लगता है और वह आधार तलाश करने लगता है जिसके सहारे उसे वह सब ऐसे ही मिलता रहे। यही आधार आजके आरक्षणभोगी तलाश रहे हैं। कोई मनुको गाली दे रहा है तो कोई ब्राह्मïणोंको। कोई हिंदू धर्मको तो कोई पुराणोंको। परन्तु खुदके अन्दर झांकनेका न तो सामथ्र्य है और ना ही इच्छाशक्ति। जबतक अयोग्य लोग आरक्षणका सहारा लेकर देशसे खेलते रहेंगे तबतक न तो देशका भला होगा और न समाजका और न ही इनकी जातिका। देशके विनाशका कारण है आरक्षण। अत: गणतंत्रको पुन: जीवित करनेके लिए स्वदेशिता, स्वभिमानिता, स्वाधीनता एवं स्वावलम्बनको अपने निजी जीवनमें उतारना होगा।